श्री महा त्रिपुर सुन्दरी कवच,Shri Maha Tripura Sundari Kavach

श्री महा त्रिपुर सुन्दरी कवच

श्री त्रिपुर सुंदरी कवच के बारे में कुछ बातें:-

  • त्रिपुर सुंदरी कवच का पाठ करने से आधि-व्याधियां नहीं होतीं !
  • कवच का पाठ करने से महामारी, पाप, और दरिद्रता का भय नहीं रहता !
  • कवच का पाठ करने से मृत्यु का भय नहीं रहता !
  • कवच का पाठ करने से शिव के स्थान को प्राप्ति होती है !
  • कवच का पाठ करने वाले को शस्त्रास्त्रों से खतरा नहीं होता !

॥ श्री ईश्वर उवाच ॥

शृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि कवचं सुन्दरी प्रियम्। 
रहस्यामि रहस्यं च मन्त्ररूपमिदं प्रिये ॥ 

॥ श्रीपार्वत्युवाच ॥ 

भगवन्! सर्वलोकेश ! सर्वलोकैक वन्दित ! 
गुह्याद् गुह्यतमं तत्त्वं श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः ॥ 

विनियोगः 

अस्य श्री महात्रिपुरसुन्दरी कवच स्तोत्र मंत्रस्य श्री दक्षिणामूर्ति ऋषिः, 
अनुष्टुप्छंदः, श्री महात्रिपुरसुन्दरी देवता, ऐं-५ कएईल ह्रीं बीजं, 
क्लीं-६ हसकहल ह्रीं कीलके, सौः स-४ सकल ह्रीं शक्तिः,
 सर्वाभीष्टसिद्धयर्थं श्री महात्रिपुरसुन्दरी कवच स्तोत्र पाठे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यार्स कृत्वा मूलमन्त्रेण षडङ्गन्यासं कुर्यात्।

॥ ध्यानम् ॥

स कुंकुम विलेपनामलिक - चुम्विकस्तूरिकाम्
स मन्द हसितेक्षणां स शरचाप पाशाङ्कुशाम् ।
अशेष जन मोहिनीमरुण- माल्य - भूषाम्बरां
जपाकुसुम भासुरां जप विधौ स्मरेदम्बिकाम् 
चतुर्भुजे ! चन्द्रकलावतंसे कुचोत्रते कुंकुम रागशोणे ।
पुण्ड्रेक्षु पाशांकुश पुष्पवाण हस्ते नमस्ते जगदेकमातः 

श्री महा त्रिपुर सुन्दरी कवच 

ककारः पातु शीर्ष में एकारः पातु फालके। 
ईकारः पातु वकों में लकारः कूर्पयुग्मके ॥१ । 
हृींकारः पातु हृदयं वाग्भवश्च सदाऽवतु । 
हकारः पातु जठरं सकारो नाभि देशके ॥२॥ 
ककारः पार्श्वभागे च हकारः पातु पृष्ठके। 
लकारश्च नितम्बके मे ह्रींकारः पातु मूलके ॥३॥
कामराजः सदापातु जठरादि प्रदेशके। 
सकारः पातु कट्यां में ककारः पातु लिङ्गके ॥४॥
लकारो जानुनी पातु ह्रींङ्कारो जङ्घ युग्मके। 
शक्तिबीजं सदा पातु मूलविद्या सदाऽवतु ॥५॥
त्रिपुरा मां सदा पातु त्रिपुरेशी च सर्वदा। 
त्रिपुरासुन्दरी पातु वसुपत्रस्य देवता ॥६ ॥ 
त्रिपुरावासिनी पातु त्रिपुराश्रीः सदाऽवतु । 
त्रिपुरामालिनी पातु त्रिपुरा सिद्धिसदाऽवतु ॥७॥ 
त्रिपुरा तथा पातु पातु त्रिपुराभैरवी । 
अणिमाद्यास्तथा पांतु ब्राह्मयाद्याः पातु मां सदा ॥८॥ 
नवमुद्रास्तथा पान्तु कामाकर्षणि पूर्विकाः। 
पान्तु मां षोडशारे तु अनङ्गकुसुमादिकाः ॥९॥ 
पान्तु मामष्टपत्रेषु सर्वसंक्षोभणादिकाः । 
पान्तु चक्रकोणेषु सर्वसिद्धि प्रदायिकाः ॥१०॥ 
पान्तु मां बाह्यकोणेषु मध्यादि कोणके तथा। 
सर्वज्ञाद्यास्तथा पान्तु सर्वाभीष्ट प्रपूरिकाः ॥११॥ 
वशिन्याद्यास्तथा पान्तुवसु पत्रस्य देवताः । 
त्रिकोणस्यान्तरालेषु पान्तु मामायुधानि च ॥१२॥ 
कामेश्वर्यादिकाः पांतु त्रिकोणे कोण संस्थिताः। 
विन्दुचक्ने तथा पातु श्रीमत् त्रिपुरसुन्दरी ॥१३॥ 
इदं श्रीकवचं नित्यं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः । 
सर्वसिद्धिमवाप्नोति सर्वाभीष्ट फलप्रदम् ॥१४॥
॥ इति श्री महात्रिपुर-सुन्दरी कवचं सम्पूर्णम् ॥

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