श्री महाकाली ( मंत्र ) सूक्त

श्री महाकाली ( मंत्र ) सूक्त - Sri Mahakali

सनातन धर्म में मां काली की पूजा का बहुत महत्व है. मां काली को शक्ति सम्प्रदाय की प्रमुख देवी माना जाता है और वे कुल दस महाविद्याओं के स्वरूपों में से एक हैं. मां काली की पूजा से भय खत्म होता है, रोग मुक्त होते हैं, और शत्रुओं पर नियंत्रण होता है. मां काली की पूजा से तंत्र-मंत्र का असर भी खत्म हो जाता है. मान्यता है कि जो साधक सच्ची श्रद्धा के साथ मां काली की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें गुप्त शत्रुओं से छुटकारा मिलता है. मां काली की पूजा का उपयुक्त समय रात काल होता है

श्री महाकाली ( मंत्र ) सूक्त Sri Mahakali (Mantr) Sukta

विनियोगः

ॐ अस्य श्री महाकाली सूक्तस्य ॐ सदा शिव ऋषिः। ॐ जगति छन्दः । 
ॐ श्री महाकाली देवता। ॐ ॐ बार्ज। ॐ ह्रीं शक्तिः। ॐ कीलकं । 
ॐ श्री महाकाली प्रीत्यर्थ महाकालीसूक्त परायणे विनियोगः। 
हाँ ॐ ह्रीं ॐ ॐ है ॐ ही ॐ हुः से षडंग न्यास करें ॥

अथ करन्यासः-

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा। 
ॐ हूं मध्यमाभ्यां वषट्। ॐ हैं अनामिकाभ्यां हूं। 
ॐ ह्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् । ॐ ह्रः करतल कर पृष्ठाभ्यां फट् ।

अथ हृदयादि न्यासः

ॐ ह्रां हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा। ॐ हूं शिखायै वषट् । 
ॐ हैं कबचाय हूँ ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ ह्रः अस्वाय फट् ।

ध्यानम् :-

ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ घोरां भीम ण्गक्रमां दशकरैः खड्गेषु शूलंगदाम्, चक्रं पाशभुशुडिके च परशुं चापं शिरो विभ्रतीम्। वागीषां मधुकैटभ प्रमथिनीं ब्रह्मार्ति हंत्री पराम्ः त्रिंशाक्षेचन मंडितां दशमुखीं वंदे महाकालिकाम् ॥ ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥१॥ 

ॐ ह्रीं ॐ नमः ॐ ह्रीं ॐ सदा शिव उवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥२॥
( प्रत्येक श्रोक के पूर्व में ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ही ॐ तथा अंत में ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ का संपुट लगायें)

सुंदरी त्रिपुरा कामाकामिनी साधक प्रिया 
अमोघ सत्यं वचना विमोहा मोहरूपिणी ॥३॥ 
अमृतेशी च कल्याणी कारुण्या करुणालया। 
कलातीता कोमलांतः करणा विश्वनायिका ॥४॥ 
विघ्नकर्जी विघ्नहत्री विघ्नेशी विघ्न यक्षिणी। 
कामाख्या कामनिलया कामेशी भगमालिनी ॥५ ॥ 
त्रिखंडा योनिमुद्रा च धेनुमुद्रा च खेचरी। 
पाशांकुश द्राविणी च मोहिनी मद भंजिनी ॥६ ॥ 
मदप्रिया दुराराध्या काला काल विनाशिनी। 
काष्ठा कुलेशी कल्याणी सुकन्या कल्पकारिणी ॥७॥ 
कोमलांगी विश्वमाता युगेशानी युगंधरा। 
ब्रह्मा विष्णु महेशान मोहिनी स्तंभिनी परा ॥८ ॥ 
अमोघा सत्यसंकल्पा सत्याऽसत्य विनाशिनी। 
सत्यग्रामा सत्यवहा सत्यवश्या जनप्रिया ॥९॥ 
शरीर वासिनी वासा निर्मदा वामदक्षिणा। 
कपाल कुंडला काली कालिका कालनाशिनी ॥१०॥ 
गानप्रिया च गीतांगी सुगीता धर्मशालिनी। 
विश्वयोनि विश्वमाता विश्ववंधा क्रियामयी ॥११॥ 
तुष्टा व वाग्भिर्दिव्याभि महाकाली महेश्वरः। 
वेदवाणी सु तत्त्वामि लोंकानां हितकाम्यया ॥१२॥

॥ ॐ ह्रीं ॐ नमः ॐ ह्रीं ॐ सदा शिव उवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥१३ ॥

ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ शिवा मनन्यां विविध प्रभावां काली कलामालिनी विश्ववंद्या ।
कपाल खट्वांग धरां नृमुंडमाला विभीषां मृगचर्म शोभाम् ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥१४॥ 
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ सु शुष्क मांसा च शवासनस्थां विभीषणर्णा भीषयन्तीं सुराऽसुरीन् । 
रक्त प्रियां मौसम दावि पूर्णा कालीं शरण्यां शरणं व्रजामि ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥१५॥ 
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ सुघोर बीजं च कपीश्वरश्च चिंतामणिः कुब्जिक कामरूपे । 
विद्या सुविद्यासु च कामरार्ज कामः कलामालिनी कालराजम् ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥१६॥
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ वहेवधु मंत्रराजो यमीशे विश्वं पुनातीश्वरि देवि बंद्ये ।
मंत्रेण चानेन सिध्यंति सर्वां सुसिद्धयः सर्व जगन्निवासे ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥१७॥
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ पंचार युग्मंच त्रिकोण युग्मं पुनश्च पंचार युगेन बद्धम । 
कला प्रकोष्ठ किल भू गृहंच यंत्रेश्वरं ते च पदाब्ज वासम् ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥१८॥ 
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ संपूज्य यंत्रं तव विश्वनायिके निष्यापिनस्ते सहसा भवंति । 
ये साधकास्तव मार्गानुसारिणः कुलान्नुवृत्या परमापवित्रा ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥१९॥ 
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ ते सिद्धि ऋद्धिं च यशोनुगम्यां नृणां वशीकृत्य भवंती भूपाः । 
समस्त मंत्रेण विधायचांगं न्यासादिकं भक्ति सुभाव मुक्ताः ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२०॥ 
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ ते किंकरी कृत्य गृणंति देवा नित्ये जगत्येक विभूति युक्ते । 
नवदामि चान्यं न शृणोमि चान्यं न गृणामि चान्यंन विचिंतयामि ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२१॥ 
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ नस्मरामि चान्यंन भजामि चान्यंन ध्यायामि चान्यंन वितर्कयामि । 
नगायामि चान्यं तव पादमंत्रात्वां विश्वयोनिं शरणं प्रपद्ये ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२२ ॥

॥ ॐ ह्रीं ॐ नमः ॐ ह्रीं ॐ ऋषि रुवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥२३॥

ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ इति वाक्यं समाकर्ण्य परमामृत सन्निभम् ।
प्रसन्नाभून्महाकाली वियताऽभीप्सितो वरः ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२४॥ 
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ इत्युक्त्वा च विशालाक्षी शंभोरानन्ददायिनी । 
प्रसन्ना परमाहलाद संयुता शिव भाषणात् ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२५॥

॥ ॐ ह्रीं ॐ नमः औं ही ॐ श्री देव्युवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥

ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ ब्रियतां मन सोभीष्टो वरो जगति दुर्लभ । 
दास्याम्यद्यामि दातव्यं तव स्तुत्या वशीकृता ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२६॥

॥ ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ सदा शिव उवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥

ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ कुला चारेण ते देवि मतिस्तु कदाचन । 
शिथिला देव देवेशि सूक्तं च सफलं तव ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२७॥

॥ श्री देव्युवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥

ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ शृणुध्वं प्रीति संयुक्ता ब्रह्मा विष्णु महेश्वराः। 
देवीसूक्तं परं ध्यान् भविष्यति वरार्थदम् ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२८॥ 
ॐ ह्रीं हूं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ह्रीं क्लीं स्वाहा। बिना त्रिसूक्तं च पठैद्यस्तु सप्तशतीं नरः । 
मातृगामी स विज्ञेयो नरका वास तत्परः। ममाऽवज्ञाऽपराधेन ब्रह्मा घ्नानां गतिं ब्रजेत्।

॥ इति श्री महाकाली ( मंत्र ) सूक्त  सम्पूर्णम् |

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