Shri Kalika Sahastranam Stotram,श्री कालिका सहस्त्रनाम स्तोत्रम्

श्री कालिका सहस्त्रनाम स्तोत्रम्

श्री कालिका सहस्त्रनाम स्तोत्रम्, मां काली के एक हज़ार नामों का उच्चारण करते हुए उनका आह्वान करने वाला मंत्र है. मान्यता है कि इस मंत्र का जाप करने से मां काली प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की इच्छाएं पूरी करती हैं. इस मंत्र का जाप केवल रात में ही करना चाहिए. अगर सच्चे मन और पूरी श्रद्धा से इसका जाप किया जाए, तो एक रात में ही इसका असर दिखाई देने लगता है
इस स्तोत्र को भगवान शिव ने परशुरामजी को दिया था अतः इसकी विशेष महिमा है एवं स्वयं भगवती काली ने इसे प्रकाशित किया है।


श्री कालिका सहस्त्रनाम स्तोत्रम् - Shri Kalika Sahastranam Stotram

  • ॥ श्री शिव उवाच ॥ 

कथितोऽयं महामंत्रः सर्वमंत्रोत्तमोत्तमः । 
यामासाद्य मया प्राप्तमैश्वर्य पदमुत्तमम् ॥

संयुक्तः परया भक्त्या यथोक्त विधिना भवान् । 
कुरुतामर्चनं देव्यास्त्रैलोक्य विजिगीषया ॥

॥ श्री राम उवाच ॥

प्रसन्नो यदि मे देव परमेश पुरातन। 
रहस्यं परमं देव्याः कृपया कथय प्रभो ॥

विनार्चनं विना होमं विना न्यासं विना बलिं । 
विना गंधं विना पुष्पं विना नित्योदितां क्रियां ॥

प्राणयामं विनाध्यानं विना भूतविशोधनम्। 
विनादानं विना जापं येन काली प्रसीदति ॥

॥ श्री शिव उवाच ॥

पृष्ट त्वयोत्तमं प्राज्ञ भृगुवंश समुद्भव। 
भक्तानामपि भक्तोसि त्वमेव साधयिष्यसि ॥ 

देवीं दानव कोटिनीं लीलया रुधिरप्रियाम्। 
सदा स्तोत्र प्रियामुग्रां कामकौतुक लालसां ॥ 

सर्वदानन्द हृदयामासवोत्सव मानसाम्। 
माध्वी कमत्स्यमांसानुरागिणीं वैष्णीं पराम् ॥

श्मशान वासिनीं प्रेतगण नृत्य महोत्सवाम्। 
योगप्रभावां योगेशीं योगीन्द्र हृदयस्थिताम् ॥ 

तामुग्रकालिकां राम प्रसीदयितुमर्हसि। 
तस्याः स्तोत्र' परं पुण्यं स्वयं 'काल्या प्रकाशितम्' ॥ 

तव तत् कथयिष्यामि श्रुत्वा वत्सावधारय । 
गोपनीयं प्रयवेत पठनीयं परात्परम् ॥

यस्यैक कालपठनात् सर्वविघ्नाः समाकुलाः। 
नश्यन्ति दहने दीसे पतङ्गा इव सर्वतः ॥

गद्यपद्यमयी वाणी तस्य गङ्गाप्रवाहवत् । 
तस्यदर्शन मात्रेण वादिनो निष्ाभां गताः ॥

तस्य हस्ते सदैवास्ति सर्वसिद्धिनं संशयः। 
राजानोऽपि च दासत्वं भर्जते किं परे जनाः ॥

निशाथे मुक्त केशस्तुः नग्नः शक्ति समाहितः।
 मनसा चिन्तयेत् काली महाकालेन चालितां ॥

पठेत् सहस्त्रनामाख्यं स्तोत्रं मोक्षस्य साधनम् । 
प्रसन्ना कालिका तस्य पुत्रत्वेनानुकम्पते ।।

यथा ब्रह्ममृतै ब्रह्मकुसुमैः पूजिता परा। 
प्रसीदति तथानेन स्तुता काली प्रसीदति ॥

विनियोगः- 

अस्य श्री दक्षिण कालिका सहस्त्रनाम स्तोत्रस्य 
महाकालभैरव ऋषिस्विष्टुप् छन्दः श्मशानकोली 
देवता धर्मार्थकाममोक्षार्थे विनियांगः ।

॥ अथ स्तोत्रम् ॥ 

श्मशान कालिका काली भद्रकाली कपालिनी। 
गुहाकाली महाकाली कुरुकुा विरोधिनी ॥

कालिका कालरात्रिश्च महाकाल नितम्बिनी। 
कालभैरव भार्या च कुलवत्र्मप्रकाशिनी ॥

कामदा कामिनी कन्या कमनीयस्वरूपिणी । 
कस्तूरीरस लिप्ताङ्गी कुञ्जरेश्वर गामिनी ॥

ककारवर्ण सर्वाङ्गी कामिनी कामसुन्दरी। 
कामार्त्ता कामरूपा च कामधेनुः कलावती ॥

कांता कामस्वरूपा च कामाख्या कुलकामिनी । 
कुलीना कुलवत्यम्बा दुर्गा दुर्गति नाशिनी ॥

कौमारी कलजा कृष्णा कृष्णदेहा कृशोदरी। 
कृशाङ्गी कुलिशांगीजा क्रीङ्कारी कमला कला ॥

करालास्या कराली च कुलकांता पराजिता। 
उग्रा उग्रप्रभा दीप्ता विप्रचित्ता महाबला ॥

नीला घना मेघनादा मात्रा मुद्रा मितामिता।
ब्राह्मी नारायणी भद्रा सुभद्रा भक्तवत्सला ॥

माहेश्वरी च चामुण्डा वाराही नारसिंहिका। 
वज्राङ्गी वज्राकङ्काला नृमुण्डस्खग्विणी शिवा ॥

मालिनी नरमुण्डाली गलद्रक्त विभूषणा। 
रक्तचन्दन सिक्ताङ्गी सिंदुरारुण मस्तका ॥

घोररूपा घोरदंष्ठा घोरा घोरतरा शुभा। 
महादंष्ट्रा महामाया सुदन्ती युगदन्तुस ॥

सुलोचना विरूपाक्षी विशालाक्षी त्रिलोचना। 
शारदेन्दु प्रसन्नास्या स्फुरत् स्मेताम्बुजेक्षणा ॥

अट्टहासा प्रफुल्लास्या स्मेरवक्त्रा सुभाषिणी। 
प्रफुल्लपद्यवदना स्मितास्या प्रियभाषिणी ॥

कोटराक्षी कुलश्रेष्ठा महती बहुभाषिणी। 
समुतिः कुमतिश्चण्डा चण्डमुण्डातिवेगिनी ॥

सुकेशी मुक्तकेशी दीर्घकेशी महाकुचा।
प्रेतदेहाकर्णपूरा प्रेतपाणिसुमेखला ॥

प्रेतासना प्रियप्रेता पुण्यदा कुलपण्डिता । 
पुण्यालया पुण्यदेहा पुण्यश्नोका च पावनी ॥

पूता पवित्रा परमा परा पुण्य विभूषणा। 
पुण्यनाम्नी भीतिहरा वरदा खड्गपाशिनी ॥

नृमुण्डहस्ता शान्ता च छिन्नमस्ता सुनासिका । 
दक्षिणा श्यामला श्यामा शांता पीनोन्नतस्तनी ॥

दिगम्बरी घोररावा सुकान्तरक्त वाहिनी। 
घोररावा शिवासंगा निःसंगा मदनातुरा ॥

मत्ता प्रमत्ता मदना सुधासिन्धु निवासिनी। 
अभिमत्तामहामत्ता सर्वाकर्षण कारिणी ॥

गीतप्रिया वाद्यरता प्रेतनृत्य परायणा । 
चतुर्भुजा दशभुजा अष्टादशभुजा तथा ॥

कात्यायनी जगन्माता जगती परमेश्वरी। 
जगद्वन्धुर्जगद्धात्री जगदानन्द कारिणी ॥

जगज्जीववती हेमवती माया महालया। 
नागयज्ञोपवीताङ्गी नागिनी नागशायिनी ॥

नागकन्या देवकन्या गान्धारी किन्नरी सुरी। 
मोहरात्रि महारात्रि दारुणामा सुरासुरी ॥

विद्याधरी वसुमति यक्षिणी योगिनीजरा। 
राक्षसी डाकिनी बेदमयी वेदविभूषणा ॥

श्रुतिस्मृति महाविद्या गुह्यविद्या पुरातनी। 
चिंताचिंता स्वधा स्वाहा निद्रातंद्रा च पार्वती ॥ 

अपर्णा निश्चला लोला सर्वविद्या तपस्विनी। 
गङ्गा काशी शची सीता सती सत्यपरायणा ॥

नीतिः सुनीतिः सुरुचिस्तुष्टिः पुष्टिधृतिः क्षमा। 
वाणी बुद्धि महालक्ष्मी लक्ष्मीनर्नीलसरस्वती ॥

स्रोतस्वती स्रोतवती मातंगी विजया जया। 
नदी सिन्धुः सर्वमयी तारा शून्य निवासिनी ॥

शुद्धा तरंगिणी मेधा लाकिनी बहुरूपिणी। 
सदानन्दमयी सत्या सर्वानन्द स्वरूपिणी ॥

सुनन्दा नन्दिनी स्तुत्या स्तवनीया स्वभाविनी। 
रंकिणी टंकिणी चित्रा विचित्रा चित्ररूपिणी ॥

पद्मा पद्यालया पद्मसुखी पद्मविभूषणा । 
शाकिनी हाकिनी क्षान्ता राकिणी रुधिरप्रिया ॥

धान्तिर्भव रुद्राणी मृडानी शत्रुमर्दिनी। 
उपेन्द्राणी महेशानी ज्योत्स्रत्रा चेन्द्रस्वरूपिणी ॥

सूर्यात्मिका रुद्रपनी रौद्री स्वी प्रकृतिः पुमान। 
शक्तिः सूक्तिर्मतिमती भुक्तिर्मुक्तिः पतिव्रता ॥

सर्वेश्वरी सर्वमता सर्वांणी हरवल्लभा। 
सर्वज्ञा सिद्धिदा सिद्धा भाव्या भव्या भयापहा ॥

कत्रीं हीं पालयित्री शर्वरी तामसी दया। 
तमित्रा यामिनीस्था च स्थिरा धीरा तपस्विनी ॥

चार्वड्ङ्गी चंचला लोलजिह्वा चारु चरित्रिणी। 
त्रपा त्रपावती लज्जा निर्लज्जा ह्रीं रजोवती ॥

सत्ववती धर्मनिष्ठा श्रेष्ठा निष्ठुरवादिनी। 
गरिष्ठा दुष्टसंही विशिष्टा श्रेयसीघृणा ॥

भीमा भयानका भीमनादिनी भीः प्रभावती। 
वागीश्वरी श्रीर्यमुना यज्ञकत्रीं यजुःप्रिया ॥

ऋक्सामाश्वर्वनिलया रागिणी शोभनस्वरा। 
कलकण्ठी कम्बुकण्ठी वेगुवीणापरायणा ॥

वंशिनी वैष्णवी स्वच्छा धात्री त्रिजगदीश्वरी। 
मधुमती कुण्डलिनी ऋद्धिः सिद्धिः शुचिस्मिता ॥

रम्भोवंशी रती रामा रोहिणी रेवती रमा। 
शङ्खिनी चक्रिणी कृष्णा गदिनी पद्मिनी तथा ॥

शूलिनी परिधास्वा च पाशिनी शार्ङ्गपाणिनी। 
पिनाकधारिणी धूम्रा शरभी वनमालिनी ॥

वज्रिणी समरप्रीता वेगिनी रणपण्डिता। 
जटिनी विम्बिनी नीला लावण्याम्बुधिचन्द्रिका ॥

बलिप्रिया सदा पूज्या पूर्णा दैत्येन्द्र माथिनी। 
महिषासुरसंहन्त्री वासिनी रक्तदन्तिका ॥

रक्तपा रुधिराक्ताङ्गी रक्तखर्पर हस्तिनी। 
रक्तप्रिया गांसरुचिरा सवासरक्त मानसा ॥

गलच्छोणित मुण्डालिकण्ठमाला विभूषणा। 
शवासना चितान्तस्था माहेशी वृषवाहिनी ॥

व्याघ्रत्वगम्बरा चीनचेलिनी सिंहवाहिनी। 
वामदेवी महादेवी गौरी सर्वज्ञभाविनी ॥

बालिका तरुणी वृद्धा वृद्धमाता जरातुरा। 
सुधुर्विलासिनी ब्रह्मवादिनी ब्राह्मणी मही ॥

स्वप्नावती चित्रलेखा लोपामुद्रा सुरेश्वरी। 
अरुन्धती तीक्ष्णा च भोगवायनुवादिनी ॥

मन्दाकिनी मन्दहासा ज्वालमुख्य सुरान्तका। 
मानदा 'मानिनी मान्या माननीया मदोद्धता ॥

मदिरा मदिरान्मादा मेध्या नव्या प्रसादिनी। 
सुमध्यानन्तगुणिनी सर्वलोकोत्तमोत्तमा ॥

जयदा जित्वरा जेत्री जय श्रीर्जयशालिनी। 
सुखदा शुभदा सत्या सभासंक्षोभ कारिणी ॥

शिवदूती भूतिमती विभूतिर्भीषणानना। 
कौमारी कुलजा कुन्ती कुलस्वी कुलपालिका ॥

कीर्तिर्यशस्विनी भूषा भूष्या भूतपति प्रिया। 
सगुणा निर्गुणा धृष्टा निष्ठा काष्ठा प्रतिष्ठिता ।।

धनिष्ठा धनदा धन्यावसुधा स्वप्रकाशिनी। 
उर्वी गुों गुरुश्रेष्ठा सगुणा त्रिगुणात्मिका ॥

महाकुलीना निष्कामा सकामा कामजीवना। 
कामदेवकला रामाभिरामा शिवनर्तकी ॥

चिन्तामणि कल्पलता जानती दीनवत्सला। 
कार्त्तिकी कार्त्तिका कुत्या अयोध्या विषमा समा ॥

सुमंत्रा मंत्रिणी घूर्णा हृादिनी क्लेशनाशिनी। 
त्रैलोक्य जननी हृष्टा निर्मासा मनोरूपिणी ॥

तडाग निम्नजठरा शुष्कमांसास्थि मालिनी। 
अवन्ती मधुरा माया त्रैलोक्य पावनीश्वरी ॥

व्यक्ताव्यक्तानेकमूर्त्तिः शर्वरी भीमनादिनी। 
क्षेमङ्करी शंकरी च सर्वसम्मोह कारिणी ॥

अर्द्ध तेजस्विनी क्लिन्ना महातेजस्विनी तथा। 
अद्वैता भोगिनी पूज्या युवती सर्वमङ्गला ॥

महाभैरव पत्नी च परमानन्दभैरवी । 
सुधानन्दभैरवी च उन्मादानन्दभैरवी ॥

मुक्तानन्दभैरवी च तथा तरुणभैरवी । 
ज्ञाननन्दभैरवी च अमृतानन्दभैरवी ॥ 

महाभयङ्करी तीव्रा तीव्रवेगा तपस्विनी ।
त्रिपुरा परमेशानी सुन्दरी पुरसुन्दरी ॥


त्रिपुरेशी पञ्चदशी पञ्चमी पुरवासिनी। 
महासप्तदशी चैव घौडशी त्रिपुरेश्वरी ॥ 

महांकुश स्वरूपा च महाचक्रेश्वरी तथा । 
नवचक्रेश्वरी चक्रे श्वरी त्रिपुरमालिनी ॥ 

राजराजेश्वरी धीरा महात्रिपुर सुन्दरी। 
सिन्दूर पूर रुचिरा श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ॥

सर्वाङ्गसुन्दरी रक्ता रक्तवस्त्रोत्तरीविणी । 
जावायावकसिन्दूर रक्तचन्दन बारिणी ॥

जावायावकसिन्दूर रक्तचन्दन रूपधृक् । 
चामरी बालकुटिलनिर्मल श्यामकेशिनी ॥

वज्रमौक्तिक रत्राढ्य किरीट मुकुटोज्ज्वला । 
रत्नकुण्डल संसक्त स्फुरद्गण्ड मनोरमा ॥ 

कुंजरेश्वर कुम्भोत्थ मुक्तारञ्जित नासिका। 
मुक्ताविद्रुम माणिक्यहाराढ्य स्तनमण्डला ॥

सूर्यकान्तेन्दु कान्ताढय स्पर्शाश्मकंठभूषणा । 
बीजपूरस्फुरद्वीज दन्तपंक्तिरनुत्तमा ।

कामकोदण्डका भुग्रभूकाटाक्ष प्रवर्षिणी । 
मातङ्गकुम्भवक्षोजा लसत्कोकनदेक्षणा ।

मनोज्ञ शष्कुलीकर्णा हंसीगति विडम्बिनी। 
पद्मरागांगद ज्योतिर्दो चतुष्कप्रकाशिनी ॥

नानामणि परिस्फूर्जच्छुद्ध कांचनकंकना। 
नागेन्द्रदन्त निर्माणवलयांकित पाणिनी ॥

अंगुरीयक चित्रांगी विचित्र क्षुद्रघण्टिका। 
पट्टाम्बर परीधाना कलमञ्जीर शिंजिनी ॥

कर्पूरागरुकस्तूरी कुंकुमद्रव लेपिता। 
विचित्र रत्न पृथिवी कल्प शाखि तलस्थिता ॥

स्व्त्रद्वीप स्फुरद्रक्त सिंहासन विलासिनी । 
षट्‌चक्रभेदनकरी परमानन्द रूपिणी ॥

सहखदलपद्यान्त चन्द्रमण्डलवर्त्तिनी ॥
ब्रह्मरूपशिव क्रोडनानासुख विलासिनी।

हर विष्णु विरिचीन्द्र ग्रहनायक सेविता ॥
शिवा शैवा च रुद्राणी तथैव शिववादिनी।

मातङ्गिनी श्रीमती च तथैवानन्द मेखला ॥ 
डाकिनी योगिनी चैव तथोपयोगिनी मता।

माहेश्वरी वैष्णवी च भ्रामरी शिवरूपिणी ॥ 
अलम्बुषा वेगवती क्रोधरूपा सुमेरवला।

गान्धारी हस्तजिह्वा च इडा चैव शुभङ्करी ॥ 
पिङ्गला ब्रह्मदूती च सुषुम्ना चैव गन्धिनी।

आत्मयोनि ब्रह्मयोनिर्जगद् योनिरयोनिजा ॥ 
भगरूपा भगस्थात्री भगिनी भगरूपिणी। 

भगात्मिका भगाधाररूपिणी भगमालिनी ॥ 
लिंगाख्या चैव लिंगेशी त्रिपुरा भैरवी तथा।

लिंगगीतिः सुगीतिश्च लिंगस्था लिंगरूपधृक् ॥ 
लिंगमाना लिंगभवा लिंगलिंगा च पार्वती।

भगवती कौशिकी च प्रेमा चैव प्रियंवदा ॥ 
गृधरूपा शिवारूपा चक्रिणी चक्ररूपधृक।

लिंगाभिधायिनी लिंगप्रिया लिंगनिवासिनी ॥ 
लिंगस्था लिंगनी लिंगरूपिणी लिंगसुन्दरी।

लिंगगीतिर्महाप्रीता भगगीतिर्महासुखा ॥ 
लिंगनामसदानन्दा भगनामसदागतिः ।

लिंगमालाकण्ठभूषा भगमाला विभूषणा ॥
भगलिंगामृतप्रीता भगलिंग स्वरूपिणी।

भगलिंगस्य रूपा च भगलिंग सुखावहा ॥
स्वयम्भू कुसुमप्रीता स्वयम्भू कुसुमार्चिता।

स्वयम्भू कुसुमप्राणा स्वयम्भू पुष्पतर्पिता ॥
स्वयम्भू पुष्प घटिता स्वयम्भू पुष्पधारिणी।

स्वयम्भू पुष्पतिलका स्वयम्भू पुष्पचर्चिता ॥ 
स्वयम्भू पुष्पनिरता स्वयम्भू कुसुमग्रहा।

स्वयम्भू पुष्पयज्ञांशा स्वयम्भू कुसुमात्मिका ॥ 
स्वयम्भू पुष्यनिचिता स्वयम्भू कुसुमप्रिया।

स्वयम्भू कुसुमादान लालसोन्मत्तमानसा ॥
स्वयम्भू कुसुमानन्दलहरी खिग्धदेहिनी ॥

स्वयम्भू कुसुमाधारा स्वयम्भू कुसुमाकुला। 
स्वयम्भू पुष्पनिलया स्वयम्भू पुष्पवासिनी ॥

स्वयम्भू कुसुमत्रिग्धा स्वयम्भू कुसुमात्मिका। 
स्वयम्भू पुष्पकरिणी स्वयम्भू पुष्पवाणिका ॥

स्वयम्भू कुसुमध्याना स्वयम्भू कुसुमप्रभा । 
स्वयम्भू कुसुमज्ञाना स्वयम्भू पुष्पभागिनी ॥

स्वयम्भू कुसुमोल्लासा स्वयम्भू पुष्पवर्षिणी। 
स्वयम्भू कुसुमोत्साहा स्वयम्भू पुष्परूपिणी ॥

स्वयम्भू कुसुमोन्मादा स्वयम्भू पुष्पसुन्दरी। 
स्वयम्भू कुसुमाराध्या स्वयम्भू कुसुमोद्भवा ॥ 

स्वयम्भू कुसुमव्याग्रा स्वयम्भू पुष्पपूर्णिता । 
स्वयम्भू पूजक प्रज्ञा स्वयम्भू होतृमातृका ॥

 स्वयम्भू दातुरक्षित्री स्वयम्भू रक्ततारिका । 
स्वयम्भू पूजकग्रस्ता स्वयम्भू पूजक प्रिया ॥

स्वयम्भू वन्दकाधारा स्वयम्भू निन्दकान्तका । 
स्वयम्भू प्रदसर्वस्वा स्वयम्भू प्रदपुत्रिणी ॥

प्रदसस्मेरा स्वयम्भू स्वयम्भू प्रदशरीरिणी ॥
सर्वकालोद्भव प्रीता सर्वकालोद्भवात्मिका।

सर्वकालोद्भवोद्भावा सर्वकालोद्भवोदभवा ॥ 
कुण्डपुष्प सदा प्रीतिगेलि पुष्पसदारतिः ।

कुण्डगोलोद्भव प्राणा कुण्डगोलोद्भवात्मिका ॥ 
स्वयम्भूवा शिवाधात्री पावनी लोकपावनी।

कीर्तिर्यशस्विनी मेधा विमेधा शुक्रसुन्दरी ॥ 
अश्विनी कृत्तिका पुष्या तेजस्का चन्द्रमण्डला।

सूक्ष्मा सूक्ष्मा वलाका च वरदा भयनाशिनी ॥ 
वरदाभयदा चैव मुक्तिबन्ध विनाशिनी। 

कामुका कामदा कान्ता कामाख्या कुलसुन्दरी ॥ 
दुःखदा सुखदा मोक्षा मोक्षदार्थ प्रकाशिनी। 

दुष्टा दुष्टमतिश्चैव सर्वकार्य विनाशिनी ॥ 
शुक्राधारा शुक्ररूपा शुक्रसिन्धु निवासिनी। 

शुक्रालया शुक्रभोगा शुक्रपूजा सदारतिः ॥ 
शुक्रपूज्या शुक्रहोम सन्तुष्टा शुक्रवत्सला ।

शुक्रमूर्तिः शुक्रदेहा शुक्रपूजक पुत्रिणी ॥ 
शुक्रस्था शुक्रिणी शुक्र संस्पृहा शुक्रसुन्दरी।

शुक्रस्नाता शुक्रकरी शुक्रसेव्याति शुक्रिणी ॥ 
महाशुक्रा शुक्रभवा शुकवृष्टि विधायिनी।

शुक्राभिधेया शुक्रार्हा शुक्रवन्दक बन्दिता ॥ 
शुक्रानन्दकरी शुक्रसदानन्दाभिधायिका ।

शुक्रोत्सवा सदाशुक्रपूर्णा शुक्रमनोरमा ॥ 
शुक्रपूजकसर्वस्वा शुक निन्दक नाशिनी।

शुक्रात्मिका शुक्रसम्वत् शुक्राकर्षण कारिणी ॥ 
शारदा साधक प्राणा साधका सक्तमानसा। 

साधकोत्तम सर्वस्वा साधकाभक्तरक्तता ॥
साधकानन्द सन्तोषा साधकानन्द कारिणी।

आत्मविद्या ब्राहाविद्या परब्रह्म स्वरूपिणी ॥

॥ फलश्रुति ॥

त्रिकूटस्था पञ्चकूटा सर्वकूटशरीरिणी। 
सर्ववर्णमयी वर्णजपमाला विधायिनी ॥

इति श्री कालिका नाम सहस्त्रं शिवभाषितम्। 
गुह्याद्‌गुह्यतरं साक्षात् महापातक नाशनम् ॥

पूजाकाले निशीथे च सन्ध्योयीरुभयोरपि। 
लभते गाणपत्यं स यः पठेत साधकोत्तमः ॥

यः पठेत पाठयेद्वापि शृणोति श्रवयेदध। 
सर्वपाप विनिर्मुक्तः स याति कालिकापुरम् ॥

श्रद्धयाऽश्रद्धया वापि यः कञ्चिम्मानवः स्मरेत्। 
दुर्ग दुर्गशतं तीर्खा स याति परमां गतिम् ॥

बंच्या वा काकबंच्या वा मृतवत्सा च यांगना । 
श्रुत्वा स्तोत्रमिदं पुत्रान् लभते चिरजीविनः ॥

यं यं कामयते कार्य पठन् स्तोत्रमनुत्तमम् । 
देवीपाद प्रसादेन तत्तदाप्नोति निश्चितम् ॥

॥ इति श्रीकालिका कुल सर्वस्वे कालिका सहस्रनाम स्तोत्रं समाप्तम् ॥

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