श्री षोडशी ( महाविद्या )अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
॥ भृगुरुवाच ॥
विनियोगः
श्रीषोडशी देवता।
धर्मार्थ काम मोक्ष सिद्धये पाठे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासं कृत्वा।
ॐ त्रिपुरा षोडशी माता त्र्यक्षरा त्रितया त्रयी।
सुन्दरी सुमुखी सेव्या सामवेद परायणा ॥
शारदा शब्दनिलया सागरा सरिदम्बरा।
शुद्धा शुद्ध तनुः साध्वी शिवध्यान परायणा ॥
स्वामिनी शंभुवनिता शांभवी च सरस्वती ।
समुद्रमथिनी शीघ्रगामिनी शीघ्रसिद्धिदा ॥
साधुसेव्या साधुगम्या साधुसंतुष्ट मानसा।
खट्वाङ्ग धारिणी खर्वां खड्ग खर्पर धारिणी ॥
षड्वर्ग भाव रहिता षड्वर्ग परिचारिका।
षड्वर्गा च घडंगा च षोढा षोडश वार्षिकी ॥
ऋतुरूपा क्रतुमती ऋभुक्षक्रतु मण्डिता।
कवर्गादि पवर्गान्ता अन्तःस्था अन्तरूपिणी ॥
अकाराकार रहिता कालमृत्यु जरापहा।
तन्वी तत्त्वेश्वरो तारा त्रिवर्षों ज्ञानरूपिणी ॥
काली कराली कामेशी च छाया संज्ञाप्यरुंधती।
निर्विकल्पा महावेगा महोत्साहा महोदरी ॥
मेधा बलाका विमला विमल ज्ञानदायिनी।
गौरी वसुन्धरा गोप्वी गवांपति निषेविता ॥
भगाङ्गा भगरूपा च भक्तिभाव परायणा ।
छिन्नमस्ता महाधूमा तथा धूम्रविभूषणा ॥
धर्मकर्मादि रहिता धर्मकर्म परायणा।
सीता मातङ्गिनी मेधा मधुदैत्य विनाशिनी ॥
भैरवी भुवना माताऽभयदा भवसुन्दरी।
भावुका बगला कृत्या बालात्रिपुरसुन्दरी ॥
रोहिणी रेवती रम्या रम्भा रावण वन्दिता ।
शतयज्ञमयी सत्वा शतक्रतुवरप्रदा ॥
शतचन्द्रानना देवी सहस्त्रादित्य सन्निभा ।
सोमसूर्याग्नि नयना व्याघ्रचर्माम्बरावृता ॥
अर्द्धन्दु धारिणी मत्ता मदिरा मदिरेक्षणा।
इति ते कथितं गोप्यं नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥
सुन्दर्याः सर्वदा सेव्यं महापातक नाशनं।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं कलौ युगे ॥
सहस्त्रनाम पाठस्य फलं यद् व प्रकीर्तितम्।
तस्मात्कोटिगुणं पुण्यं स्तवस्यास्य प्रकीर्तनात् ॥
पठेत् सदा भक्तियुतो नरो तु
यो निशीथ कालेऽप्यरुणोदये वा ।
प्रदोषकाले नवमीदिनेऽथवा लभेत्
भोगान् परमाद्भुतान् प्रियान् ॥
॥ ब्रहायामले षोडश्यष्टोत्तरशत नामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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