शिव पूजा विधि वर्णन,Shiv Pooja Vidhi Varnan

शिव पूजा विधि वर्णन,Shiv Pooja Vidhi Varnan

शैलादि बोले- प्रसन्न मुख प्रभु वृषभध्वज को प्रणाम करके मुनि लोग और देवता प्रेम से रोमांचित हुए पूछने लगे।देवता बोले- किस मार्ग से कहाँ और कैसे द्विजातियों को शंकर जी की पूजा करनी चाहिए ? पूजा में किसका अधिकार है? ब्राह्मण का कैसे, वैश्य और क्षत्रियों का कैसे ? स्त्रियों और शूद्रों का कैसे तथा कुण्ड गोलकों का कैसे शिव पूजन में अधिकार है? सो हमको जगत के हित के लिए उसे कहिए ? सूतजी कहने लगे - इस प्रकार वाणी को सुनकर गम्भीरता पूर्वक शंकर जी बोले- मंडल के अगारी उमा सहित देव देव अष्ट बाहु चतुर्मुख, बारह नेत्र वाले अर्धनारीश्वर, जटा-मुकुट धारण किए हुए, सम्पूर्ण भूषणों से युक्त, रक्त माला, चंदन से चर्चित रक्त वस्त्र धारण किए हुए सृष्टि स्थिति संहार करने वाले जिनका पूर्व मुख पीत तथा दक्षिण का मुख नीले पर्वत के समान अघोर है, जिसके कराल दाढ़, ज्वाला माला से युक्त, जटा और दाढ़ी मूँछों से सहित बड़ा विकट है। उत्तर का मुख विद्रूम की सी कान्ति वाला प्रसन्न मुख है। पश्चिम का मुख गो दूध के समान धवल, मुक्ताहारों से भूषित तथा तिलक से उञ्जवल है। पाँचवाँ सद्योजात के समान दिव्य भास्कर के तेज वाला मुख है। 


सब मुखों से पूर्व सद्योजात का मुख दीखता है तथा अन्य मुख दीखते हैं। पूर्व मण्डल में विस्तारा नाम की, दक्षिण में उत्तरा नाम की, पश्चिम में बोध की नाम की, उत्तर में अध्यायनी नाम की सम्पूर्ण आभरणों से सम्पन्न शक्तियाँ हैं। दक्षिण भाग में ब्रह्मा को बायें भाग में विष्णुजनार्दन को, ऋग, यजु, साम, मार्ग से मूर्तित्रय शिव को मुनि लोग देख रहे हैं। उनके स्वरूप में ही सोम, मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र, मन्द मन्द, गति, शनि उनके चारों तरफ में दीखते हैं। जगन्नाथ दीखते हैं। जगन्नाथ शिव सूर्य रूप में और साक्षात् उमा सोम रूप में शेष भूतों को, चराचर जगत को उमापति शिव के रूप में सभी देवता देखते हैं। उनको देखकर सभी देवता और मुनि हाथ जोड़कर उत्तम- उत्तम स्तोत्रों से उनकी स्तुति करने लगे।

ऋषि बोले- शिव रूप, रुद्र रूप, मीढुष्टङ्ग रूप आपको नमस्कार है। आप नवीन शक्ति से युक्त पद्म पर स्थित हो। आप भास्कर स्वरूप हो। आप आदिता भानु, रवि, दिवाकर रूप और उमा, प्रभा, प्रज्ञा, संध्या, सावित्री, विस्तारा, बोधिनी आदि रूप वाली हो आपको हम प्रणाम करते हैं। सोमादि देवों की मन्त्रों द्वारा पूजा करके रवि मण्डल में स्थित शंकर भगवान की ही हम स्तुति करते हैं। सिन्दूर के से वर्ण वाले मण्डल स्वरूप, स्वर्ण और हीरा के आभूषण वाले ब्रह्म इन्द्र नारायण के भी कारण आपको नमस्कार है। आपका रथ सात घोड़ों वाला, अनूरू सारथी वाला है। गण आपके सात प्रकार के हैं। ऋतु के अनुसार बालखिल्य आपकी स्तुति करते हैं। तिल आदि से विविध प्रकार से अग्नि में हवन करके हृदय कमल में स्थित बिम्ब रूप शिव का ही स्मरण करते हैं। पद्म के समान अमल लोचन वाले तथा रक्त वर्ण वाले आपके विम्ब का हम स्मरण करते हैं। आपका दिव्य मुख जिसमें भयंकर दाहें हैं, विद्युत के समान जिसका प्रकाश है, दैत्यों को भय प्रदान करने वाला है और जो हृदय से राक्षस गणों को घुड़क रहा है। उसका हम स्मरण करते हैं।

श्वेत, चन्द्रमा, मंगल, अग्नि के से वर्ण वाला, बुध चाँदी के रंग वाला, वृहस्पति कंचन के से वर्ण वाला, शुक्र रूप जो सफेद है तथा काले रंग वाले शनि तथा भास्कर से आदि लेकर सभी शिव के ही स्वरूप हैं। पुष्प गन्ध से युक्त कुन्द इन्दु के समान स्वच्छ जल से ताम्र पात्र के द्वारा जा आपको अर्थ दे उस पर हे भगवन्! आप प्रसन्न होइए। ईश्वर स्वरूप, कमर्दी स्वरूप, विष्णु स्वरूप, ब्रह्म स्वरूप तथा सूर्य मूर्ति रूप शिव के लिए नमस्कार है। सूतजी कहते हैं- इस प्रकार सूर्य मण्डल में स्थित सायं, प्रातः, मध्याह्न में शिव की पूजा करके इस स्तोत्र का पाठ करता है। वह शिव के साथ सायुज्य को प्राप्त होता है। इसमें कोई सन्देह की बात नहीं है।

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