त्रिपुर सुन्दरी स्तोत्र, Sri Tripura Sundari Stotra

श्री त्रिपुर सुन्दरी स्तोत्र - Sri Tripura Sundari Stotra

त्रिपुर सुंदरी को काली का रक्तवर्णा रूप माना जाता है. कहा जाता है कि त्रिपुर सुंदरी की कृपा से भक्तों को सुंदर रूप, वैवाहिक जीवन में सुख, भोग, मोक्ष, धन, ऐश्वर्य, साहस, आत्मिक बल, यश, कीर्ति, और बौद्धिक विकास की प्राप्ति होती है. साथ ही, जो लोग जीवनसाथी की तलाश में हैं, उनकी इच्छा भी पूरी होती है. त्रिपुर सुंदरी की पूजा करने के लिए, ऊं श्रीं ऊं या ऊं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः का जप कमलगट्टे की माला से किया जाता है. पहले पांच दिन पांच मालाएं करने के बाद, एक माला भी की जा सकती है. पूजा सुबह 9 बजे या रात 9 बजे की जा सकती है. साधना के लिए सुबह 9 से 11 बजे का समय अच्छा माना जाता है. पूजन के दौरान, देवी को अनार का भोग लगाना चाहिए. 


त्रिपुर सुंदरी की उपासना के बारे में भैरवयामल और शक्तिलहरी में विस्तृत जानकारी मिलती है. आदिगुरू शंकरचार्य ने भी अपने ग्रंथ सौन्दर्यलहरी में त्रिपुर सुंदरी श्रीविद्या की स्तुति की है. कहा जाता है कि ऋषि दुर्वासा त्रिपुर सुंदरी के परम आराधक थे. त्रिपुर सुंदरी की पूजा करने के लिए, आवाहन मंत्र का भी इस्तेमाल किया जाता है. आवाहन मंत्र के बाद, देवी को सुपारी में प्रतिष्ठित किया जाता है. फिर, तिलक लगाकर धूप-दीप आदि पूजन सामग्रियों के साथ पंचोपचार विधि से पूजा की जाती है

त्रिपुर सुन्दरी स्तोत्र - Tripura Sundari Stotra

श्वेत पद्मासनारूढ़ां शुद्धस्फटिक सन्निभां। 
वन्दे वाग्देवतां ध्यात्वा देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥१ ॥

शैलाधिराजतनयां शङ्करप्रिय वल्लभां । 
तरुणन्दुनिभां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥२॥

सर्वभूत मनोरम्यां सर्वभूतेषु संस्थितां । 
सर्वसम्पत्करीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥३ ॥

पद्यालयां पद्महस्तां पद्मसम्भव सेविर्ता। 
पद्मरागनिभां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥४॥

पञ्चवाण धनुर्बाण पाशाङ्‌कुशधरां शुभां । 
पञ्चब्रह्ममयीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥५ ॥

षट् पुण्डरीक निलयां षडानन सुपूजितां । 
षट् कोणान्तः स्थितां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥६ ॥

हरार्धभाग - निलयामम्बामद्रिसुतां मृडां। 
हरिप्रियाऽनुजां बन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥६ ॥

अष्टैश्वर्य प्रदामम्बामष्टदिक्पाल सेवितां। 
अष्टमूर्तिमयीं बन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥७॥

नवमणिक्य मुकुटां नवनाथ सुपूजितां । 
नवयौवन शोभायां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥९ ॥

काञ्चीवास मनोरम्यां काञ्चीदाम विभूषितां। 
काञ्ची पुरीश्वरीं बन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥१०॥

॥ फलश्रुति ॥ 

इति ते कथितं देवि ! सुन्दरी प्रीतिदायकं । 
महानिशाकाले पाठमात्रेण सिद्धिर्भवति ॥११॥

एकादश सहस्त्राणि संख्या चास्य पुरस्क्रिया । 
ततः काम्यार्थे प्रयोगान् साधयेत् साधकोत्तमः ॥१२॥

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकं । 
पाठमात्रेण सिद्धयन्ति सत्यं सत्यं न संशयः ॥१३॥

निष्कामो यः पठेन्नित्यं पञ्चतत्व समन्वितम् ।
धर्मार्थ काम मोक्षं च लभते नात्र संशयः ॥

इह लोके सुखं भुक्त्वा चान्ते देवी लोके वसेत् ॥१४॥

॥ सिद्धि यामले श्रीत्रिपुर सुन्दरी स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

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