श्री त्रिपुर सुन्दरी स्तोत्र - Sri Tripura Sundari Stotra
त्रिपुर सुन्दरी स्तोत्र - Tripura Sundari Stotra
श्वेत पद्मासनारूढ़ां शुद्धस्फटिक सन्निभां।
वन्दे वाग्देवतां ध्यात्वा देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥१ ॥
शैलाधिराजतनयां शङ्करप्रिय वल्लभां ।
तरुणन्दुनिभां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥२॥
सर्वभूत मनोरम्यां सर्वभूतेषु संस्थितां ।
सर्वसम्पत्करीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥३ ॥
पद्यालयां पद्महस्तां पद्मसम्भव सेविर्ता।
पद्मरागनिभां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥४॥
पञ्चवाण धनुर्बाण पाशाङ्कुशधरां शुभां ।
पञ्चब्रह्ममयीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥५ ॥
षट् पुण्डरीक निलयां षडानन सुपूजितां ।
षट् कोणान्तः स्थितां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥६ ॥
हरार्धभाग - निलयामम्बामद्रिसुतां मृडां।
हरिप्रियाऽनुजां बन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥६ ॥
अष्टैश्वर्य प्रदामम्बामष्टदिक्पाल सेवितां।
अष्टमूर्तिमयीं बन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥७॥
नवमणिक्य मुकुटां नवनाथ सुपूजितां ।
नवयौवन शोभायां वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥९ ॥
काञ्चीवास मनोरम्यां काञ्चीदाम विभूषितां।
काञ्ची पुरीश्वरीं बन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥१०॥
॥ फलश्रुति ॥
इति ते कथितं देवि ! सुन्दरी प्रीतिदायकं ।
महानिशाकाले पाठमात्रेण सिद्धिर्भवति ॥११॥
एकादश सहस्त्राणि संख्या चास्य पुरस्क्रिया ।
ततः काम्यार्थे प्रयोगान् साधयेत् साधकोत्तमः ॥१२॥
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकं ।
पाठमात्रेण सिद्धयन्ति सत्यं सत्यं न संशयः ॥१३॥
निष्कामो यः पठेन्नित्यं पञ्चतत्व समन्वितम् ।
धर्मार्थ काम मोक्षं च लभते नात्र संशयः ॥
इह लोके सुखं भुक्त्वा चान्ते देवी लोके वसेत् ॥१४॥
॥ सिद्धि यामले श्रीत्रिपुर सुन्दरी स्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
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