शिव तत्व महात्म्य वर्णन,Shiv Tatv Kee Mahatta Ka Varnan

शिव तत्व महात्म्य वर्णन,Shiv Tatv Kee Mahatta Ka Varnan

सनत्कुमार बोले- हे महाबुद्धिमान ! बहुत से मुनीश्वरों ने बहुत से शब्दों द्वारा जिसका वर्णन किया है उस ईश्वर को तत्व रूप से मैं जानना चाहता हूँ। शैलादि बोले- हे कुमार ! जिसको बहुत मुनीश्वरों ने बहुत शब्दों द्वारा वर्णन किया है उस शिव को मैं तुमसे कह दूँगा। शास्त्र पारंगत कोई मुनीश्वर क्षेत्रज्ञ, प्रकृति व्यक्त, कालात्मा आदि रूप वाला कहता है। क्षेत्रज्ञ पुरुष को कहते हैं, प्रधान को प्रकृति कहते हैं। प्रकृति का सम्पूर्ण विकार जाल व्यक्त कहलाता है। प्रधान और व्यक्त का परिणाम काल है। ये चारों शिव के व्यक्त रूप हैं। कोई आचार्य हिरण्यगर्भ को पुरुष और व्यक्त रूपी शिव को प्रधान कहते हैं। हिरण्यगर्भ इस विश्व का कर्त्ता है और पुरुष भोक्ता है। विकार समुदाय व्यक्त नाम का प्रधान कारण है। इनके मत से भी चारों शिव रूप हैं और ये मुनीश्वर यही कहते हैं कि शिव से अन्यत्र कुछ है ही नहीं। कोई आचार्य शिव को पिण्ड जाति स्वरूप वाला कहते हैं। चराचरों के अखिल शरीर पिण्ड नाम वाले हैं। समस्त सामन्य जाति को कहते हैं।


कोई कोई महात्मा विराट और हिरण्यगर्भ नाम से शिव का रूप वर्णन करते हैं। हिरण्यगर्भ लोकों का हेतु है और विराट लोक स्वरूप है। कोई आचार्य लोग सूत्र और अव्याकृत रूप से उसका वर्णन करते हैं। अव्याकृत प्रधान को कहते हैं। डोरा में माला के मनिकाओं के समान लोक जिसमें ठहरे हुए हैं, वही सूत्र रूप अद्भुत स्वरूप शिव हैं, ऐसा जानना चाहिए। कोई आचार्य ईश्वर को अन्तर्यामी कहते हैं। वही शम्भु स्वयं ज्योति स्वरूप है और स्वयं ही जानने योग्य (वेद्य) है। सम्पूर्ण प्राणियों का अन्तर्यामी शिव को कहा है इसमें उसे 'पर' भी कहते हैं। प्राज्ञ, तेजस, विश्व ये तीनों रूप शिव के हैं। सुषुप्ति, स्वप्न, जाग्रत ये तीनों अवस्था के साक्षी हैं। विराट हिरण्यगर्भ और अव्याकृत ये भी तुरीय अवस्था में स्थित शिव के ही स्वरूप हैं। जगत की स्थिति सृष्टि और संहार के हेतु विष्णु, ब्रह्मा और शंकर ये नाम शिव के ही हैं। देहधारी भक्ति पूर्वक उसकी आराधना करके उसको प्राप्त करते हैं।

कर्त्ता, क्रिया और कारण और कार्य इन चारों को विद्वान लोग शिव का ही रूप कहते हैं। प्रमाता, प्रमाण, प्रमेय और प्रमिति ये चार रूप भी शिव के ही हैं इसमें संशय नहीं है। ईश्वर, अव्याकृत, प्राण, विराट, भूत और इन्द्रियात्मक रूप से सब शिव का ही विकार हैं। जिस प्रकार समुद्र की अनेक तरंगें होती हैं। ईश्वर को ही जगत का निमित्त कारण कहते हैं। अव्याकृत प्रधान का ही नाम है। ईश्वर जगत का निमित्त कारण है। प्रधान को अव्याकृत कहा है। हिरण्यगर्भ प्राण नाम वाला तथा विराट लोकात्मक रूप है। महाभूत, भूत तथा इन्द्रियाँ ये सब कार्य हैं। ये सब शिव का ही रूप हैं, ऐसा मुनि लोग कहते हैं।

परमात्मा शिव से अन्य कुछ ही नहीं ऐसा मुनि श्रेष्ठ कवि लोग कहते हैं। पच्चीस तत्व भी शिव से ही उत्पन्न होते हैं जैसे सुमद्र से तरंगों का समूह, पच्चीस पदार्थों में शिव ही हैं जैसे कंकण, कुण्डल आदि में स्वर्ण है। उत्पन्न हुई सभी वस्तुयें शिव से भिन्न नहीं हैं जैसे घट आदि बर्तन मिट्टी से भिन्न नहीं है। माया, विद्या, क्रिया, शक्ति, ज्ञान, शक्ति शिव से भिन्न नहीं है जैसे सूर्य से किरण भिन्न नहीं है। सर्वात्मक सर्वाश्रम विधाताई सब भाव से शिव को ही तुम भजो यदि तुम कल्याण की इच्छा रखते हो तो। क्योंकि शिव से परम कुछ है ही नहीं।

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