ललिता सहस्रनाम स्तोत्र ,Shri (Mahavidya) Lalita Sahasranama Stotra

श्री ललिता सहस्रनाम स्तोत्र

ललिता सहस्रनाम स्तोत्र में देवी मां के एक हज़ार नामों का जाप होता है. हर नाम का अपना मतलब होता है और हर नाम से देवी का कोई गुण या विशेषता बताई जाती है ललिता को स्वयं कुंडलिनी ऊर्जा के रूप में माना गया है. कुंडलिनी ऊर्जा को मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र तक पहुंचने के लिए अन्य चक्रों को पार करना पड़ता है मां ललिता की कृपा पाने का सबसे अच्छा तरीका है नवरात्रि में रोज़ाना ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करना ललिता सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में हमेशा खूब सुख, शांति, और समृद्धि मिलती है.

विनियोग:- 

ॐ अस्य श्रीललिता सहस्त्रनाम स्तोत्रमालामन्त्रस्य श्रीवशिन्यादि वाग्देवता ऋषयः। 
अनुष्टुप् छन्दः। श्रीललिताऽम्बा देवता। कएईलीं बीजम् ॥ सकलडीं शक्तिः। 
हसकहलहीं कीलकम्। श्रीललिताऽम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।

ऋष्यादि न्यासः-

श्रीवशिन्यादि वाग्देवता ऋषिभ्यो नमः शिरसि। अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे। 
श्रीललिताऽम्बा देवतायै नमः हृदि। कएईलहीं बीजाय नमः गुह्ये। 
सकलह्रीं शक्तये नमः पादयोः। हसकहलहीं कीलकाय नमः सर्वाङ्गे।
श्रीललिताऽम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अञ्जली।

मंत्र                                           करन्यासः           -  अङ्गन्यासः

ऐं क-५ (क-५ कएईल ह्रीं)          अंगुष्ठाभ्यां नमः     -  हृदयाय नमः
क्लीं ह-६ (ह-६ हसकहल ह्रीं)      तर्जनीभ्यां नमः     -  शिरसे स्वाहा
सौः स-४  (स-४ सकल हीं)         मध्यमाभ्यां नमः    - शिखायै वषट्
ऐं क-५                                    अनामिकाभ्यां नमः    - कवचाय हूँ
   क्लीं ह-६                               कनिष्ठिकाभ्यां नमः   - नेत्रत्रयाय वौषट्
        सौः स-४                                  करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः -  अस्वाय फट्

॥ ध्यानम् ॥

सिन्दूरारुण विग्रहां त्रिनयनां स्फुरत् माणिक्यमौलि
तारानायक शेखरां स्मितमुखीमापीन वक्षो रुहाम् ।
पाणिभ्यामलिपूर्ण रत्नचषकं रक्तोत्पलं बिभ्रतीम्,
सौम्यां रत्नघटस्थ रक्तचरणां ध्याये परामम्बिकाम् ॥

मानस पूजनम् : 

लं पृथिव्यात्मकं गन्धं समर्पयामि नमः, अधोमुखः कनिष्ठा अंगुष्ठ। 
हे आकाशात्मकं पुष्पं, समर्पयामि नमः, अधोमुख तर्जनी अंगुष्ठ। 
यं वाय्वात्मकं धूपं प्रापयामि नमः ऊध्र्व्वमुख तर्जनी अंगुष्ठ। 
वह्नधात्मकं दीपं दर्शयामि नमः, मध्यमा अंगुष्ठ। 
वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि नमः, अनामा अंगुष्ठ। 
से सर्वात्मकं ताम्बूलं समर्पयामि नमः, सर्वांगुलि।

श्रीहयग्रीव उवाचः ॥

॥ अथ प्रथम शतके नाम द्वितीया तापिनी कला ॥
श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी, श्रीमत् सिंहासनेश्वरी। 
चिदग्निकुण्ड-सम्भूता, देवकार्य समुद्यता ॥१ ॥ 
उद्य‌द्भानु सहस्त्राभा, चतुर्बाहु समन्विता। 
रागस्वरूप पाशाढ्या, क्रोधाकारांकुशोज्ज्वला ॥२॥ 
मनोरूपेक्षु-कोदण्डा, पञ्चतन्मात्र सायका। 
निजारुण-प्रभा पूर मज्जद् ब्रह्माण्डमण्डला ॥३॥ 
चम्पकाशोक पुत्राग सौगन्धिक लसत्कचा। 
कुरुविन्दमणि श्रेणी कनत्‌कोटीर मण्डिता ॥४॥ 
अष्टमीचन्द्र विधाजद‌लिक स्थल शोभिता। 
मुखचन्द्र कलङ्काभ मृगनाभि विशेषका ॥५॥ 
बदनस्मर माङ्गल्य गृहतोरण चिलिका। 
वक्त्र लक्ष्मी परीवाह चलन्मीनाभ लोचना ॥६॥ 
नवचम्पक पुष्पाभ नासा दण्ड विराजिता । 
ताराकान्ति तिरस्कारि नासाऽऽभरण भासुरा ॥७॥ 
कदम्बमञ्जरी क्लृप्त कर्णपूर मनोहरा।
ताटङ्क युगलीभूत तपनोडुप मण्डला ॥८ ॥
पद्मराग शिलाऽऽदर्श परिभावि कपोल भूः। 
नवविद्रुम बिम्ब श्रीन्यक्कारि दशनच्छदा ॥९॥ 
शुद्ध विद्यांकुराकार द्विजपंक्ति द्वयोज्ज्वला। 
कर्पूरवीटिकामोद समाकर्षि दिगन्तरा ॥१०॥ 
निजसंल्लाप माधुर्य विनिर्भर्सित कच्छपी। 
मन्दस्मित प्रभापूर मन्जत्कामेश मानसा ॥११॥ 
अनाकलित सादृश्य चिबुक श्रीविराजिता। 
कामेशबद्ध माङ्गल्यसूत्र शोभित कन्धरा ॥१२॥ 
कनकाङ्गद केयूर कमनीय भुजान्विता। 
रत्न ग्रैवेय चिन्ताकलोल मुक्ताफलान्विता ॥१३॥ 
कामेश्वरप्रेम रत्नमणि प्रतिपण स्तनी। 
नाभ्यालवाल रोमालि-लताफल कुचद्वयी ॥१४॥ 
लक्ष्यरोम लताधारता समुत्रेय मध्यमा । 
स्तनभार दलन्मध्य पट्टबन्ध बलित्रया ॥१५॥ 
अरुणारुण कौसुम्भ वस्त्र भास्वत् कटी तटी। 
रत्न किङ्किणिका रम्य रशना दाम भूषिता ॥१६॥ 
कामेश ज्ञात सौभाग्यमार्दवोरु द्वयान्विता । 
माणिक्यमुकुटाकार जानुद्वय विराजिता ॥१७॥ 
इन्द्रगोप परिक्षिप्त स्मरतूणाभ जङ्गिका। 
गूढगुल्फा कूर्मपृष्ठ जयिष्णुप्रपदान्विता ॥१८॥
नख दीधिति सञ्छन्न नमज्जन तमोगुणा। 
पदद्वय प्रभाजाल पराकृत सरोरुहा ॥१९॥ 
शिञ्जानमणि मञ्जीर मण्डित श्रीपदाम्बुजा। 
मराली मन्दगमना महालावण्य शेवधिः ॥२०॥ 
सर्वारुणाऽनवद्याङ्गी सर्वाभरणभूषिता। 
शिव कामेश्वराङ्कस्था, शिवा स्वाधीन वल्लभा ॥२१॥ 
सुमेरुशृङ्ग मध्यस्था श्रीमन्नगर नायिका। 
चिन्तामणि गृहान्तस्था, पञ्चब्रह्मासनस्थिता ॥२२॥ 
महापद्याटवी संस्था, कदम्बवन वासिनी। 
सुधासागर मध्यस्था कामाक्षी कामदायिनी ॥२३॥ 
देवर्षिगणसङ्घात स्तूय मानात्मवैभवा । 
भण्डासुर वधोद्युक्त शक्तिसेनासमन्विता ॥२४॥ 
सम्यत्करी समारूढ सिन्धुर व्रजसेविता । 
अश्वारूढाऽधिष्ठिताश्व कोटिकोटभिरावृता ॥२५॥ 
चक्रराज रथारूढ सर्वायुध परिष्कृता। 
गेयचक्र रथारूड मन्त्रिणी परिसेविता ॥२६ ॥
किरिचक्र रथारूढ दण्डनाथा पुरस्कृता। 
ज्वालामालिनिका क्षिप्तवह्निप्राकार मध्यगा ॥२७॥ 
भण्डसैन्य वधोद्युक्त शक्ति विक्रमहर्षिता । 
नित्यापराक्रमा टोप निरीक्षण समुत्सुका ॥२८ ॥ 
भण्डपुत्र वधोद्युक्त बाला विक्रमनन्दिता । 
मन्त्रिण्यम्बा विरचित विशुक्र वध तोषिता ॥२९॥ 
विषङ्गप्राणहरण वाराहीवीर्यनन्दिता । 
कामेश्वर - मुखालोक कल्पितश्रीगणेश्वरा ॥३०॥ 
महागणेश निर्भिन्त्र विघ्नयन्त्र प्रहर्षिता। 
भण्डासुरेन्द्र निर्मुक्त शस्त्र प्रत्यस्ववर्षिणि ॥३१॥ 
करांगुलि नखोत्पन्न नारायण दशाकृतिः। 
महापाशुपतास्त्राग्नि निर्दग्धासुर सैनिका ॥३२॥ 
कामेश्वरास्व निर्दग्ध स भण्डासुर शून्यका। 
ब्रह्मोपेन्द्र महेन्द्रादिदेव संस्तुत वैभवा ॥३३॥ 
हरनेत्राग्नि सन्दग्ध कामसञ्जीवनौषधिः । 
श्रीमद् वाग्भवकूटैक स्वरूप मुखपङ्कजा ॥३४॥ 
कण्ठाधः कटि पर्यन्त मध्यकूट स्वरूपिणी। 
शक्ति कूटैकतापन्न कट्यधोभागधारिणि ॥३५ ॥ 
मूलमन्त्रात्मिका मूलकूटत्रय कलेवरा । 
कुलामृतैक रसिका कुलसङ्केत पालिनी ॥३६॥ 
कुलाङ्गना कुलान्तस्थाः कौलिनी कुलयोगिनी। 
अकुला समयान्तस्था, समयाचार तत्परा ॥३७॥ 
मूलाधारैक निलया ब्रह्मग्रन्थिविभेदिनी । 
मणिपूरान्तरुदिता, विष्णुग्रन्थि विभेदिनी ॥३८॥
॥ आधेन शतकेनाभूद द्वितीयो तापिनी कला ॥
आज्ञा चक्रान्तरालस्था रुद्र ग्रन्थि विभेदिनी। 
सहस्त्राराम्बुजारूढा, सुधा साराभि वर्षिणी ॥३९॥ 
तटिल्लता समरुचिः षट्‌चक्रोपरि संस्थिता । 
महाऽऽसक्तिः कुण्डलिनी, बिसतन्तु तनीयसी ॥४० ॥ 
भवानी भावनागम्या भवारण्यकुठारिका । 
भद्रप्रिया भद्रमूर्तिर्भक्त सौभाग्यदायिनी ॥४१ ॥ 
भक्तप्रिया भक्तिगम्या भक्तिवश्या भयापहा। 
शाम्भवी शारदाऽऽराध्या, शर्वाणी शर्मदायिनी ॥४२॥ 
शाङ्करी श्रीकरी साध्वी, शरच्चन्द्र निभानना। 
शातोदरी शान्तिमती, निराधारा निरञ्जना ॥४३ ॥ 
निर्लेपा निर्मला नित्या, निराकारा निराकुला। 
निर्गुणा निष्कला शान्ता, निष्कामा नुिरुपप्लवा ॥४४॥
नित्य मुक्ता निर्विकारा, निष्प्रपञ्चा निराश्रया ।
नित्यशुद्धा नित्यबुद्धा, निरवद्या निरन्तरा ॥४५ ॥
 निष्कारणा निष्कलङ्का, निरुपाधिर्निरीश्वरा। 
नीगा रागमथना, निर्मदा मदनाशिनी ॥४६ ॥ 
निश्चिन्ता निरहङ्कारा, निर्मोहा मोहनाशिनी। 
निर्ममा ममताहन्त्री, निष्पापा पापनाशिनी ॥४७॥ 
निष्क्रोधा क्रोधशमनी, निर्लोभा लोभनाशिनी। 
निःसंशया संशयघ्नी, निर्भवा भवनाशिनी ॥४८ ॥ 
निर्विकल्पा निराबाधा, निर्भेदा भेदनाशिनी। 
निर्नाशा मृत्यु मथिनी निष्क्रिया निष्परिग्रहा ॥४९॥
निस्तुला नीलचिकुरा, निरपाया निरत्यया। 
दुर्लभा दुर्गमा दुर्गा, दुःखहन्त्री सुखप्रदा ॥५०॥ 
दुष्टदूरा दूराचार शमनी दोषवर्जिता। 
सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा, समानाधिक वर्जिता ॥५१॥ 
सर्वशक्तिमयी सर्वमङ्गला सद्‌गतिप्रदा। 
सर्वेश्वरी सर्वमयी, सर्वमन्त्र स्वरूपिणी ॥५२॥

॥ तृतीया धुत्रिका कला ॥

सर्वयन्त्रात्मिका सर्वतन्त्ररूपा मनोन्मनी। 
माहेश्वरी महादेवी, महालक्ष्मीर्मृडप्रिया ॥५३॥ 
महारूपा महापूज्या, महापातकनाशिनी। 
महामाया महासत्वा महाशक्तिर्महारतिः ॥५४॥
महाभोगा महैश्वर्या, महावीर्या महाबला। 
महाबुद्धिर्महासिद्धि, महायोगेश्वरेश्वरी ॥५५॥ 
महातन्त्रा महामन्त्रा, महायन्त्रा महाऽऽसना। 
महायाग क्रमाराध्या, महाभैरव पूजिता ॥५६॥ 
महेश्वर महाकल्प महाताण्डवसाक्षिणी । 
महाकामेश महिषी, महात्रिपुरसुन्दरी ॥५७॥ 
चतुःषष्ठयुपचाराढ्या, चतुःषष्टिकलामयी। 
महाचतुः षष्टिकोटि योगिनीगणसेविता ॥५८॥ 
मनुविद्या चन्द्रविद्या, चन्द्रमण्डल मध्यगा। 
चारुरूपा चारुहासा, चारुचन्द्र कलाधरा ॥५९॥ 
चराचर जगत्राथा, चक्रराजनिकेतना। 
पार्वती पद्मनयना, पद्मराग समप्रभा ॥६०॥ 
पञ्चप्रेतासनासीना, पञ्चब्रह्मस्वरूपिणी । 
चिन्मयी परमानन्दा, विज्ञानघन-रूपिणी ॥६१॥ 
ध्यान ध्यात, ध्येयरूपा, धर्माधर्म विवर्जिता।
विश्वरूपा जागरिणी, स्वपन्ती तैजसात्मिका ॥६२॥ 
सुप्ता प्राज्ञात्मिका तुर्या, सर्वावस्था विवर्जिता। 
सुसृष्टिकत्रीं ब्रह्मरूपा, गोप्जी गोविन्दरूपिणी ॥६३॥ 
संहारिणी रुद्ररूपा, तिरोधान करीश्वरी। 
सदाशिवाऽनुग्रहदा, पञ्चकृत्य परायणा ॥६४॥ 
भानुमण्डल मध्यस्था, भैरवी भगमालिनी। 
पद्मासना भगवती, पद्मनाभ सहोदरी ॥६५॥ 
उन्मेष निमिषोत्पन्न विपन्न भुवनावली। 
सहस्रशीर्षवदना, सहस्त्राक्षी सहस्त्रपात् ॥६६॥ 
आब्रह्म कीटजननी, वर्णाश्रमविधायिनी। 
निजाज्ञा रूप निगमा, पुण्यापुण्य फल प्रदा ॥६७॥ 
श्रुति सीमन्त सिन्दूरीकृत पादाब्ज धूलिका। 
सकलागम सन्दोह शुक्तिसम्पुट मौक्तिका ॥६८॥
पुरुषार्थप्रदा पूर्णा, भोगिनी भुवनेश्वरी। 
अम्बिकाऽनादि निधना, हरिब्रह्मेन्द्र सेविता ॥६९॥ 
नारायणी नादरूपा, नामरूप विवर्जिता। 
ह्रींकारी ह्रीमती हृद्या, हेयोपादेय वर्जिता ॥७०॥ 
॥ मरीच्याख्या कला तुर्या जाता नाम्नाशतत्रयात् ॥
राज राजार्चिता राज्ञी, रम्या, राजीव लोचना। 
रञ्जनी रमणी रस्या, रणत् किङ्किणि मेखला ॥७१ ॥ 
रमाराकेन्दु वदना, रतिरूपा रतिप्रिया। 
रक्षाकरी राक्षसघ्नी, रामा रमण लम्पटा ॥७२॥ 
काम्या कामकलारूपा, कदम्बकुसुमप्रिया। 
कल्याणी जगनीकन्दा, करुणारससागरा ॥७३॥ 
कलावती कलाऽऽलापा, कान्ता कादम्बरीप्रिया। 
वरदा वामनयना, वारुणी मदविह्वला ॥७४॥ 
विश्वाधिका वेद-वेद्या, विन्ध्याचलनिवासिनी। 
विधात्री वेदजननी, विष्णुमायाविलासिनी ॥७५ ॥ 
क्षेत्र-स्वरूपा क्षेत्रेशी, क्षेत्रक्षेत्रज्ञ पालिनी। 
क्षयवृद्धि विनिर्मुक्ता, क्षेत्रपाल समर्चिता ॥७६ ॥ 
विजया विमला वन्द्या, वन्दारु जनवत्सला। 
वाग् वादिनी वामकेशी, वह्निमण्डलवासिनी ॥७७॥ 
भक्तिमत् कल्प लतिका, पशुपाशविमोचिनी । 
संहताशेष-पाखण्डा, सदाचार-प्रवर्तिका ॥७८ ॥ 
तापत्रयाग्नि-सन्तप्त समाह्लादन चन्द्रिका । 
तरुणी तापसाराध्या, तनुमध्या तमोऽपहा ॥७९॥ 
चितिस्तत् पदलक्ष्यार्था, चिदेक रसरूपिणी। 
स्वात्मानन्द-लवीभूत ब्रह्माद्यानन्द सन्ततिः ॥८०॥ 
परा प्रत्यक् चितीरूपा, पश्यन्ती परदेवता। 
मध्यमा वैखरीरूपा, भक्तमानस-हंसिका ॥८१॥ 
कामेश्वर प्राणनाडी, कृतज्ञा कामपूजिता। 
शृङ्गाररससम्पूर्णा, जया जालन्धर-स्थिता ॥८२॥ 
ओड्याण पीठनिलया, बिन्दु मण्डल वासिनी। 
रहोयाग क्रमाराध्या, रहस्तर्पण तर्पिता ॥८३॥
सद्यः प्रसादिनी विश्व साक्षिणी साक्षि वर्जिता। 
षडङ्ग देवतायुक्ता, षाड्गुण्य परिपूरिता ॥८४॥ 
नित्य क्लिन्ना निरुपमा, निर्वाणसुखदायिनी। 
नित्या षोडशिकारूपा, श्रीकण्ठार्थ शरीरिणी ॥८५॥ 
प्रभावती प्रभारूपा, प्रसिद्धा परमेश्वरी। 
मूलप्रकृतिरव्यक्ता, व्यक्ताव्यक्त स्वरूपिणी ॥८६॥
॥ व्यापिनी विविधाकारा, विद्याऽविद्या स्वरूपिणी ॥ 
चतुर्थ शतकेनाभूत् पंचमी ज्वालिनी कला। 
महाकामेश-नयन कुमुदाह्लाद कौमुदी ॥८७॥ 
भक्तहार्द तमोभेद-भानु मद् भानुसन्ततिः। 
शिवदूती शिवाराध्या, शिवमूर्तिः शिवङ्करी ॥८८॥
शिवप्रिया शिवपरा, शिष्टेष्टा शिष्ट पूजिता। 
अप्रमेया स्वप्रकाशा, मनोवाचामगोचरा ॥८९॥ 
चिच्छक्तिश्चेतना रूपा, जडशक्तिर्जडात्मिका। 
गायत्री व्याहृतिः सन्ध्या, द्विजवृन्द निषेविता ॥९०॥ 
तत्त्वासना तत्त्वमयी, पञ्चकोशान्तर स्थिता। 
निःसीम महिमा नित्ययौवना मदशालिनी ॥९९॥ 
मदघूर्णित रक्ताक्षी, मदपाटल गण्ड भूः। 
चन्दन द्रव दिग्धाङ्गा, चाम्पेय कुसुमप्रिया ॥९२॥ 
कुशला कोमलाकारा, कुरुकुल कुलेश्वरी। 
कुल कुण्डालया कौलमार्ग तत्पर सेविता ॥९३॥ 
कुमार- गणनाथाम्बा, तुष्टिः पुष्टिर्मतिधृतिः। 
शान्तिः स्वस्तिमती, कान्तिर्नन्दिनी विघ्ननाशिनी ॥९४॥ 
तेजोवती त्रिनयना, लोलाक्षी कामरूपिणी। 
मालिनी हंसिनी माता, मलयाचलवासिनी ॥९५॥ 
सुमुखी नलिनी सुधूः, शोभना सुरनायिका। 
कालकण्ठी कान्तिमती, क्षोभिणी सूक्ष्मरूपिणी ॥९६ ॥ 
वजेश्वरी वामदेवी, वयोऽवस्था विवर्जिता। 
सिद्धेश्वरी सिद्धविद्या, सिद्धमाता यशस्विनी ॥९७॥ 
विशुद्धि चक्क निलयाऽऽरक्तवर्णा त्रिलोचना। 
खट्‌वाङ्गादि प्रहरणा, वदनैक समन्विता ॥९८ ॥ 
पायसान्नप्रिया त्वक्स्था, पशुलोक भयङ्करी। 
अमृतादि महाशक्ति संवृता डाकिनीश्वरी ॥९९॥ 
अनाहताब्जनिलया, श्यामाभा वदनद्वया। 
दंष्ट्रोज्ज्वलाक्ष मालादिधरा रुधिरसंस्थिता ॥१००॥ 
काल रात्र्यादि शक्त्यौघवृता स्निग्धौदन प्रिया। 
महावीरेन्द्र वरदा राकिण्यम्बा स्वरूपिणी ॥१०१ ॥ 
मणिपूराब्जनिलया, वदनत्रय संयुता । 
वज्रादिकायुधोपेता, डामर्यादिभिरावृता ॥१०२॥ 
रक्तवर्णा मांसनिष्ठा गुडात्र प्रीतमानसा। 
समस्तभक्त सुखदा, लाकिन्यम्बा स्वरूपिणी ॥१०३॥ 
स्वाधिष्ठानाम्बुजगता, चतुर्वक्त्र मनोहरा शूलाद्यायुध सम्पन्ना,
 पीतवर्णाऽति गर्विता ॥१०४॥ 
मेदो निष्ठा मधु प्रीता, बन्धिन्यादि समन्विता । 
दध्यन्नासक्त हृदया, काकिनी रूपधारिणी ॥१०५ ॥ 
मूलाधाराम्बुजारूढा, पञ्चवक्वाऽस्थि संस्थिता। 
अंकुशादि प्रहरणा, वरदादि निषेविता ॥१०६ ॥ 
मुद्‌गौदनासक्त - चित्ता, साकिन्यम्बा स्वरूपिणी। 
आज्ञाचक्राब्ज-निलया, शुक्लवर्णा- षडानना ॥१०७॥ 
मज्जासंस्था हंसवती, मुख्यशक्ति समन्विता। 
हरिद्रान्नैकरसिका, हाकिनीरूपधारिणी ॥१०८ ॥ 
सहस्त्रदल पदास्था, सर्व वर्णोपशोभिता । 
सर्वायुधधरा शुक्लसंस्थिता सर्वतोमुखी ॥१०९॥ 
सर्वांदन-प्रीत चित्ता, याकिन्यम्बा स्वरूपिणी। 
स्वाहा स्वधा मतिर्मेधा, श्रुति स्मृतिरनुत्तमा ॥११०॥ 
पुण्यकीर्तिः पुण्यलभ्या, पुण्यश्रवण कीर्तना। 
पुलोमजाऽचिंता बन्धमोचिनी बन्धुरालका ॥१११॥ 
विमर्शरूपिणी विद्या, वियदादि जगत् प्रसूः। 
सर्वव्याधिप्रशमनी, सर्वमृत्युनिवारिणी ॥११२॥
अग्रगण्याऽचिन्त्यरूपा, कलिकल्मष नाशिनी। 
कात्यायनी कालहन्त्री, कमलाक्ष निषेविता ॥११३॥ 
ताम्बूलपूरित मुखी, दाडिमीकुसुम प्रभा। 
मृगाक्षी मोहिनी मुख्या, मृडानी मित्ररूपिणी ॥११४॥ 
नित्यतृप्ता भक्तनिधिर्नियन्त्री निखिलेश्वरी। 
मेत्र्यादि वासाना लभ्या, महाप्रलयसाक्षिणी ॥११५ ॥
 पराशक्तिः परानिष्ठा, प्रज्ञान घनरूपिणी। 
माध्वी पानालसा मत्ता, मातृका वर्णरूपिणी ॥११६ ॥ 
महाकैलास निलया, मृणाल मृदुदोर्लता। 
महनीया दयामूर्तिर्महा साम्राज्यशालिनी ॥११७॥ 
आत्म विद्या महाविद्या, श्रीविद्याकामसेविता । 
श्रीषोडशाक्षरी विद्या, त्रिकूटा काम कोटिका ॥११८ ॥ 
कटाक्ष किङ्करीभूत कमलाकोटिसेविता । 
शिरः स्थिता चन्द्रनिभा, भालस्थेन्द्र धनुष्प्रभा ॥११९॥ 
हृदयस्था रविप्रख्या, त्रिकोणान्तर दीपिका। 
दाक्षायणी दैत्यहन्त्री, दक्षयज्ञविनाशिनी ॥ १२० ॥
॥ षहेन शतकेनाभूद सुषुम्णा सप्तमी कला ॥ 
दरान्दोलित दीर्घाक्षी, दरहासोज्ज्वलन्मुखी। 
गुरुमूर्तिर्गुण निधिर्गोमाता गुहजन्म भूः ॥१२१॥ 
देवेशी दण्डनितिस्था, दहराकाश रूपिणी। 
प्रतिपन्मुख्य राकान्त तिधिमण्डल पूजिता ॥१२२॥ 
कलात्मिका कलानाथा, काव्यालाप विमोदिनी। 
स चामर रमा वाणी सव्य दक्षिणसेविता ॥ १२३ ॥ 
आदि शक्तिरमेयात्मा, परमा पावनाकृतिः। 
अनेक कोटिब्रह्माण्ड जननी दिव्यविग्रहा ॥१२४॥ 
क्लीङ्कारी केवला गुह्या, कैवल्यपद दायिनी। 
त्रिपुरा त्रिजगद्वन्द्या, त्रिमूर्तिस्त्रिदशेश्वरी ॥१२५ ॥
त्र्यक्षरी दिव्यगन्धाढ्या, सिन्दूरतिलकाञ्चिता। 
उमा शैलेन्द्रतनया, गौरी गन्धर्वसेविता ॥१२६ ॥ 
विश्वगर्भा स्वर्णगर्भा, वरदा वागधीश्वरी। 
ध्यान गम्याऽपरिच्छेद्या, ज्ञानदा ज्ञानविग्रहा ॥१२७ ॥ 
सर्व वेदान्त सम्वेद्या, सत्यानन्दस्वरूपिणी। 
लोपामुद्रार्चिता लीला क्लृप्त ब्रह्माण्डमण्डला ॥१२८ ॥ 
अदृश्या दृश्यरहिता, विज्ञात्री वेद्य वर्जिता । 
योगिनी योगदा योग्या, योगानन्दा युगन्धरा ॥१२९॥ 
इच्छाशक्ति ज्ञानशक्ति क्रियाशक्तिस्वरूपिणी। 
सर्वाधारा सुप्रतिष्ठा, सदसद्रूप धारिणी ॥१३० ॥ 
अष्टमूर्तिरजा जैत्री, लोकयात्राविधायिनी। 
एकाकिनी भूमरूपा, निद्वैता द्वैतवर्जिता ॥१३१॥ 
अन्नदा बसुदा वृद्धा, ब्रह्मात्मैक्य स्वरूपिणी। 
बृहती ब्रह्माणी ब्राह्मी, ब्रह्मानन्दा बलिप्रिया ॥१३२॥
भाषारूपा बृहत्सेना, भावाभाव विवर्जिता । 
सुखाराध्या शुभकरी, शोभना सुलभा गतिः ॥१३३॥ 
राजराजेश्वरी राज्यदायिनी राज्यवल्लभा । 
राजत् कृपा राजपीठ निवेशित निजाश्रिता ॥१३४॥ 
राज्यलक्ष्मीः कोशनाथा, चतुरङ्ग बलेश्वरी। 
साम्राज्यदायिनी सत्यसन्धा सागरमेखला ॥१३५॥ 
दीक्षिता दैत्य शमनी, सर्वलोकवशङ्करी। 
सर्वार्थदात्री सावित्री, सचिदानन्दरूपिणी ॥१३६ ॥
॥ सप्तमेन शतकेनाभूदष्टमी भोगदा कला ॥
देश कालापरिच्छिन्ना, सर्वगा सर्व मोहिनी। 
सरस्वती शास्त्रमयी, गुहाम्बा गुह्य रूपिणी ॥१३७॥ 
सर्वोपाधि विनिर्मुक्ता, सदाशिव पतिव्रता। 
सम्प्रदायेश्वरी साध्वी, गुरुमण्डलरूपिणी ॥१३८ ॥ 
कुलोत्तीर्णा भगाराच्या, माया मधु मती मही। 
गणाम्बा गुह्यकाराध्या, कोमलाङ्गी गुरुप्रिया ॥१३९॥ 
स्वतन्वा सर्वतन्त्रेशी, दक्षिणामूर्तिरूपिणी। 
सनकादि समाराध्या, शिवज्ञानप्रदायिनी ॥१४०॥
चित्- कलानन्दकलिका, प्रेमरूपा प्रियङ्करी 
नामपारायण प्रीता, नन्दिविद्या नटेश्वरी ॥१४१ ॥ 
मिथ्या जगद्धिष्ठाना, मुक्तिदा मुक्तिरूपिणी। 
लास्यप्रिया लवकरी, लज्जा रम्भादि वन्दिता ॥१४२ ॥ 
भवदा वसुधा वृष्टिः, पापारण्य दद्वानला दौर्भाग्य 
तूल वातूला, जराध्वान्त रविप्रभा ॥१४३ ॥ 
भाग्याब्धिचन्द्रिका भक्तचित्त केकि घनाघना। 
रोग पर्वत दम्भोलिमृत्यु दारु कुठारिका ॥१४४॥ 
महेश्वरी महाकाली, महाग्रासा महाऽशना। 
अपर्णा चण्डिका चण्डमुण्डासुर निषूदनी ॥१४५ ॥ 
क्षराक्षरात्मिका सर्वलोकेशी विश्वधारिणी । 
त्रिवर्गदात्री सुभगा, त्र्यम्बका त्रिगुणात्मिका ॥१४६॥ 
स्वर्गापवर्गदा शुद्धा, जपापुष्प निभाऽऽकृतिः । 
ओजोवती द्युतिधरा, यज्ञरूपा प्रियव्रता ॥१४७॥ 
दुराराध्या दुराधर्षा, पाटली कुसुमप्रिया। 
महती मेरुनिलया, मन्दारकुसुमप्रिया ॥१४८ ॥ 
वीराराध्या विरारूपा, विरजा विश्वतोमुखी। 
प्रत्यग्रूपा पराकाशा, प्राणदा प्राणरूपिणी ॥१४९॥ 
मार्तण्ड भैरवाराध्या, मन्त्रिणी न्यस्तराज्य धूः। 
त्रिपुरेशी जयत्सेना, निस्वैगुण्या परापरा ॥१५०॥ 
सत्यज्ञानानन्दरूपा, सामरस्य परायणा। 
कपर्दिनी कलामाला, कामधुक् कामरूपिणी ॥१५१ ॥ 
कलानिधिः काव्यकला, रसज्ञा रस-शेवीधाः। 
पुष्टठा पुरातना पूज्या, पुष्करा पुष्करेक्षण ॥१५२॥
॥ शतकेनाष्टनेनाभूद विश्वाख्या नवमीकला ॥
परंज्योतिः परंधाम, परमाणुः परात्परा। 
पाशहस्ता पाशहन्त्री, परमन्त्र विभेदिनी ॥१५३॥ 
मूर्ताऽमूर्ती नित्यतृप्ता, मुनिमानस हंसिका। 
सत्यव्रत्ता सत्यरूपा, सर्वान्तर्यामिणी सती ॥ १५४॥ 
ब्रह्माणी ब्रह्मजननी, बहुरूपा बुधार्चिता। 
प्रसवित्री प्रचण्डाऽऽज्ञा, प्रतिष्ठा प्रकटाकृतिः ॥१५५ ॥ 
प्राणेश्वरी प्राणदात्री, पञ्चाशत् पीठरूपिणी। 
विशृङ्खला विक्क्तिस्था, वीरमाता वियत् प्रसूः ॥१५६॥ 
मुकुन्दा मुक्तिनिलया, मूलविग्रहरूपिणी। 
भावज्ञा भावरोगघ्नी, भवचक्रप्रवर्तिनी ॥१५७।। 
छन्दःसारा शास्त्रसारा, मन्त्रसारा तलोदरी। 
उदार कीर्तिरुद्दाम वैभवा वर्णरूपिणी ॥१५८ ॥ 
जन्ममृत्यु जरा तप्तजन विश्वान्तिदायिनी। 
सर्वोपनिषदु‌क्षुष्टा, शान्त्यतीता कलात्मिका ॥१५९॥ 
गम्भीरा गगनान्तस्था, गर्विता गानलोलुपा। 
कल्पना रहिता काष्ठाऽकान्ताकान्तार्थ विग्रहा ॥१६० ॥ 
कार्य कारण निर्मुक्ता, कामकेलि तरङ्गिता। 
कनत् कनकताटङ्का, लीलाविग्रहधारिणी ॥१६१॥ 
अजा क्षयविनिर्मुक्ता, मुग्धा क्षिप्रप्रसादिनी। 
अन्तर्मुख समाराध्या, बहिर्मुख सुदुर्लभा ॥१६२॥ 
त्रयी त्रिवर्गनिलया, त्रिस्था त्रिपुरमालिनी। 
निरामया निरालम्बा, स्वात्मारामा सुधा स्तुतिः ॥१६३॥ 
संसारपङ्क निर्मग्न समुद्धरण पण्डिता। 
यज्ञप्रिया यज्ञकर्णी, यजमान स्वरूपिणी ॥१६४॥ 
धर्माधारा धनाध्यक्षा, धनधान्यविवर्धिनी। 
विप्रप्रिया विप्ररूपा, विश्वभ्रमणकारिणी ॥१६५ ॥
विश्वग्रासा विदुमाभा, वैष्णवी विष्णुरूपिणी। 
अयोनियर्योनि निलया, कूटस्था कुलरूपिणी ॥१६६ ॥ 
वीरगोष्ठी- प्रिया वीरा, नैष्कर्ष्या नादरूपिणी।
 विज्ञान कलना कल्या, विदग्धा बैन्दवासनी ॥१६७॥
॥ नवमेन शतकेनाभूद दशमी बोधिनी कला ॥
तत्त्वाधिका तत्त्वमयी, तत्त्वमर्थ स्वरूपिणी। 
साम गान प्रिया सौम्या, सदाशिव कुटुम्बिनी ॥१६८ ॥
सव्यापसव्य मार्गस्था, सर्वापद् विनिवारिणी। 
स्वस्था स्वभाव मधुरा, धीरा धीरसमर्चिता ॥ १६९ ॥ 
चैतन्यार्घ्य समाराध्या, चैतन्यकुसुमप्रिया। 
सदोदिता सदातुष्टा, तरुणादित्य पाटला ॥१७० ॥ 
दक्षिणाऽदक्षिणाराध्या, दरस्मेर मुखाम्बुजा 
कौलिनी केवलाऽनर्घ्य कैवल्यपददायिनी ॥१७१ ॥ 
स्तोत्रप्रिया स्तुतिमती, श्रुतिसंस्तुतवैभवा । 
मनस्विनी मानवती, महेशी मङ्गलाकृतिः ॥१७२ ॥
विश्वमाता जगद्धात्री, विशालाक्षी विरागिणी। 
प्रगल्भा परमोदारा, पराऽऽमोदा मनोमयी ॥१७३॥ 
व्योमकेशी विमानस्था, वज्रिणी वामकेश्वरी। 
पञ्चयज्ञप्रिया पञ्चप्रेतमञ्चाधि शायिनी ॥१७४ ॥ 
पञ्चमी पञ्च भूतेशी, पञ्च संख्योपचारिणी। 
शाश्वती शाश्वतैश्वर्या, शर्मदा शम्भुमोहिनी ॥ १७५ ॥ 
धराधरसुता धन्या, धर्मिणी धर्मवर्धिनी। 
लोकातीता गुणातीता, सर्वातीता शमात्मिका ॥१७६ ॥ 
बन्धुककुसुम प्रख्या, बाला लीलाविनोदिनी। 
सुमङ्गली सुखकरी, सुवेषाढ्या सुवासिनी ॥१७७॥ 
सुवार्सिन्यर्चन प्रीताऽऽशोभना शुद्धमानसा । 
बिन्दुतर्पण सन्तुष्टा, पूर्वजा त्रिपुराऽम्बिका ॥१७८॥ 
दशमुद्रा समाराध्या, त्रिपुराश्रीवशङ्करी। 
ज्ञानमुद्रा ज्ञानगम्या, ज्ञानज्ञेय स्वरूपिणी ॥१७९ ॥ 
योनिमुद्रा त्रिखण्डेशी, त्रिगुणाम्बा त्रिकोणगा। 
अनघाऽद्भुत चारित्रा, वाञ्छितार्थप्रदायिनी ॥१८०॥ 
अभ्यासातिशय ज्ञाता, षडध्वातीत रूपिणी। 
अव्याज करुणा मूर्तिरज्ञान व्वान्तदीपिका ॥१८१ ॥ 
आबाल गोपविदिता, सर्वानुवङ्ख्य शासना। 
श्रीचक्रराज निलया, श्रीम‌त्त्रिपुरसुन्दरी ॥१८२॥
श्रीशिवाशिव शक्त्यैक्यरूपिणी ललिताऽम्बिका ॥
दशमेन दशतकेनाभूद् धारिण्ये कला ।

पुनः विनियोग,

ऋष्यादि न्यास करषडङ्गन्यासादि पूर्वकं ध्यानं कृत्वा मानस पूजनं च कुर्यात्। 
ततः प्रार्थयेत् -अनेन श्रीललिता सहस्त्रनाम स्तोत्र पाठेन श्रीराजराजेश्वरी महात्रिपुरसुन्दरी देवता प्रीयताम् ॥

॥ फलश्रुति ॥

॥ हयग्रीव उवाच ॥
इत्येव नाम साहस्त्रं, कथितं ते घटोद्भव। 
रहस्यानां रहस्यं च ललिताप्रीतिदायकम् ॥१ ॥ 
अनेन सदृशं स्तोत्रं, न भूतं न भविष्यति। 
सर्वरोग प्रशमनं, सर्वसम्पत्प्रवर्धनम् ॥२॥ 
सर्वापमृत्यु शमनं, कालमृत्यु निवारणम् । 
सर्व ज्वरार्ति शमनं, दीर्घायुष्य प्रदायकम् ॥३॥ 
पुत्र- प्रदमपुत्राणां, पुरुषार्थ प्रदायकम्। 
इदं विशेषाच्छ्री देव्याः, स्तोत्रं प्रीति विधायकम् ॥४॥ 
जपेन्नित्यं प्रयत्नेन, ललितोपास्ति तत्परः । 
प्रातः खात्वा विधानेन, सन्ध्याकर्म समाप्य च ॥५॥ 
पूजागृहं ततो गत्वा चक्रराजं समर्चयेत्। 
विद्यां जपेत् सहस्रं वा त्रिशतं शतमेव वा ॥६॥ 
रहस्य नाम साहस्त्रमिदं पश्चात् पठेन्नरः । 
जन्ममध्ये सकृच्चापि य एवं पठते सुधीः ॥७॥ 
तस्य पुण्यफलं वक्ष्ये शृणु त्वं कुंभसम्भव । 
गङ्गादि सर्वतीर्थेषु यः स्त्रायात्कोटिजन्मसु ॥८ ॥ 
कोटिलिङ्ग प्रतिष्ठां तु यः कुर्यादविमुक्तके। 
कुरुक्षेत्रे च यो दद्यात्कोटिवारं रविग्रहे ॥९॥ 
कोटिं सौवर्णभाराणां श्रोत्रियेषु द्विजन्मसु। 
यः कोटि हयमेधानामाहरेद् गाङ्गरोधसि ॥१०॥
आचरेत् कूप कोटीयों, निर्जले मरुभूतले। 
दुर्भिक्षे यः प्रतिदिनं, कोटिब्राह्मणभोजनम् ॥११॥ 
श्रद्धया परया कुर्यात्, सहस्त्र परिवत्सरान्। 
तत् पुण्यं कोटि गुणितं, लभेत् पुण्यमनुत्तमम् ॥१२॥ 
रहस्य नाम सहस्त्रे, नाम्नोऽप्येकस्य कीर्तनात् । 
रहस्य नाम साहस्त्रे, नामैकमपि यः पठेत् ॥१३॥ 
तस्य पापानि नश्यन्ति, महान्त्यपि न संशयः। 
नित्य कर्माननुष्ठानान्निषिद्ध करणादपि ॥१४॥ 
यत्पापं जायते पुंसां तत्सर्वं नश्यन्ति ध्रुवम् । 
बहुनाऽत्र किमुक्तेन शृणु त्वं कलशीसुत ॥१५॥ 
अत्रैकनाम्नो या शक्तिः पातकानां निवर्तने। 
तन्निवर्त्यमधं कर्तुं नालं लोकाश्चतुर्दश ॥१६॥ 
यस्त्यक्त्वा नामसहस्त्र पापहानिमभीप्सति । 
स हि शीतनिवृत्त्यर्थ हिमशैलं निषेवते ॥१७॥ 
भक्तो यः कीर्तयन्त्रित्यमिदं नाम सहस्त्रकम् । 
तस्मै श्रीललिता देवी, प्रीताऽभीष्टं प्रयच्छति ॥१८॥ 
नवम्यां वा चतुर्दश्यां, सितायां शुक्रवासरे। 
कीर्तयेन्नाम साहस्रं, पौर्णमास्यां विशेषतः ॥१९॥ 
पौर्णमास्यां चन्द्रबिम्बे, ध्यात्वा श्रीललिताम्बिको। 
पञ्चोपचारैः सम्पूज्य, पठेन्नाम सहस्त्रकम् ॥२०॥ 
सर्वरोगाः प्रणश्यन्ति, दीर्घायुष्यं च विन्दति। 
अयमायुष्करो नाम, प्रयोगः कल्पनोदितः ॥२१॥ 
ज्वरार्त शिरसि स्पृष्टवा, पठेन्नाम सहस्त्रकम् । 
तत् क्षणात् प्रशमं याति, शिरस्तोदो ज्वरोऽपि च ॥२२॥ 
सर्वव्याधि निवृत्त्यर्थ, स्पृष्ट्वा भस्म जपेदिदम्। 
तद् भस्म धारणादेव, नश्यन्ति व्याधयो क्षणात् ॥२३॥ 
जलं सम्मन्त्र्य कुम्भस्थं, नाम साहस्त्रतो मुने ! । 
अभिषिञ्वेद् ग्रह ग्रहस्तान्, ग्रहा नश्यंति तत्क्षणात् ॥२४॥ 
सुधासागर- मध्यस्थां, ध्यात्वा श्रीललिताऽम्बिकाम् । 
यः पठेन्नाम साहस्रं, विषं तस्य विनश्यति ॥ २५ ॥ 
वन्ध्यानां पुत्रलाभाय, नामसाहस्त्र मन्त्रितम्। 
नवनीतं प्रदद्यात्तु, पुत्रलाभो भवेद्-ध्रुवम् ॥२६॥ 
देव्याः पाशेन सम्बद्धामाकृष्टामंकुशेन च । 
ध्यात्वाऽभीष्टां स्त्रियं रात्री, पठेन्नाम सहस्रकम् ॥२७॥ 
आयाति स्वसमीपं, सा यद्यप्यन्तः पुरं गता। 
राजाऽऽकर्षण कामश्चेद्, राजाऽवसथ दिङ्मुखः ॥२८॥ 
त्रि रात्रं यः पठेदेतच्छी देवी ध्यानतत्परः। 
स राजा पार वश्येन मातङ्गं वा तमङ्गजम् ॥२९॥ 
आरुह्याऽऽयाति निकटं, दासवत् प्रणिपत्य च। 
तस्मै राज्यं च कोशं च, दद्यादेव वशं गतः ॥३०॥ 
रहस्य नाम साहस्रं, यः कीर्तयति नित्यशः । 
तन्मुखालोक मात्रेण, मुहोल्लोकत्रयं मुने ! ॥ ३१ ॥ 
यस्त्विदं नाम साहस्त्र, सकृत् पठति भक्तिमान्। 
तस्य ये शत्रवस्तेषां, निहन्ता शरभेश्वरः ॥३२॥ 
यो वाऽभिचारं कुरुते, नाम सहस्त्रपाठके।
निवर्त्य तत् क्रियां हन्यात्, तं वै प्रत्यङ्गिरा स्वयम् ॥३३॥ 
ये क्रूर दृष्ट्या वीक्ष्यन्ते, नाम सहस्त्रपाठकम्। 
तानन्धान् कुरुते क्षिप्रं, स्वयं मार्तण्ड भैरवः ॥३४॥ 
धनं यो हरते चोरैनमि साहस जापिनः। 
यत्र कुत्र स्थितं वापि, क्षेत्रपालो निहन्ति तम् ॥३५ ॥ 
विद्यासु कुरुते वादं, यो विद्वान नाम जापिनः । 
तस्य वाक्स्तम्भनं सद्यः, करोति नकुलीश्वरी ॥३६ ॥ 
यो राजा कुरुते वैरं, नाम साहस जापिनः। 
चतुरङ्ग बलं तस्य, दण्डिनी संहरेत् स्वयम् ॥३७॥ 
यः पठेन्नाम साहस्त्रं, षण्मासं भक्ति संयुतः । 
लक्ष्मीश्चाञ्जल्य रहिता, सदा तिष्ठति तद् गृहे ॥ ३८ ॥ 
मासमेकं प्रतिदिनं, त्रिवारं यः पठेन्नरः। 
भारती तस्य जिह्वाग्रे, रङ्गे नृत्यति नित्यशः ॥३९॥
यस्त्वेक वारं पठति, पक्षमेकमतन्द्रितः। 
मुह्यन्ति काम वशगा, मृगाक्ष्यस्तस्य वीक्षणात् ॥४०॥ 
यः पठेत्राम साहर्स, जंम मध्ये सकृञ्जरः। 
तद् दृष्टि गोचराः सर्वे, मुच्यन्ते सर्व किल्विषैः ॥४९॥ 
यो वेत्ति नाम साहसुं, तस्मै देयं द्विजन्मने। 
अन्नं वस्त्रं धनं धान्यं, नान्येभ्यस्तु कदाचन ॥४२॥ 
श्रीमंत्रराजं यो वेत्ति श्रीचक्रं यः समर्चति । 
यः कीर्तयति नामानि, तं सत् पात्रं विदुर्बुधाः ॥४३॥
तस्मै देयं प्रयत्नेन, श्रीदेवी प्रीतिमिच्छता ॥४॥ 
न कीर्तयति नामानि, मन्त्र राजं न वेत्ति यः। 
पशु तुल्यः स विज्ञेयस्तस्मै दत्तं निरर्थकम् ॥४५ ॥ 
परीक्ष्य विद्या विदुषस्तेभ्यो दद्याद् विचक्षणः ॥ 
श्रीमन्त्र राज सदृशो, यथा मन्त्रो न विद्यते । ॥४६ ॥ 
देवता ललिता तुल्या, यथा नास्ति घटोद्भव ! 
रहस्य नाम साहसु तुल्या नास्ति तथा स्तुतिः ॥४७॥ 
लिखित्वा पुस्तके यस्तु, नाम साहसूमुत्तमम्। 
समर्चयेत् सदाभक्त्या, तस्य तुष्यति सुन्दरी ॥४८ ॥ 
बहुनाऽत्र किमुक्तेन, शृणु त्वं कुम्भ सम्भव ! 
नानेन सदृशं स्तोत्रं, सर्व तन्त्रेषु विद्यते ॥४९॥ 
तस्मादुपासको नित्यं, कीर्तयेदिदमादरात्। 
एभिर्नाम सहसैस्तु श्रीचक्रं योऽर्चयेत् सकृत् ॥५०॥ 
पौर्वा तुलसीपुष्पैः, कहारैर्वा कदम्बकैः। 
चम्पकैर्जाति कुसुमैर्मल्लिका करवीरकैः ॥५१॥ 
उत्पलैर्विल्वपत्रैर्वा, कुन्द केसर पाटलैः। 
अन्यैः सुंगधिकुसुमै केतकी माधवीमुखैः ॥५२॥
तस्य पुण्य फलं वक्तुं, न शक्नोति महेश्वरः ॥५३॥
सा वेत्ति ललिता देवी, स्व चक्रार्चनजं फलम्। 
अन्ये कथं विजानीयुर्ब्रह्माद्याः स्वल्प मेधसः ? ॥५४॥ 
प्रतिमासं पौर्णमास्यामेभिर्नाम सहसुकैः। 
रात्रौः यश्चक्रराजस्थामर्चयेत् परदेवताम् ॥५४॥ 
स एव ललितारूपस्तद्- रूपा ललिता स्वयम्।
न तयोर्विद्यते भेदो, भेदकृत् पापकृद- भवेत् ॥५५॥ 
महानवम्यां वो भक्तः, श्रीदेवीं चक्रमध्यगाम्। 
अर्चयेन्नाम साहसैस्तस्य मुक्तिः करे स्थिता ॥५६॥ 
यस्तु नामसाहस्त्रेण, शुक्रवारे समर्चयेत्। 
चक्रराजे महादेवीं, तस्य पुण्य फलं शृणु ॥५७॥ 
सर्वान् कामानवाप्येह, सर्वसौभाग्य संयुतः। 
पुत्र पौत्रादि संयुक्तो, भुक्त्वा भोगान् यथेप्सितान् ॥५८ ॥ 
अन्ते श्रीललिता देव्याः, सायुज्यमति दुर्लभम्। 
प्रार्थनीयं शिवाद्यैश्च, प्राप्नोत्येव न संशयः ॥५९॥ 
यः सहस्रं ब्राह्मणानामेभिर्नाम सहसुकैः। 
समर्च्य भोजयेद् भक्त्या पायसापूप षड्रसैः ॥६०॥ 
तस्मै प्रीणाति ललिता, स्वसाम्राज्यं प्रयच्छति। 
न तस्य दुर्लभं वस्तु, त्रिषु लोकेषु विद्यते ॥६१ ॥ 
निष्कामः कीर्तयेद् यस्तु, नाम साहसुमुत्तमम् । 
ब्रह्मज्ञानमवाप्नोति, येन मुच्येत बन्धनात् ॥६२॥ 
धनार्थी धनमाप्नोति, यशोऽर्थी चाप्नुयाद् वशः । 
विद्यार्थी चाप्नुयाद् विद्यां, नाम साहसू कीर्तनात् ॥६३॥ 
नानेन सदृशं स्तोत्रं, भोग मोक्ष प्रदं मुने। 
कीर्तनीयमिदं तस्माद् भोग मोक्षार्थिभिनरैः ॥६४॥ 
चतुराश्रम निष्ठश्च, कीर्तनीयमिदं सदा। 
स्वधर्म समनुष्ठान वैकल्प परिपूर्तये ॥६५॥ 
कलौ पापैक बहुले, धर्मानुष्ठान वर्जिते। 
नामानुकीर्तनं मुक्त्वा, नृणां नान्यत् परायणम् ॥६६॥ 
लौकिकाद् वचनान्मुख्यं, विष्णु नामानुकीर्तनम् । 
विष्णुनाम सहसाच्च, शिव नामैकमुत्तमम् ॥६७॥
देवी नाम सहस्राणि, कोटिशः सन्ति कुम्भज । 
तेषु मुख्यं दशविधं, नामसाहसुमुच्यते ॥६८॥ 
रहस्य नाम साहसूमिदं शस्तं दशस्वपि । 
तस्मात् सङ्कीर्तयेन्नित्यं, कलिदोष निवृत्तये ॥६९॥
मुख्यं श्रीमातृनामेति न जानन्ति विमोहिताः ॥७०॥ 
विष्णु नाम पराः केचिच्छिव नाम पराः परे। 
न कश्चिदपि लोकेषु, ललितानाम तत् परः ॥ ७१ ॥ 
येनान्य देवता नाम, कीर्तितं जन्म कोटिषु । 
तस्यैव भवति श्रद्धा, श्रीदेवी नाम कीर्तने ॥७२॥ 
चरमे जन्मनि यथा, श्रीविद्योपासको भवेत्। 
नाम साहसु पाठश्च, तथा चरम जन्मनि ॥७३॥ 
यथैव विरला लोके, श्रीविद्याऽऽचार वेदिनः। 
तथैव विरलो गुह्यनाम साहसू पाठकः ॥७४॥ 
मन्त्रराज जपश्चैव, चक्रराजार्चनं तथा। 
रहस्य नाम पाठश्च, नाल्पस्य तपसः फलम् ॥७५ ॥ 
अपठन् राम साहसुं, प्रीणयेद् यो महेश्वरीम्। 
स चक्षुषा विना रूपं, पश्येदेव नरो परः ॥७६ ॥ 
रहस्य नाम साहसूं, त्यक्वा यः सिद्धि कामुकः । 
स भोजनं विना नूनं, क्षुन्निवृत्तिमभीप्सति ॥७७॥ 
यो भक्तो ललिता देव्याः, स नित्यं कीर्तयेदिदं। 
नान्यथा प्रीयते देवी, कल्प कोटि शतैरपि ॥७८ ॥ 
तस्माद् रहस्य नामानि, श्रीमातुः प्रयतः पठेत्। 
इति ते कथितं स्तोत्रं, रहस्यं कुम्भ सम्भव ॥७९॥ 
नाविद्या वेदिने ब्रूयान्नाभक्ताय कदाचन । 
यथैव गोप्या श्रीविद्या, तथा गोप्यमिदं मुने ॥८०॥ 
स्वतन्त्रेण मया नोक्तं, तवापि कलशोद्भव 
ललिता प्रेरणादेव, मयोक्तं स्तोत्रमुत्तमम् ॥८१॥ 
कीर्तनीयमिदं भक्त्या, कुम्भयोने निरन्तरम्। 
तेन तुष्टा महादेवो, तवाभीष्टं प्रदास्यति ॥८२॥

॥ श्रीसूत उवाच ॥

इत्युक्त्वा श्रीहयग्रीवो, ध्यात्वा श्रीललिताऽम्बिकाम् । 
आनन्दमग्न हृदयः, सद्यः पुलकितोऽभवत् ॥८३॥

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