शिव व्रतों का वर्णन,Shiv Vraton Ka Varnan
ऋषि कहने लगे- हे सूतजी! पवित्र विपोहन स्तोत्र को हमने सुना, अब प्रसंग व लिंग दोनों को हमसे कहिए।
सूतजी बोले- हे मुनियो ! नन्दी ने कुमार से, कुमार ने व्यास से तथा व्यास से जो मैंने सुना वह शिव का व्रत तुमसे कहता हूँ। दोनों पक्ष की अष्टमी और चौदस को शिव का पूजन करे तथा रात्रि को भोजन करे। ऐसा करने से एक वर्ष में सम्पूर्ण यज्ञों का फल प्राप्त कर लेता है और परमगति को पाता है। मास की दोनों पंचमी और प्रतिपदा में जो क्षीरधारा का व्रत धारण करता है वह अश्वमेध यज्ञ के फल को प्राप्त कर लेता है। कृष्ण पक्ष की अष्टमी से चौदस तक जो रात्रि में भोजन करता है वह ब्रह्म लोक को प्राप्त करता है। जो वर्ष तक रात्रि में पर्वों को धारण करता है तथा जितक्रोधी व ब्रह्मचारी रहता है तथा वर्ष के अन्त में ब्राह्मणों को भोजन कराता है वह शंकर जी के लोक को जाता है।
देवता पूर्वाह्न में, मध्याह्न में ऋषि लोग, अपराह्न में पित्रीश्वर तथा संध्या में गुह्यक लोग भोजन करते हैं। सब बेलाओं को त्याग कर रात में भोजन सबसे उत्तम है।
स्नान करके, सत्य भाषण, थोड़ा आहार, अग्नि में हवन, पृथ्वी पर शयन तथा रात्रि में भोजन करने से परम गति को पाता है। अब मैं प्रत्येक मास का व्रत कहूँगा जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्षदायक तथा सब पापों से मुक्त करने वाला है।
पौष में शिव का पूजन करके रात्रि में जो भोजन करता है, वह सत्यवादी और जितेन्द्रिय रहता है। जो दोनों पक्ष की अष्टमी का उपवास करता है, भूमि में शयन करता है, पूर्णमासी को घृतादिक से शिव को स्नान कराकर शिव का पूजन करता है, खीर, घी आदि से ब्राह्मणों को भोजन कराकर जो गौ का दान करता है वह वन्हिलोक को जाता है।
इसी प्रकार माघ में शिव का पूजन करके जो रात्रि में घृत युक्त खिचड़ी का भोजन करता है, दोनों चतुर्दशी को व्रत रखता है, काला घोड़ा दान करता है, वह यम लोक में पहुंच कर यम के साथ क्रीड़ा करता है। फाल्गुन के महीने में समान घृत दूध से रात में जो भोजन करता है
तथा चौदस और आठें को उपवास करता है ऐसा शिव भक्त ताम्र वर्ण की गौ का जोड़ा ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान करता है वह चन्द्र लोक जाता है। चैत में रुद्र की पूजा करके चावल, घी, दूध से युक्त भोजन करने वाला, पृथ्वी पर सोने वाला पुरुष निरति के स्थान को पाता है। उसे पूर्णमासी में शिव का पूजन करके सफेद गौ का जोड़ा दान करना चाहिए। वैशाख के महीने में पूर्णमासी का व्रत कर पंचगव्य तथा घृतादि से शिव को स्नान कराता है वह अश्वमेध यज्ञ के फल को प्राप्त करता है। जेष्ठ के महीने में देवेश की पूजा कर रात्रि में भोजन करता है, धूम्र वर्ण को गौ ब्राह्मण की सेवा में रहता है, धूम्र वर्ण को मिथुन का दान करता है, पूर्णमासी का व्रत करता है वह वायु लोक में निवास करता है।
आषाढ़ के महीने में जो रात्रि में भोजन करता है, खांड, घी, सत्तू तथा गौरस का भोजन करता है, श्रोत्रीय ब्राह्मणों को भोजन कराता है, गौरवर्ण की गौ मिथुन का दान करता है वह वरुण लोक को जाता है। श्रावण में शिव पूजा में परायण जो रात्रि को भोजन (दूध व चावल) करता है, पूर्णमासी को घृतादिक से पूजा करके श्रोत्रीय ब्राह्मण को भोजन कराता है तथा आगे के पैर सफेद हों ऐसी पौंड्रगौ मिथुन का दान करता है वह वायु के समान सर्वत्र विचरण करता है तथा वायु के सायुज्य को प्राप्त करता है। भाद्रपद में जो रात्रि को भोजन करता है तथा वृक्ष की मूल में स्थित हवन के शेष भाग का भोजन करता है, वेद वेदांग पारंगत ब्राह्मणों को भोजन कराता है, नील कंधा वाले बैल तथा गौ का दान करता है वह यक्ष लोक में यक्षों का राजा बनता है।
आश्विन के माह में शंकर का यथावत पूजन कर जो ब्राह्मण को भोजन कराता है, नीलवर्ण का बैल तथा गौ को दान करने वाला मनुष्य ईशान लोक को प्राप्त होता है। कार्तिक के महीने में खीर और भात का भोजन करके जो शिव का पूजन करता है, ब्राह्मण को भोजन कराकर कपिला गौ मिथुन का तथा चरु का दान करता है वह सूर्य लोक में वास करता है। मार्गशीर्ष के महीने में इस प्रकार का रात्रि में भोजन करने वाला तथा जौ का अन्न, घी, दूध खाकर उपवास करता है, दरिद्र तथा ब्राह्मणों को भोजन कराता है, पांडुवर्ण की गौ मिथुन का दान करता है वह सोमलोक में सोम के साथ आनन्द करता है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, क्षमा, दया, ब्रह्मचर्य इनको धारण करके तीन बार स्नान करे, भूमि में शयन करे, रात्रि में भोजन करे, दोनों पक्षों की अष्टमी और चौदस का व्रत करना चाहिए। यह व्रत प्रतिमास का मैंने तुमसे कहा। हे ब्राह्मणो! जो कोई भी इस व्रत को एक वर्ष तक क्रम से या व्यतिक्रम से करे वह शिव सायुज्य को प्राप्त होता है।
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