शिव विभूति महिमा वर्णन,Shiv Vibhooti Mahima Ka Varnan
सनत्कुमार बोले- हे गणाधिपति ! शिव और उमा की विभूतियों का वर्णन मुझसे कीजिए। क्योंकि तुम परस्पर सब जानने वाले हो। नन्दिकेश्वर बोले- हे ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार ! मैं तुमसे उमाशंकर की विभूति को कहता हूँ, सो सुनो। परमात्मा शिव को कहते हैं और पार्वती को शिवा कहते हैं। शिव को परमेश्वर कहते हैं और गौरी को माया कहते हैं। शंकर को पुरुष कहते हैं तथा गौरी को प्रकृति। अर्थ शम्भु हैं तो शिवा पार्वती वाणी हैं। शंकर दिन हैं तो शिवा निशा हैं। सप्ततन्तु महादेव हैं और दक्षिणा पार्वती हैं। आकाशरूपी शंकर है और पृथ्वी रुद्राणी है। समुद्र रुद्र हैं तो बेला (तट) उमा हैं। वृक्ष शूलपाणि हैं तो लता पार्वती देवी हैं। ब्रह्मा हर हैं तो पार्वती ही सावित्री हैं। विष्णु महेश्वर हैं तो लक्ष्मी भवानी हैं। इन्द्र महादेव हैं तो शची शैल कुमारी हैं।
अग्निरूप शिव हैं तो स्वाहा रूप पार्वती हैं। यम शिव हैं उनकी प्रिया गिरि पुत्री है। वरुण भगवान रुद्र हैं तो गौरी सर्वार्थ दायिनी है। वायु चन्द्रशेखर तो शिवा उनकी मनोरमा स्त्री है। चन्द्रशेखर यदि चन्द्रमा है तो रुद्राणी रोहिणी है। सूर्य यदि शिव है तो कान्ता उमा देवी है। षड़ानन शिव हैं तो देवसेना उनकी प्रिया शिवा हैं। यज्ञेश्वर देव दक्ष है तो उमा प्रसूती हैं। मनु यदि शम्भु हैं तो उमा शतरूपा हैं। भृगु महादेव हैं तो ख्याति पार्वती हैं। अर्थात सब पुरुष महेश्वर शंकर के रूप हैं और सब स्त्रियाँ उमा पार्वती का स्वरूप हैं। पुल्लिंग के वाचक जितने भी शब्द हैं वह शिव रूप हैं और स्त्रीलिंग से वाचक सभी शब्द उमा पार्वती के रूप हैं। सब उमा महेश्वर रूप जानना चाहिए।
पदार्थों की जो शक्ति है वह सब गौरी रूप हैं। आठ प्रकृति भगवती देवी की मूर्ति कही है। जैसे अग्नि से बहुत से स्फुल्लिंग (चिनगारी) उत्पन्न होते हैं। शरीर धारियों के सब शरीर के रूप हैं और सब शरीर शंकर के रूप हैं। सुनने योग्य सभी रूप उमा रूप हैं तो श्रोता रूप सभी शंकर हैं। सृष्टि करने योग्य सभी रूप उमा हैं तो सृष्टा शंकर का रूप हैं। दृश्य पदार्थ यदि पार्वती हैं तो दृष्टा शंकर का रूप है। रस रूप उमा हैं तो रसयता देव शंकर हैं। गन्ध यदि उमा हैं सूँघने वाले महेश्वर हैं। बोध करने योग्य वस्तु उमां हैं तो बोधा शंकर हैं। पीठाकृति उमा हैं तो लिंग रूप शिव हैं। जो-जो पदार्थ लिंग है अंकित है वे सब शिव तथा जो-जो पदार्थ भगांकित हैं, वे उमा का रूप हैं। ज्ञेय उमा रूप हैं तो ज्ञाता शंकर हैं। क्षेत्र रूप को देवी धारण करती हैं तो क्षेत्रज भगवान शंकर हैं।
जो शिवलिंग को त्याग कर अन्य देवों को पूजता है वह राजा वेष सहित रौरव नर्क को प्राप्त होता है। जो राजा शिव का भक्त न होकर अन्य देवताओं में भक्ति करता है। वह ऐसे मानना चाहिए जैसे युवती स्त्री अपने पति को त्याग कर अन्य पुरुष का सेवन करती हो। राजा, ऋषि, मुनि सभी देव शिवजी की पूजा करते हैं। विष्णु ने भी सेना सहित रावण को मारने के लिए समुद्र के किनारे पर विधि पूर्वक शिवलिंग की स्थापना की थी। हजारों पाप करके तथा सैकड़ों ब्राह्मणों का वध करके भी जो भाव सहित शंकर का आश्रय लेता है वह सब पापों से मुक्त होता है। इसमें कोई संशय नहीं है। सब लोग लिंगमय हैं और सभी लिंग में प्रतिष्ठित हैं। इसलिए शाश्वत पद की इच्छा करने वाले को लिंग की पूजा करनी चाहिए। शिव और पार्वती दोनों सर्व आकार रूप से स्थित है। अतः कल्याण की इच्छा करने वाले पुरुषों को सदा उमा शंकर की पूजा करनी चाहिए और नमस्कार करना चाहिए।
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