सोम वंश की कथा में धन्व तथा ययाति का चरित्र वर्णन,Som Vansh Kee Katha Mein Dhanv Tatha Yayaati Ke Charitr Ka Varnan

सोम वंश की कथा में धन्व तथा ययाति का चरित्र वर्णन

सूतजी बोले- हे ऋषियो! त्रिधन्वा ने देव तण्डि की कृपा से हजार अश्वमेध यज्ञ का फल पाकर गाणपत्य पद को प्राप्त किया। उसका पुत्र त्रय्यारुण नाम वाला हुआ। उसका भी पुत्र सत्यव्रत हुआ जिसने विदर्भ की भार्या का हरण किया। चूंकि उसने बिना पाणिग्रहण मन्त्र आदि से उसका हर लिया था इससे उसके पिता ने उसे त्याग दिया। पिता के द्वारा निकाले जाने पर वह पिता से बोला कि मैं अब कहाँ रहूँ तो पिता ने कहा कि तू चाण्डालों में जाकर रह। ऐसा कहकर पिता तो जङ्गल तप हेतु चला गया। वह सत्यव्रत सर्वलोक में त्रिशंकु के नाम से विख्यात हुआ। विश्वामित्र ने उसे पिता के राज्य पर बिठाकर यज्ञ कराया और उसे शरीर सहित स्वर्ग भेजा। उसकी भार्या ने हरिश्चन्द्र नाम का पुत्र उत्पन्न किया। उसके भी एक पुत्र हुआ जिसका नाम रोहित रखा गया। उसी वंश में सगर हुआ।


सगर की दो भार्या थीं, प्रभा और भानुमती। प्रभाव के ६० हजार पुत्र हुए और दूसरी भानुमती के केवल एक ही पुत्र हुआ जिसका नाम असमंजस था। सगर के साठ हजार पुत्र पृथ्वी को खोदते हुए कपिल मुनि के हुंकारसे दग्ध होकर मर गए। असमंजस का पुत्र अंशुमान, उसका पुत्र दिलीप और उसका पुत्र भगीरथ हुआ, जिसने तपस्या करके पृथ्वी पर गंगा का अवतरण कराया। भगीरथ का पुत्र श्रुत हुआ, उनका नाभाग। नाभाग का अम्बरीष पुत्र हुआ। ये इक्ष्वाकु कुल के ही राजा हैं। इसी वंश में राजा हैं। इसी वंश में राजा दीर्घबाहु हुआ। उसका पुत्र दिलीप, दिलीप का रघु, रघु का अज और अज का दशरथ पुत्र हुआ। दशरथ के राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न चार पुत्र हुये। राम के लव और कुश दो पुत्र हुये। राम ने रावण को मारा और पृथ्वी पर दस हजार वर्ष तक राज्य किया। ये इक्ष्वाकु वंश में होने वाले सभी राजा रुद्र के भक्त थे। सब ही पाशुपत ज्ञान का अध्ययन करके यज्ञ द्वारा शिव को प्रसन्न कर स्वर्गवासी हुए।

पुरुरवा नाम का एक शिव भक्त राजा हुआ जिसके वंश में नहुष हुआ। नहुष के ६ पुत्र हुये जिनके नाम यति, ययाति, संपाति, आयाति, अन्धक, विजाति थे। ज्येष्ठ पुत्र यति तो मोक्षार्थी होकर ब्रह्म में लीन हो गया। पाँचों में सबसे श्रेष्ठ ययाति था। उसकी देवयानी शुक्राचार्य की पुत्री और शर्मिष्ठा वृषवर्मा की पुत्री दो भार्या थीं। यदु और तुर्वसु दो पुत्र देवयानी के हुये और हुह्य, अनु, पुरु तीन शर्मिष्ठा के हुये। शुक्र ने ययाति को स्वर्ण मय रथ दिव्य घोड़ों से युक्त तथा दिव्य बाणों से युक्त दो तरकस दिये थे। जिनसे ययाति ने ६ महीने के भीतर ही सब पृथ्वी को जीत लिया था। ययाति ने छोटे पुत्र पुरु को राज्याभिषेक करने की तैयारी की तब ब्राह्मणादि सभी वर्ण के मनुष्य कहने लगे कि बड़े पुत्र यदु के होते हुये छोटे पुत्र शुक के दौहित्र देवयानी के पुत्र को क्यों अभिषेक करना चाहते हो ? ये सब ब्राह्मण उसे धर्म की बात समझाने लगे कि हे राजा! तुम धर्म का पालन करो।

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