श्री महाकाली ( मंत्र ) सूक्त - Sri Mahakali
श्री महाकाली ( मंत्र ) सूक्त Sri Mahakali (Mantr) Sukta
विनियोगः
अथ करन्यासः-
अथ हृदयादि न्यासः
ध्यानम् :-
ॐ ह्रीं ॐ नमः ॐ ह्रीं ॐ सदा शिव उवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥२॥
( प्रत्येक श्रोक के पूर्व में ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ही ॐ तथा अंत में ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ का संपुट लगायें)
सुंदरी त्रिपुरा कामाकामिनी साधक प्रिया
अमोघ सत्यं वचना विमोहा मोहरूपिणी ॥३॥
अमृतेशी च कल्याणी कारुण्या करुणालया।
कलातीता कोमलांतः करणा विश्वनायिका ॥४॥
विघ्नकर्जी विघ्नहत्री विघ्नेशी विघ्न यक्षिणी।
कामाख्या कामनिलया कामेशी भगमालिनी ॥५ ॥
त्रिखंडा योनिमुद्रा च धेनुमुद्रा च खेचरी।
पाशांकुश द्राविणी च मोहिनी मद भंजिनी ॥६ ॥
मदप्रिया दुराराध्या काला काल विनाशिनी।
काष्ठा कुलेशी कल्याणी सुकन्या कल्पकारिणी ॥७॥
कोमलांगी विश्वमाता युगेशानी युगंधरा।
ब्रह्मा विष्णु महेशान मोहिनी स्तंभिनी परा ॥८ ॥
अमोघा सत्यसंकल्पा सत्याऽसत्य विनाशिनी।
सत्यग्रामा सत्यवहा सत्यवश्या जनप्रिया ॥९॥
शरीर वासिनी वासा निर्मदा वामदक्षिणा।
कपाल कुंडला काली कालिका कालनाशिनी ॥१०॥
गानप्रिया च गीतांगी सुगीता धर्मशालिनी।
विश्वयोनि विश्वमाता विश्ववंधा क्रियामयी ॥११॥
तुष्टा व वाग्भिर्दिव्याभि महाकाली महेश्वरः।
वेदवाणी सु तत्त्वामि लोंकानां हितकाम्यया ॥१२॥
॥ ॐ ह्रीं ॐ नमः ॐ ह्रीं ॐ सदा शिव उवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥१३ ॥
॥ ॐ ह्रीं ॐ नमः ॐ ह्रीं ॐ ऋषि रुवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥२३॥
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ इति वाक्यं समाकर्ण्य परमामृत सन्निभम् ।
प्रसन्नाभून्महाकाली वियताऽभीप्सितो वरः ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२४॥
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ इत्युक्त्वा च विशालाक्षी शंभोरानन्ददायिनी ।
प्रसन्ना परमाहलाद संयुता शिव भाषणात् ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२५॥
॥ ॐ ह्रीं ॐ नमः औं ही ॐ श्री देव्युवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ ब्रियतां मन सोभीष्टो वरो जगति दुर्लभ ।
दास्याम्यद्यामि दातव्यं तव स्तुत्या वशीकृता ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२६॥
॥ ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ सदा शिव उवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ कुला चारेण ते देवि मतिस्तु कदाचन ।
शिथिला देव देवेशि सूक्तं च सफलं तव ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२७॥
॥ श्री देव्युवाच ॐ ह्रीं ॐ मः नहीं ॐ ॥
ॐ ह्रीं ॐ नमः ओं ह्रीं ॐ शृणुध्वं प्रीति संयुक्ता ब्रह्मा विष्णु महेश्वराः।
देवीसूक्तं परं ध्यान् भविष्यति वरार्थदम् ॐ ह्रीं ॐ मः न ह्रीं ॐ ॥२८॥
ॐ ह्रीं हूं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ह्रीं क्लीं स्वाहा। बिना त्रिसूक्तं च पठैद्यस्तु सप्तशतीं नरः ।
मातृगामी स विज्ञेयो नरका वास तत्परः। ममाऽवज्ञाऽपराधेन ब्रह्मा घ्नानां गतिं ब्रजेत्।
॥ इति श्री महाकाली ( मंत्र ) सूक्त सम्पूर्णम् |
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