ललिता हृदय स्तोत्र

श्री ललिता हृदय स्तोत्र -Shri (Mahavidya) Lalita Hridaya Stotra

श्री ललिता को त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जाना जाता है. वह दस महाविद्याओं में से एक हैं और देवी दुर्गा के दस उग्र रूपों में शामिल हैं श्री ललिता को सबसे शुद्ध और अकल्पनीय सौंदर्य, मासूमियत, और करुणा का अवतार माना जाता है

ललिता हृदय स्तोत्र,Shri (Mahavidya) Lalita Hridaya Stotra

॥ अगस्त्य उवाच ॥

हयग्रीव। दया सिन्धो ललितायाः शुभं मम। 
हृदयं च महोत्कृष्ट कथयस्व महामुने ॥१ ॥

॥ हयग्रीव उवाच ॥

शृणु त्वं शिष्य ! वाक्यं मे हृदयं कथयामि ते। 
महादेव्यास्तथा शक्तेः प्रीतिसम्पाद कारकम् ॥२॥

बीजात्मकं महामन्त्र रूपकं परमं निजम्। 
कामेश्वर्याः स्वाङ्गभूतं डामर्यादिभिरावृतम् ॥३॥

कामाकष्यर्ष्यादि संयुक्तं पञ्चकाम दुधान्वितम्। 
नववल्लि समायुक्तं कादि हादि मतान्वितम् ॥४॥

त्रिकूट दर्शितं गुप्तं हृदयोत्तममेव च। 
मूलप्रकृति व्यक्तादि कला शोधन कारकम् ॥५॥

विमर्श रूपकं चैव विद्या शक्ति षडङ्गकम्। 
षडध्व मार्ग पीठस्थं सौर शाक्तादि संज्ञकम् ॥६ ॥

अभेद भेदनाशं च सर्व वाग्वृत्ति दायकम्। 
तत्त्वचक्क मयं तत्त्व बिन्दु नाद कलान्वितम् ॥७॥

प्रभायन्त्र समायुक्त मूलचक्र मयान्वितम्। 
कण्ठशक्ति मयोपेतं भ्रामरी शक्तिरूपकम् ॥८ ॥

विनियोग:- 

ॐ अस्य श्रीललिता हृदयस्तोत्रमाला मन्वस्य श्रीआनन्द भैरव ऋषिः।

अमृत विराट् छन्दः। श्रीललिता वाग्देवता प्रसाद सिद्धये जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यासं कृत्या कर सम्पुटे फूटत्रयं द्विरावृत्य षडङ्गद्वयम् कुर्यात्।

॥ ध्यानम् ॥

द्रां द्रीं क्लीं बीजरूपे, हासित कह कहे, ब्रह्म देहान्तरङ्गे ! 
ब्लूं सः क्रों वर्णमाले, सुरगणनमिते, तत्त्व रूपे! हसखफ्रें ॥

हसां हसीं हसीं बीजरूपे, परमसुख करे, वीर मातः । स्वयम्भूः ।
ऐं हसखफ्रें बीजतत्त्वे, कलित कुल कले! ते नमः शुद्ध वीरे ॥

इति ध्यात्वा मनसा पञ्चभोपचर्य नवमुद्राः प्रदर्थ्य, 
मूलं त्रिवारं जप्त्वा योनि मुद्रया प्रणमेत्।

॥ स्तोत्रम् ॥

हृदयाम्बुज मध्यस्था ब्रह्मात्मैक्य प्रदायिनी। 
त्रिपुराम्बा त्रिकोणस्था पातु मे हृदयं सदा ॥१ ॥

अवर्ण- मालिका शक्तिर्वर्णमाला स्वरूपिणी। 
नित्याऽनित्या तत्त्वगा सा निराकार मयान्विता ॥२॥

शब्द ब्रह्ममयी शब्द बोधाकार स्वरूपिणी। 
सांविदी बादि संसेव्या सर्व श्रुतिभिरीडिता ॥३॥

महावाक्योपदेशानी स्वर नाडी गुणान्विता।
ह्रींकारचक्र मध्यस्था ह्रीमुद्यान विहारिणी ॥४॥

ह्रीं मोक्षकारिणी ह्रीं ह्रीं, महाह्रींकार धारिणी।
कालकण्ठी महादेवी कुरुकुल्ला कुलेश्वरी ॥५॥

ऐं ऐं प्रकाशरूपेण, ऐं बीजान्तर वासिनी। 
ईशस्था ईदृशी चेशी ई ई बीजकरी तथा ॥६ ॥

लक्ष्मीनारायणान्तःस्था लक्ष्यालक्ष्यकरी तथा। 
शिवस्था हेतिवर्णस्था सशक्तेवर्ण रूपिणी ॥७।

कमलस्था कलामाला ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्रीं मुखी तथा। 
लावण्यसुन्दरी पातु लक्ष्यकोणाग्रमन्विता ॥८ ॥

लांलांलीलीं सुरैः स्तुत्या सांसींसूंसें सुरार्चिता। 
कां कीं के काकिनी सेव्या लां लीं लूं काकिनीस्तुता ॥९ ॥

बिन्दुचक्रेश्वरी पातु द्वितीयावर्ण देवता। 
वसु कोणेश्वरी देवी द्विदशारेश्वरी च माम् ॥१०॥

मन्वस्त्रचक्र मध्यस्था नागपत्रेश्वरी सदा। 
षोडशारेश्वरी नित्या मण्डलत्रयदेवता ॥११॥

भूपुरत्रयमध्यस्था द्वादशग्रन्थि भेदिनी। 
हंसी हसी सुबीजस्था हरिद्रादिभिरर्चिता ॥१२॥

अनन्तकोटि जन्मस्था जन्माजन्मत्ववर्जिता । 
अमृताम्भोधिमध्यस्था अमृतेशादिसेविता ॥१३॥

मृतामृतकरी मूलविराट् शक्तिः परात्मिका। 
आत्मनं पातु मे नित्यं तथा सर्वाङ्गमेव च ॥१४॥

अष्टदिक्षु कराली सा ऊर्ध्वाधः प्रान्तके तथा । 
गुरुशक्तिमहाविद्या गुरुमण्डलगामिनी ॥१५ ॥

सर्वचक्रेश्वरी सर्वब्रह्मादिभिः सुवन्दिता ।
सत्त्वशक्तिः रजः शक्तिस्तमः शक्ति परात्मिका ॥१६॥

प्रपञ्चेशी सुकालस्था महावेदान्त गर्भिता। 
कूटस्था कूटमध्यस्था कूटाकूटविवर्जिता ॥१७॥

योगाङ्गी योगमध्यस्था अष्टयोग प्रदायिनी। 
नवशक्तिः कृती माता अष्टसिद्धि स्वरूपिणी ॥१८॥

नववीरावली रम्या मुक्तिकन्या मुकुन्दगा। 
उपदेशकरी विद्या महामुख्यविराजिता ॥१९॥

मुख्याऽमुख्या महामुख्या मूल बीज प्रवर्तिका। 
दिक्पालकाः सदापान्तु श्रीचक्राधि देवताः ॥२०॥

दिग्योगिन्यष्टकं पातु तथा भैरव चाष्टकम्। 
षडङ्गदेवताः पान्तु नित्या षोडशिकास्तथा ॥२१॥

नाथशक्तिः सदापातु नित्या त्रिकोणान्तर दीपिका ।
त्रिसारा त्रयकर्माणी नाशिनी त्रयं दर्शति ॥२२॥

त्रिकाला शोषणी शोषकारिणी शोषणेश्वरी । 
भुक्तिमुक्तिप्रदा बाला भुवनाम्बा बगलेश्वरी ॥२३॥

अतृप्तिस्तृप्ति सन्तुष्टा तृप्ता तृप्तकरी सदा। 
आम्नायशक्तयः पान्तु आदिशेष सुतल्पिनी ॥२४ ॥

राज्यं त्वं देहि मे नित्यं आदिशम्भुस्वरूपिणी । 
सर्वरोगहरा सर्वकैवल्यपद दायिनी ॥२५॥

॥ फलश्रुति ॥

इदं तु हृदयं दिव्यं ललिता प्रीतिदायकम्। 
अनेन च समं नास्ति स्तोत्रं प्रख्यात वैभवम् ॥ २६ ॥

शक्तिरूपं शक्तिगुप्तं प्रकटाङ्गे प्रभुं शुभम्। 
मूलविद्यात्मकं मूलब्रह्मसम्भव कारणम् ॥२७ ॥

नादादिशक्ति संयुक्तमभूतमद्भुतं महत्। 
रोगहं पापहं विघ्ननाशनं विघ्नहारिणम् ॥२८ ॥

चिरायुष्यप्रदं सर्वमृत्यु दारिद्र्यनाशनम् । 
क्रोधहं मुक्तिदं मुक्तिदायकं परं मे सुखम् ॥२९॥

रुद्रदं मृडपं विष्णुं दण्डकं ब्रह्मरूपकम् । 
विचित्रं च सुचित्रं च सुन्दरं च सुगोचरम् ॥ ३० ॥

नाभक्ताय न दुष्टाय नाविश्वस्ताय देशिकः ।
न दापयेत् परंविद्याहृदयं मन्त्र गर्भितम् ॥३१॥

स्तोत्राणामुत्तमं स्तोत्रं मन्त्राणामुत्तमं मनुम् । 
वीजानामुत्तमं बीजं शाक्तानामुत्तमं शिवम् ॥३२ ॥

पठेद् भक्त्या त्रिकालेषु अर्धरात्रे तथैव च। 
वाक् सिद्धि दायकं नित्यं परविद्याविमोहकम् ॥३३॥

स्वविद्यास्थापकं चान्यद् यन्त्रतन्त्रादिभेदनम् । 
कृत्तिका नक्षत्र कूर्माख्ये चक्र स्थित्वा जपेन्मनुम् ॥३४॥

॥ इति श्रीमहत्तरयोनि विद्याया महातन्त्रे श्रीललिता हृदयं सम्पूर्णम् ॥

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