शिव जी के द्वारा ब्रह्मा को वरदान
सनत्कुमार बोले- हे प्रभो! आपने उमापति महादेव को किस प्रकार प्राप्त किया यह सुनने की इच्छा है। सो आप कृपा पूर्वक कहिये। शैलादि बोले- हे महामुनि ! पूर्व काल में मेरे पिता ने पुत्र की कामना से बहुत समय तक तपस्या की। तब तपस्या से सन्तुष्ट होकर इन्द्र प्रकट हुए और शैलादि से बोले- मैं तुम पर प्रसन्न हूँ, वरदान माँगो। तब प्रणाम करके शिलाद ने कहा- हे भगवान! हे सहस्त्राक्ष! मुझे अयोनिज तथा मृत्यु से रहित पुत्र का वरदान दीजिए। इन्द्र बोले- हे विप्र ! मैं तुझे योनिज तथा मृत्यु से युक्त पुत्र तो दे सकता हूँ, परन्तु अयोनिज तथा मृत्यु से हीन पुत्र नहीं दे सकता। पद्म से उत्पन्न ब्रह्मा जी भी जो कि स्वयं ईश्वर हैं कमल की योनि से उत्पन्न हुए हैं वे भी मृत्यु से रहित नहीं हैं। करोड़ों वर्षों में कल्पान्त में वे भी अन्त को प्राप्त होते हैं। इसलिये हे विप्रेन्द्र ! अयोनिज और मृत्यु से रहित पुत्र की आशा को छोड़ दो। शैलादि बोले- इन्द्र की ऐसी बातें सुनकर मेरे पिता जिनका नाम शिलाद था,
बोले- हे महाबाहो इन्द्र ! भगवान अण्ड की योनि से, पद्म योनि से, ब्रह्मा तथा महेश्वर की योनि की बातें मैंने सुनी हैं। नारद से मैंने सुना है कि दाक्षायणी ब्रह्मा से उत्पन्न दक्ष के ऐसा पुत्र उत्पन्न हुआ था। इन्द्र ने कहा- तुम्हारी यह संशय की बात है। मेघ वाहन कल्प में जनार्दन भगवान ने ब्रह्मा को उत्पन्न किया। दिव्य देवताओं को हजारों वर्ष तक विष्णु ने मेघ होकर शिव को धारण किया। शंकर ने ब्रह्मा के साथ उनको सृष्टि रचना की सामर्थ प्रदान की। उस कला का नाम मेघवाहन हुआ। हिरण्यगर्भ तप के द्वारा शंकर को प्राप्त करके बोला- हे प्रभो ! आपके वामांग से विष्णु तथा दक्षिणांग से उत्पन्न मैं हूँ। हे देव! हमारे ऊपर प्रसन्न होइये। इसके बाद ऊपर जल रूपी समुद्र में जहाँ सब प्रकार से अंधकार है अनंत भोगों वाले शंख, चक्रादि से युक्त सर्पों की शैया पर योग निद्रा में शयन करते हुए विष्णु भगवान का दर्शन किया। ब्रह्मा के भौंहों के मध्य से विष्णु की उत्पत्ति हुई। उस अवसर पर रुद्र विकृत रूप धारण कर दोनों को वरदान देने के लिए वहाँ पहुंचे। शंकर को उन दोनों ने प्रणाम किया तथा स्तुति की शिव भी ब्रह्मा विष्णु पर अनुग्रह करके वहाँ पर अन्तर्ध्यान हो गए।
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