ललिता सौभाग्य प्रद अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

श्री ( महाविद्या ) ललिता सौभाग्य प्रद अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि मिलती है. नवरात्रि में रोज़ाना ललिता शतनाम स्तोत्र का पाठ करने से मां ललिता की कृपा मिलती है

विनियोगः- 

ॐ अस्य श्रीसौभाग्याष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रस्य श्रीभार्गव ऋषिः, 
अनुष्टुप् छन्दः, क-५ कएईल ह्रीं बीजं, 
स-४ सकल ह्रीं शक्तिः, ह-६ हसकहल ह्रीं उत्कीलनं, 
श्रीललिताम्बा देवता प्रसाद सिद्धये पाठे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यासः :- 

श्रीभार्गव ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। 
श्रीललिताम्बादेवतायै नमः हृदयाय। कएईल ह्रीं बीजाय नमः लिङ्गे।

सकलह्रीं शक्तये नमः नाभौ। हसकहल ह्रीं उत्कीलनाय नमः सर्वाङ्गे। 
श्रीललिताम्बा प्रसाद सिद्धये पाठे विनियोगाय नमः अंजली।

मूल मंत्र से षडङ्ग न्यासादि कर ध्यान करे। यथा- 

बालार्क मण्डलाभासां चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम् ।
पाशांकुश धनुर्वाणन्  धारयन्तीं शिवां भजे ॥

ध्यान कर मानस पूजा करे। योनि मुद्रा से प्रणाम कर स्तोत्र पढ़ें। यथा-

ऐं ह्रीं श्रीं ॐ कामेश्वरीकामशक्तिः कामसौभाग्यदायिनी। 
कामरूपाकामकला कामिनी कमलासना ॥१ ॥ 

कमला कलना हीना कमनीया कलावती। 
पद्मपा भारती सेव्या कल्पिताऽशेष संस्थितिः ॥२ ॥

अनुत्तराऽनघाऽनन्ताऽद्भुत रूपाऽनलोद्भवा । 
अतिलोक चरित्राऽतिसुन्दर्यति शुभप्रदा ॥३ ॥

विश्वाद्या चातिविस्ताराऽर्चन तुष्टाऽमितप्रभा । 
एक रूपैक वीरैक नाथैकान्तार्चन प्रिया ॥४॥

एकैक - भावतुष्टैक रसैकान्त जनप्रिया। 
एधमानप्रभा वैध भक्तपातकनाशिनी ॥५॥

एलामोद मुखैनोंऽद्रि शक्तायुध समस्थितिः । 
ईहा शून्येप्सितेशादि सेव्येशानवराङ्गना ॥ ६॥

ईश्वराज्ञापिकेकार भाव्येप्सित फलप्रदा । 
ईशानति हरेशैषा चारुणाक्षीश्वरेश्वरी ॥७॥

ललिता ललनारूपा लयहीना लसत्तनुः । 
लयसर्वा लयक्षोणिर्लय कीं लयात्मिका ॥८॥

लघिमा लघुमध्यामढ्या ललमाना लघुद्रुता । 
हयारूढा हताऽमित्रा हरकान्ता हरिस्तुता ॥९ ॥

हयग्रीवेष्टदा हालाप्रिया हर्षसमुद्भवा । 
हर्षणा हल्लकाभाङ्गी हस्त्यन्तैश्वर्य दायिनी ॥१०॥

हलहस्तार्चितपदा हविर्दान प्रसादिनी। 
रामा रामार्चिता राज्ञी रम्या रवमयी रतिः ॥११॥

रक्षिणी रमणी राकाऽऽदित्यादिमण्डलप्रिया।
रक्षिताऽखिल लोकेशी रक्षोगण निषूदिनी ॥१२॥

अन्तान्त कारिण्यम्भोज क्रियान्तक भयङ्करी। 
अम्बुरूपाम्बुज कराऽम्बुज जातवरप्रदा ॥१३॥

अन्तः पूजा क्रियान्तःस्था अन्तर्ध्यान वचोमयी । 
अन्तकाऽराति वामाङ्ग स्थिताऽन्तः सुख रूपिणी ॥१४ ॥

सर्वज्ञा सर्वगा सारा समा समसुखा सती । 
सन्ततिः सन्तता सोमा सर्वां सांख्या सनातनी ॥१५ ॥

॥ फलश्रुति ॥

एतत् ते कथितं देवि ! नाम्नामष्टोत्तरं शतम् । 
अति गोप्यमिदं स्तोत्रं सर्वतो सारमुद्धृतम् ॥१ ॥ 

एतच्छदृशं स्तोत्रं त्रिषुलोकेषु दुर्लभम्। 
अप्रकाश्यमभक्तानां पुरतो देवता द्विषम् ॥२॥

एतत् सदा शिवो नित्यं पठन्त्यन्ये हरादयः । 
एतत् प्रभावात् कन्दर्पः त्रैलोक्यं जयति क्षणात् ॥३॥

सौभाग्याष्टोत्तर शतनामस्तोत्र मनोहरम् । 
यस्विसन्ध्यं पठेन्नित्यं न तस्य भुवि दुर्लभम् ॥४॥

श्रीविद्योपासन वतौ एतदावश्यकं मतम् । 
सकृदेतत् प्रपठतां नान्यकर्म विलुप्यते ॥५ ॥

अपठित्वा स्तोत्रमिदं नित्यं नैमितिकं कृतम् ।
व्यर्थी भवति तन्नर कृतं कर्म यथा तथा ॥६ ॥

सहस्त्रनाम पाठादौ पठेत् स्तोत्रं शुभप्रदम्। 
सहस्त्रनाम पाठस्य फलं शतगुणं भवेत् ॥७॥

सहस्त्रपठनाद् ध्याता वीक्षणान्नाशयेद् रिपून्। 
करवीरैः रक्तपुष्पैर्हृत्वा लोकान् वशं नयेत् ॥८॥

स्तम्भयेत् पीत कुसुमैर्नीलैरुच्चाटयेद् रिपून्। 
मरीचिर्विद्वेषणाय लवङ्गैव्याधिं नश्यते ॥९॥

पत्रपुष्यैः फलैर्वापि पूजयेत् प्रतिनामभिः । 
चक्रराजेऽथवाऽन्यत्र स वसेच्छी पुरंचिरम् ॥१०॥

यः सदाऽऽवर्तयन् आस्ते नामाष्टशतमुत्तमम् । 
तस्य श्रीललिता माता प्रसन्ना वाञ्छितप्रदा ॥११॥

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