ललिता शतनाम स्तोत्र

श्री ( महाविद्या लकारादि ) ललिता शतनाम स्तोत्र

श्री ललिता को प्रेम, समृद्धि, ज्ञान, और मुक्ति का अवतार माना जाता है. श्री ललिता को सबसे शुद्ध और अकल्पनीय सौंदर्य, मासूमियत, और करुणा का अवतार माना जाता है. श्री ललिता को त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है. वह दस महाविद्याओं में से एक हैं और देवी दुर्गा के दस उग्र रूपों में शामिल हैं

कैलास शिखरासीनं देव देवं जगद-गुरुम्, 
पप्रच्छेशं परानन्दं भैरवी परमेश्वरम् ॥१ ॥

॥ श्री भैरव्युवाच ॥

कौलेश ! श्रोतुमिच्छामि सर्व-मन्त्रोत्तमोत्तमं, 
ललितायाशतनाम सर्वकामफल प्रदं ॥२॥

॥ श्रीभैरवोवाच ॥

शृणु देवि, महाभागे! स्तोत्रमेतदनुत्तमं, 
पठनाद् धारणादस्य सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ॥३ ॥

षट्‌कर्माणि सिद्धयन्ति स्तवस्यास्य प्रसादतः, 
गोपनीयं पशोरग्रे स्वयोनिमपरे यथा ॥४॥

॥ विनियोग ॥

ललिताया लकारादि नामशतकस्य देवि, 
राजराजेश्वरो ऋषिः प्रोक्तो छंदोऽनुष्टुप् तथा ।

देवता ललितादेवी षट्‌कर्म सिद्धयर्थे तथा, 
धर्मार्थ काममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ।

वाक्काम शक्तिवीजेन करषडङ्गमाचरेत्, 
प्रयोगे बालात्र्यक्षरी योजयित्वा जपं चरेत् ।

॥ स्तोत्रम् ॥

ललिता लक्ष्मी लोलाक्षी लक्ष्मणा लक्ष्मणार्चिता। 
लक्ष्मणप्राणरक्षिणी लाकिनी लक्ष्मणप्रिया ॥१ ॥ 

लोला लकारा लोमशा लोलजिह्वा लज्जावती। 
लक्ष्या लाक्ष्या लक्षरता लकाराक्षर भूषिता ॥२॥

लोल लयात्मिका लीला लीलावती च लाङ्गली। 
लावण्यामृत सारा च लावण्यामृत दीर्घिका ॥३॥

लज्जा लज्जामती लज्जा ललना ललनप्रिया। 
लवणा लवली लसा लाक्षकी लुब्धा लालसा ॥४॥

लोकमाता लोकपूज्या लोकजननी लोलुपा। 
लोहिता लोहिताक्षी च लिङ्गाख्या चैव लिङ्गेशी ॥५ ॥

लिङ्गगीतिः लिङ्गभवा लिङ्गमाला लिङ्गप्रिया। 
लिङ्गाभिधायिनी लिङ्गा लिङ्गनामसदानन्दा ॥६ ॥

लिङ्गामृतप्रीता लिङ्गार्चन-प्रीता लिङ्गपूज्या । 
लिङ्गरूपा लिङ्गस्था च लिङ्गालिङ्गन तत्परा ॥७॥

लतापूजन रता च लतासाधक तुष्टिदा। 
लतापूजक रक्षिणी लतासाधन सिद्धिदा ॥८ ॥

लतागृहनिवासिनी लता पूज्या लताराध्या। 
लतापुष्पा लतारता लताधारा लतामयी ॥९॥

लतास्पर्शन सन्तुष्टा लताऽऽलिङ्गन हर्षिता । 
लताविद्या लतासारा लताऽऽचारा लतानिधिः ॥१०॥ 

लवङ्गपुष्प सन्तुष्टा लवङ्गलता मध्यस्था। 
लवङ्गलतिकारूपा लवङ्गहोम सन्तुष्टा ॥११॥

लकाराक्षर पूजिता च लकार वर्णोद्भवा। 
लकारवर्ण भूषिता लकार वर्ण रुचिरा ॥१२॥

लकार बीजोद्भवा तथा लकाराक्षर स्थिता। 
लकार बीज निलया लकार बीज सर्वस्वा ॥१३॥

लकारवर्ण सर्वाङ्गी लक्ष्यछेदन तत्परा। 
लक्ष्यधरा लक्ष्यघूर्णा लक्षजापेन सिद्धिदा ॥१४॥

लक्षकोटिरूपधरा लक्षलीला कलालक्ष्या। 
लोकपालेनार्चिता च लाक्षाराग विलेपना ॥१५॥

लोकातीता लोपामुद्रा लज्जाबीज स्वरूपिणी।
लज्जाहीना लज्जामयी लोकयात्राविधायिनी ॥१६ ॥

लास्यप्रिया लयकरी लोकलया लम्बोदरी। 
लघिमादि सिद्धिदात्री लावण्यनिधि दायिनी ॥१७॥

लकार वर्ण ग्रथिता लंबीजा ललिताम्बिका। 
इति ते कथितं देवि गुह्याद् गुह्यतरं परम् ॥१८॥

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