उमा महेश्वर के व्रत का वर्णन,Uma Maheshvar Ke Vrat Ka Varnan

उमा महेश्वर के व्रत का वर्णन,Uma Maheshvar Ke Vrat Ka Varnan

सूतजी बोले- उमा महेश्वर व्रत शिवजी के द्वारा कहा गया। पुरुष तथा सभी प्राणियों का हित करने वाला है। वह तुम्हारे प्रति कहूँगा। पूर्णमासी में अमावस्या में, अष्टमी में, चतुर्दशी के दिन रात्रि में, हविष्यान्न का भोजन कराना चाहिए तथा शिव की पूजा करनी चाहिए। एक वर्ष तक व्रत करके बाद में सोने की या चाँदी की प्रतिमा बनाकर प्रतिष्ठा करें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा दें। रथ में बिठाकर उस मूर्ति को शिवालय तक ले जाय। इस प्रकार वह शिव सायुज्य को प्राप्त होगा।जो कन्या अथवा विधवा एक वर्ष तक इस प्रकार व्रत को करे वर्षान्त में भवानी के साथ प्रतिष्ठा करे तो भवानी की सायुज्य को प्राप्त होती है। अब व्रतों का क्रम महीने वार कहता हूँ, सो सुनो। मार्गशीर्ष (अगहन) के महीने में नवांग पूर्ण बैल को शिवजी के नाम से छोड़ता है वह शिव और भवानी के साथ आनन्द को प्राप्त करता है। पौष के महीने में त्रिशूल का दान करने वाला, माघ मास में सर्वलक्षण सम्पन्न रथ को प्रदान करने वाला, फाल्गुन में सोने या चाँदी की प्रतिमा बनाकर शंकर के मन्दिर में स्थापना करने वाला, भवानी के साथ सायुज्य को पाता है।


चैत्र मास में शिव, भवानी, नन्दी आदि की प्रतिमा ताँबे की बनाकर स्थापना करने वाला वैशाख मास में कैलाश नाम के शिवजी के व्रत को करने वाला, कैलाश पर्वत को प्राप्त करके भवानी के साथ में मोद को प्राप्त करता है। जेठ के महीने में महादेव की लिंग मय मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने वाला, ब्राह्मणों को भोजन कराने वाला पुरुष देवी की सायुज्य को प्राप्त करता है। आषाढ़ में पक्की ईंटों आदि से बना उत्तम भवन, सम्पूर्ण वस्त्र आदि वस्तुओं से युक्त ब्रह्मचारी ब्राह्मण के लिये दान करने वाला, पुरुष गौ लोक को प्राप्त कर भगवान की सायुज्य को प्राप्त करता है। सावन के महीने में तिलों का पर्वत बनाकर जो वस्त्र ध्वजा धातुओं से युक्त करके ब्राह्मणों को दान करता है तथा भोजन कराता है वह पूर्व में कहे फल को पाता है। भादों में चावल का पर्वत इसी प्रकार दान करता है वह भवानी के साथ आनन्द को प्राप्त होता है। क्वार के मास में अनेकों प्रकार के अन्नों का पर्वत स्वर्ण युक्त करके ब्राह्मणों को दान करता है तथा उन्हें भोजन कराता है वह चिरकाल तक सायुज्य को प्राप्त करता है। कार्तिक के महीने में जो नारी देवी उमा की स्वर्ण आदि की प्रतिमा बनाकर तथा देवेश शिवजी की प्रतिमा शिवालय में उसकी स्थापना करती है वह शरीर को त्याग कर भवानी और शिव के साथ परम आनन्द को प्राप्त होती है।

जो कोई भी एक समय भोजन करके कार्तिक से अगहन तक एक वर्ष तक व्रत को धारण करता है वह शिव के साथ आनन्द को प्राप्त करता है। चाहे वह पुरुष हो या स्त्री हो। ऐसा शिवजी ने स्वयं ही कहा है।

ये भी पढ़ें

शिव स्तुति ]  शिव स्तुति अर्थ सहित ]  शिव चालीसा पाठ ]  शिव चालीसा का पाठ अर्थ सहित ] 

प्रदोष स्तोत्र अष्टकम ] [ शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र ] [ शिव तांडव स्तोत्र अर्थ सहित ] [ श्री शिवाष्टकम् ]

शिव महिम्न स्तोत्र ] [ शिव तांडव कब करते हैं शिव तांडव स्तोत्र के चमत्कार  ] [ शिव तांडव स्तोत्र ] 

अमोघ शिव कवच ]  [ श्री शिव रक्षा स्तोत्रम् ]  [ दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र ] [ द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र ]

टिप्पणियाँ