श्री बालात्रिपुरसुन्दरी कवच
त्रिपुर बाला, सुंदरी और भैरवी तीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्री बाला त्रिपुर रूपक के भीतर सृष्टि और ज्ञान की संपूर्णता का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे अवसरों के नए आयाम खोलती हैं और हमें उनका लाभ उठाने के लिए ज्ञान प्रदान करती हैं।
त्रिपुर सुंदरी कवच का पाठ करने से कई लाभ मिलते हैं
- त्रिपुर सुंदरी कवच का पाठ करने से आधि-व्याधियां नहीं होतीं और न ही किसी तरह का भय होता है.
- कवच का पाठ करने वाले को महामारी और पापों का भय नहीं रहता.
- दरिद्रता के वश में कभी नहीं होता और न मृत्यु के वशीभूत होता है.
- कवच का पाठ करने वाले को शिव का स्थान प्राप्त होता है.
- श्रीविद्या के मंत्र का जाप करने से पहले कवच का ज्ञान होना ज़रूरी है. वरना जाप का फल नहीं मिलता और शस्त्रास्त्र से हमला हो सकता है
श्री भैरवी उवाच
देवदेव! महादेव ! भक्तानां प्रीतिवर्द्धन !
सूचितं यत् त्वया देव्याः कवचं कथयस्व मे ॥१॥
॥ श्री भैरव उवाच ॥
शृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि कवचं देवदुर्लभम्।
अप्रकाश्यं परं गुहां साधकाभीष्ट सिद्धिदम् ॥२॥
विनियोगः
अस्य श्री बालात्रिपुरसुन्दरी कवचस्य श्री दक्षिणामूर्ति ऋषिः,
पंक्तिश्छंदः श्री बालात्रिपुरसुन्दरी देवता, ऐं बीजं, सौः शक्ति,
क्लीं कीलकं, चतुर्वर्ग साधने पाठे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः
श्रीदक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि। पंक्तिश्छंदसे नमः मुखे।
श्री बालात्रिपुरसुन्दरी देवतायै नमः हृदि।, ऐं बीजाय नमो गुझे,
सौः शक्तये नमो नाभी, क्लीं बीजाय नमः पादयोः,
चतुर्वर्ग साधने पाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गेषु।
षडङ्गन्यासः-
ऐं क्लीं सौः ऐं क्लीं सौः
करन्यास:-
अंगुष्ठाभ्यां नमः,तर्जनीयां नमः,मध्यमाभ्यां नमः,
अनामिकाभ्यां नमः,कनिष्ठिकाभ्यां नमः,करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः
अङ्गन्यासः-
हृदयाय नमः,शिरसे स्वाहा,शिखायै वषट्,
कवचाय हूँ,नेत्रत्रयाय वौषट्,अस्त्राय फट्
॥ ध्यानम् ॥
मुक्ताशेखर कुण्डलाङ्गद मणि ग्रैवेय- हारोर्मि का
विद्योतद् वलयादि कङ्कणकटिसूत्रां स्फुरन् नूपुराम् ।
माणिक्योदर बन्धकम्बु कबरीमिन्दोः कलां विवर्ती
पाशं चांकुश पुस्तकाक्ष वलयं दक्षोर्ध्व बाह्लादितः ॥
बाला त्रिपुर सुन्दरी कवच पठेत् -
ऐं वाग्भवं पातु शीर्षं क्लीं कामस्तु तथा हृदि।
सौः शक्तिबीजं च पातु नाभी गुह्ये च पादयोः ॥१ ॥
ऐं क्लीं सौः वदने पातु बाला मां सर्वसिद्धये।
हसकलह्रीं सौः पातु भैरवी कण्ठदेशतः ॥२॥
सुन्दरी नाभि देशेऽव्याच्छीर्षिका सकला सदा।
भ्रू नासयोरन्तराले महात्रिपुरसुन्दरी ॥३॥
ललाटे सुभगा पातु भगा मां कण्ठदेशतः।
भगा देवी तु हृदये उदरे भगसर्पिणी ॥४॥
भगमाला नाभिदेशे लिङ्गे पातु मनोभवा।
गुह्ये पातु महादेवी राजराजेश्वरी शिवा ॥५॥
चैतन्यरूपिणी पातु पादयोर्जगदम्बिका।
नारायणी सर्वगात्रे सर्वकार्ये शुभङ्करी ॥६ ॥
ब्रह्माणी पातु मां पूर्वे दक्षिणे वैष्णवी तथा।
पश्चिमे पातु वाराही उत्तरे तु महेश्वरी ॥७॥
आग्नेय्यां पातु कौमारी महालक्ष्मीश्च नैऋते।
वायव्यां पातु चामुण्डा इन्द्राणी पातु चेशके ॥८॥
जले पातु महामाया पृथिव्यां सर्वमङ्गला ।
आकाशे पातु वरदा सर्वतो भुवनेश्वरी ॥९॥
॥ फलश्रुति ॥
इदं तु कवचं नाम देवानामपि दुर्लभम्।
पठेत् प्रातः समुत्थाय शुचिः प्रयत मानसः ॥१०॥
नाधयो व्याधयस्तस्य न भयं च क्वचिद् भवेत्।
न च मारीभयं तस्य पातकानां भयं तथा ॥११॥
न दारिद्र्यवशं गच्छेत् तिष्ठन्मृत्यु वशे न च।
गच्छेच्छिवपुरे देवि । सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥१२॥
इदं कवचमज्ञात्वा श्रीविद्यां यो जपेच्छिवे।
स माप्नोति फलं तस्य प्राप्नुयाच्छस्व घातनम् ॥१३॥
॥ इति श्रीरुद्रयामल उन्ने भैरव भैरवी संवादे श्रीबाला त्रिपुरसुन्दरी कवचम् ॥
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