श्री (महाविद्या) षोडशी हृदय स्तोत्र,Shri (Mahavidya) Shodashi Hridaya Stotra

श्री (महाविद्या) षोडशी हृदय स्तोत्र

षोडशी हृदय स्तोत्र, त्रिपुर सुंदरी स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है. त्रिपुर सुंदरी को राजराजेश्वरी, कामाक्षी, और ललिता के नाम से भी जाना जाता है. यह एक हिंदू देवी हैं और शक्तिवाद परंपरा से जुड़ी हुई हैं. इन्हें दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है.

 षोडशी हृदय स्तोत्र Shodashi Hridaya Stotra

कैलासे करुणाक्रान्ता परोपकृतिमानसा, 
पप्रच्छ करुणासिन्धुं सुप्रसत्रं महेश्वरं ।

॥ श्रीपार्वत्युवाच ॥

आगामिनि कलौ ब्रह्मन् धर्म-कर्मविवर्जिताः, 
भविष्यन्ति जनास्तेषां कथं श्रेयो भविष्यति ?

॥ शिव उवाच ॥

शृणुदेवि प्रवक्ष्यामि तव स्नेहान्महेश्वरि दुर्लभं यत् त्रिलोकेषुसुन्दरी हृदयस्तवं । 
ये नरा दुःख सन्तप्ता दारिद्रय हृत मानसाः अस्यैव पाठ मात्रेण तेषां श्रेयो भविष्यति ॥

विनियोगः 

ॐ अस्य श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी हृदयस्तोत्र मन्त्रस्य श्रीआनन्दभैरवः ऋषिः। 
देवी गायत्रीश्छन्दः। श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी देवता। ऐं बीजं। सौः शक्तिः। 
क्लीं कीलकं। धर्मार्थ-काम-मोक्षार्थे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यासः 

श्रीआनन्दभैरवाय ऋषये नमः शिरसि। देवी गायत्रीछन्दसे नमः मुखे।
श्रीमहात्रिपुरसुन्दरी देवतायै नमः हृदये। ऐं बीजाय नमः लिङ्गे।
सौः शक्तये नमः नाभी। क्लीं कीलकाय नमः मूलाधारे।
धर्मार्थ- काम-मोक्षार्थे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।

षडङ्गन्यासः                           करन्यास               अङ्गन्यासः

  •  ऐं ह्रीं क्लीं                           अंगुष्ठाभ्यां नमः            हृदयाय नमः
  •  क्लीं श्रीं सौः ऐं                     तर्जनीभ्यां नमः             शिरसे स्वाहा
  •  सौः ॐ ह्रीं श्रीं                     मध्यमाभ्यां नमः             शिखायै वषट्
  • ऐं कएईलहीं हसकहलहीं    अनामिकाभ्यां नमः         कवचाय हुँ
  • क्लीं सकलहीं                   कनिष्ठिकाभ्यां नमः           नेत्रत्रयाय वौषट्
  •  सौः सीः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं      करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः    अस्वाय फट्

॥ ध्यानम् ॥

बालव्यक्त विभाकरामितनिभां भव्यप्रदां भारतीम्,
ईषत् फुल्लएम्ब्राम्बुजस्मित् करैराशाभवान्धापहाम् ।
पाशं साभयमंकुशं च वरदं सम्बिभ्रतीं भूतिदाम्,
भ्राजन्तीं चतुरम्बुजाकृति करैर्भक्त्या भजे सुन्दरीम् ॥

॥ षोडशी हृदय स्तोत्र ॥

सुन्दरी सकल कल्मषापहा कोटिकञ्जप्रिय काम्यकान्तिका ।
कोटिकल्पकृत पुण्य कर्मणा पूजनीय पदपुण्यपुष्करा ॥१ ॥

शर्वरीश सम सुन्दरानना श्रीश-शक्ति सुकृताश्रय श्रिता ।
सज्जनानु शरणीय सत्पदा सङ्कटे सुरगणैः सुवन्दिता ॥२ ॥

या सुरासुर-रणे जयान्विता आजधान जगदम्बिकाऽजिता ।
तां भजामि जगतां जनिं जयां युद्धयुक्त दितिजान् सुदुर्जयान् ॥३॥

योगिनां हृदय सङ्गतां शिवां योगयुक्त मनसां यतात्मनाम् ।
जाग्रतीं जगति यत्नतो द्विजा यां जपन्ति हृदि तां भजाम्यहम् ॥४॥

कल्पकास्तु कलयन्ति कालिकां यत् कला कलि जनोपकारिकाम् । 
कौल कालि कलितांचि कञ्जकां तां भजामि कलिकल्मषापहाम् ॥५ ॥

बालार्कानन्त शोचिनिंज तनु किरणैर्दीपयन्तीं दिगन्तान् 
दीप्तैर्देदीप्यमानां दनुज दल वनानल्प दावानलाभाम् ।

दान्तो दन्तोग्रचित्तान् दलितदितिसुतान् दर्शनीयान् दुरन्तान् 
देवीं दीनार्द्रचित्तान् हृदि मुदितमनाः सुन्दरीं संस्मरामि ॥६ ॥

धीरान् धन्यान् धरित्रीं धवविधृत शिरोधूत धूल्यब्ज पादान् 
धृष्टान् धाराधराधो विनिधृत चपला चारु चन्द्रत् प्रभाभाम् ।

धर्मान् धूतोपहारान् धरणि सुरधवोद्धारिणीं ध्येय रूपाम्
धीमद्धन्याऽतिधन्यां धनद-धनवृतां सुन्दरों चिन्तयामि ॥७ ॥

जयतु जयतु जल्या योगिनी योगयुक्ता जयतु जयतु सौम्या सुन्दरी सुन्दरास्या । 
जयतु जयतु पद्मा पद्मिनी केशवस्य जयतु जयतु काली कालिनी कालकान्ता ॥८ ॥

जयतु जयतु खर्वा षोडशी वेदहस्ता जयतु जयतु धात्री धर्मिणी धातृशक्तिः ।
जयतु जयतु वाणी ब्राह्मणा ब्रह्मवन्द्या जयतु जयतु दुर्गा दारिणी देवशत्रोः ॥

देवी त्वं सृष्टिकाले कमलभवभूता राजसी रक्तरूपा
रक्षाकाले त्वमम्बा हरिहृदय धृता सात्विकी श्वेतरूपा

भूरि कोधा भवान्ते भवभवन गता तामसी कृष्णरूपा
एताश्चान्यास्त्वमेव क्षितिमनुज मत्ता सुन्दरी केवलाद्या ॥१०॥

सुमल सुमनमेतद् देवि गोप्यं गुणने ग्रहण मनन योग्यं षोडशीयं खलघ्नम् ।
सुरतरुसमशीलं सम्प्रदं पाठकानां प्रभवति हृदयाख्यं स्तोत्रमत्यन्त मान्यम् ॥११॥

इदं त्रिपुरसुन्दर्याः षोडश्याः परमाद्भुतं यः शृणोति नरः स्तोत्रं स सदा सुखमश्नुते ॥१२॥

श्रीत्रिपुरसुन्दरीतन्त्रे हृदयाखर्म स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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