श्री काली हृदय स्तोत्र

श्री काली हृदय स्तोत्रम् - Shri Kali Hridaya Stotram,

Shri Kali Hridaya Stotram:-यह स्त्रोत्र कालिका देवी का ह्रदय है । इस स्तोत्र का पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति भाव से पाठ करने पर देवी अनुग्रह करती है और समस्त कामनाओ की पूर्ति होती है । इस पाठ के प्रभाव से आयु बढती है, सम्मान प्राप्त होता है , सकल शत्रुओ का नाश होता है , सौभाग्य की वृद्धि होती है , भूत प्रेतादि की समस्या का निवारण होता है । इस स्तोत्र के सिद्ध हो जाने की स्थिति मे महाकाली साधक की जिह्वा पर विराजमान हो जाती है एवं उसके द्वारा कहा गया वाक्य ब्रह्म वाक्य होता है अर्थात पत्थर की लकीर । वाक सिद्धि के लिए इस स्तोत्र को अवश्य सिद्ध करेँ । नित्य 108 पाठ करना चाहिए । कुल 1100 पाठ से सिद्ध होता है ।


॥ श्री गणेशाय नमः ॥

श्री काली (कालिका) हृदय स्तोत्रम्

विनियोगः 

ॐ अस्य श्री दक्षिणकालिका हृदयमन्वस्य महाकाल ऋषिः, उष्णिक् छन्दः, श्रीदक्षिण कालिका देवता, हीं बीजं, हूं शक्तिः, की कीलर्क, श्री महाषोढारूपिणी महाकाल महिषा दक्षिण कालिका प्रसत्रार्थे पाठे विनियोगः।

ध्यानम्

चुच्छयामां कोटराक्षीं प्रलयघन घटां घोररूपां प्रचण्डां ।
दिग्वस्वां पिंगकेशीं डमरुसृणिधृतां खड्गपाशाभयानि ॥ 
नार्ग घंटां कपालं करसरसीरुहै कालिकां कृष्णवर्णां ।
ध्यायामि ध्येयमानां सकलसुखकरी कालिकां तां नमामि ॥
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कीं कीं कीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके कीं कीं कीं हूं हूं हीं हीं स्वाहा। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हंसः सोहं अं आं बह्मग्रंथिं भेदय भेदय ई ई विष्णुग्रन्थिं भेदय भेट्य उं ऊं रुद्रग्रन्थिं भेदय भेदय अं कीं आं कीं है की ई हूं उं हूं ऊं हीं ऋहीं के दंलं शिंलें णें एं कां ऐं लिं ओं के औं क्रीं अं कीं अः कीं अं हूं आं हूं ई डीं हैं ह्रीं डे स्वां ऊं हां यं हूं रे हूं लं में बं हां से कां थे लं से प्रं हे सीं लें दंक्षे प्रं थे सीं रे दंलं ह्रीं वं ह्रीं शं स्वां घं हां शं है लं क्षे महाकालभैरवि महाकालरूपिणि कीं अनिरुद्धसरस्वति हूं हूं ब्रह्मग्रहबन्धिनि विष्णुग्रहबन्धिनि रुहग्रहबन्धिनि गोचरग्रहबन्धिनि अधिव्याधि ग्रहबन्धिनि सर्वदुष्टग्रहबन्धिनि सर्वदानवग्रहबन्धिनि सर्वदेवताग्रहबन्धिनि सर्वगोत्र देवताग्रहवन्धिनि सर्वग्रहोपग्रहसन्धिनि कीं कालि की कपालिनि की कुल्ले हूँ कुरुकुल्ले हूं विरोधिनी हीं विप्रचित्ते ह्रीं उग्रे कीं उग्रप्रभे कीं दीप्ते की नीले हूं घने हूं बलाके ह्रीं मात्रे ह्रीं मुड़े।

ॐ मिते असिते असितकुसुमोपमे हूं हुंकारि कां कां काकिनि लां लां लाकिनि हां हां हाकिनि क्षिस क्षिस भ्रम भ्रम उत्तरतत्त्वविग्रह स्वरूपे अमले विमले अजिते अपाराजिते कीं कीं स्वीं हूं हूं फ्रें फ्रें दुष्टविहाविणि आं ब्राह्यि ई वैष्णवि के माहेशि श्रृं चामुण्डे लूं कौमारि ऐं अपराजिते औं बाराहि अं नारसिंहि ऐं ह्रीं क्लीं बामुण्डायै विच्चे श्रीं महालक्ष्मि हूं हूं पञ्चप्रेतोपरिस्थितायै शवालङ्कारायै चिन्तान्तस्थायै मैं भद्रकालिके दुष्टान विदारय विदारय मम दारिद्रयं हन हन पापं मथमथ आरोग्यं कुरु कुरु विरूपाक्षि विरूपाक्षवरदायिनि अष्टभैरवरूपे हीं नवनाथात्मिके 

ॐ ह्रीं ह्रीं शक्ति रां रां राकिनि लां लां लाकिनि हां हां हाकिनि कां कां काकिनि क्षिस क्षिस बद बद उत्तरत्तत्त्वविग्रहे कराल स्वरूपे आदिविद्ये महाकालमहिषि कीं कीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके कीं कीं कीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ॐ कीं हूं हीं मम पुत्रान् रक्ष रक्ष ममोपरि दुष्टबुद्धिम् दुष्ट प्रयोगान् कुव्र्व्यन्ति कारयन्ति करिष्यन्ति तान् हन हन मम मन्वसिद्धिं कुरु कुरु मम दुष्टं विदारय विदारय मम दारिद्रयं हन हन पापं मच मथ आरोग्यं कुरु कुरु आत्मतत्वं देहि देहि हंसः सोहम् कीं कीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा नवकोटिस्वरूपे आये आदिविद्ये अनिरुद्धसरस्वति स्वात्मचैतन्यं देहि देहि मम हृदये तिष्ठ तिष्ठ मम मनोरथं कुरु कुरु स्वाहा।

कालिका ह्रदय स्त्रोत्र-Shri Kali Hridaya Stotram

हं हं हं हंस हसी स्मित कह-कह चामुक्त-घोराटट-हासा ।
खं खं खं खड्ग हस्ते त्रिभुवने-निलये कालिका काल-धारी ।

रं रं रं रंग-रंगी प्रमुदित-वदने पिङ्ग-केशी श्मशाने ।
यं रं लं तापनीये भ्रकुटि घट घटाटोप-टङ्कार-जापे ॥

हं हं हंकार-नादं नर-पिशित-मुखी संघिनी साधु देवी ।
ह्रीँ ह्रीं कुष्टमांड-मुण्डी वर वर ज्वालिनी पिंग - केशी कृशांगी ॥

खं खं खं भूत-नाथे किलि किलि किलिके एहि एहि प्रचण्डे ।
ह्रुं ह्रुं ह्रुं भुत नाथे सुर गण नमिते मातरम्बे नमस्ते ॥

भां भां भां भाव भावैर्भय हन हनितं भुक्ति मुक्ति प्रदात्री ।
भीं भीं भीँ भीमकाक्षिगुर्ण गुणित गुहावास भोगी स भोगी ॥

भूं भूँ भूँ भूमि काम्पे प्रलय च निरते तारयन्तं स्व नेत्रे ।
भेँ भेँ भेँ भेदनीये हरतु मम भयं कालिके ! त्वा नमस्ते ॥


॥ अथ फल श्रुतिः ॥

आयुः श्री वर्द्धनीये विपुल रिपु हरे सर्व सौभाग्य हेतुः । 
श्रीकाली शत्रु नाश सकल सुख करे सर्व कल्याण मूले ॥

भक्तया स्तोत्रंत्रि - सन्ध्यंयदि जपति पमानाशु सिद्धि लभन्ते ।
भूत प्रेतादि रण्ये त्रिभुवन वशिनी रुपिणी भूति युक्ते ॥

॥ श्री काली तंत्रे कालिका ह्रदय स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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