Tara Shatnam Stotra - श्री तारा (महाविद्या ) शतनाम स्तोत्र

श्री तारा (महाविद्या ) शतनाम स्तोत्र

श्री तारा अष्टोत्तर शतनामावली में श्री तारा देवी के १०८ नामों का वर्णन उनके संगत गुणों के साथ किया गया है। साथ में दिया गया स्तोत्र स्तोत्र के उपयोग और उससे होने वाले लाभों का वर्णन करता है , जिसे श्री तारा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम या श्री तारा शतनाम स्तोत्रम और शतनामावली के नाम से भी जाना जाता है।
तारा शतनाम स्तोत्र, तारा देवी से जुड़ा एक स्तोत्र है. कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र को सुनता है और उसका मनन करता है, उसे सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं. तारा देवी को पार्वती का स्वरूप माना जाता है और हिन्दू धर्म में वे दस महाविद्याओं में से दूसरी महाविद्या हैं. 'तारा' का अर्थ है, 'तारने वाली' या 'पार कराने वाली !
ऐसा माना जाता है कि तारा बीज मंत्र का जाप करने से मन में मातृत्व भाव जागृत होता है और माता तारा भक्त को हर संकट से दूर करती हैं. वहीं, ॐ ह्रीं नमः मंत्र का जाप करने से धन की प्राप्ति होती है और धन से जुड़ी परेशानियां भी दूर होती हैं

श्री तारा (महाविद्या ) शतनाम स्तोत्र | Shri Tara (Mahavidya) Shatnam Stotra

॥ श्री शिव उवाच ॥

तारिणी तरला तन्वी तारा तरुणवल्लरी। 
तीररूपा तरी श्यामा तनुक्षीणपयोधरा ॥१॥

तुरीया तरला तीव्रगमना नीलवाहिनी। 
उग्रतारा जया चण्डी श्रीमदेकजटाशिराः ॥२॥

तरुणी शाम्भवी च्छिन्नभाला च भद्रतारिणी। 
उग्रा चोग्रप्रभा नीला कृष्णा नीलसरस्वती ॥३॥

द्वितीया शोभना नित्या नवीना नित्यनूतना। 
चण्डिका विजयाराध्या देवी गगनवाहिनी ॥४॥

अट्टहास्या करालास्या चरास्या दितिपूजिता । 
सगुणा सगुणाराध्या हरीन्द्रदेवपूजिता ॥५ ॥

रक्तप्रिया च रक्ताक्षी रुधिरास्यविभूषिता । 
बलिप्रिया बलिरता दुर्गा बलवती बला ॥६ ॥

बलप्रिया बलरता बलरामप्रपूजिता ।
अर्द्धकेशेश्वरी केशा केशवासविभूषिता ॥७॥

पद्ममाला च पद्माक्षी कामाख्या गिरिनंदिनी।
दक्षिणा चैव दक्षा च दक्षजा दक्षिणे रता ॥८ ॥

वज्रपुष्यप्रिया रक्तप्रिया कुसुमभूषिता ।
माहेश्वरी महादेवप्रिया पञ्चविभूषिता ॥९॥

इडा च पिङ्गला चैव सुषुम्ना प्राणरूपिणी।
गान्धारी पञ्चमी पञ्चाननादि परिपूजिता ॥१०॥

तथ्यविद्या तथ्यरूपा तध्यमार्गानुसारिणी । 
तत्त्वप्रिया तत्त्वरूपा तत्त्वज्ञानात्मिकानघा ॥११॥

ताण्डवाचारसन्तुष्टा ताण्डवप्रियकारिणी ।
तालदानरता क्रूरतापिनी तरणिप्रभा ॥१२॥

त्रयीयुक्ता त्रयीमुक्ता तर्पिता तृप्तिकारिणी ।
तारुण्यभावसंतुष्टठा शक्तिर्भक्तानुरागिणी ॥१३॥

शिवासक्ता शिवरतिः शिवभक्तिपरायणा ।
ताम्रद्युतिस्ताम्ररागा ताम्रपात्रप्रभोजिनी ॥१४॥

बलभद्रप्रेमरता बलिभुग्बलिकल्पिनी ।
रामरूपा रामशक्ती रामरूपानुरागिणी ॥१५॥

इत्येतत्कथितं देवि रहस्यं परमाद्भुतम्।
श्रुत्वा मोक्षमवाप्नोति तारादेव्याः प्रसादतः ॥१६॥

च इदं पठति स्तोत्रं तारास्तुति रहस्यकम्।
सर्वसिद्धियुतो भूत्वा विहरेत् क्षितिमण्डले ॥१७॥

तस्यैव मंत्रसिद्धिः स्यान्मम सिद्धिरनुत्तमा ।
भवत्येव महामाये सत्यं सत्यं न संशयः ॥१८ ॥

मन्दे मंगलवारे च यः पठेन्निशि संयतः ।
तस्यैव मंत्रसिद्धिः स्याद्‌गाणपत्यं लभेत सः ॥९९॥

श्रद्धयाऽश्रद्धया वापि पठेत्तारारहस्यकम्।
सोऽचिरणैव कालेन जीवन्मुक्तः शिवो भवेत् ॥२०॥

सहस्त्रावर्त्तनाद्देवि पुरश्चर्याफलं लभेत् ।
एवं सततयुक्ता ये ध्यार्य तस्त्वामुपासते ।

ते कृतार्था महेशानि मृत्युसंसारवत्र्त्मनः ॥२१ ॥

॥ इति श्रीस्वर्णमालातंत्रे तारिणी शतनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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