शिव पूजा महात्म्य वर्णन,Shiv Pooja Mahaatmy Ka Varnan
सूतजी बोले- इस प्रकार भगवान महेश्वर के द्वारा क्षण मात्र में त्रिपुर को भस्म कर देने पर तथा महेश्वर के चले जाने पर ब्रह्मा जी इन्द्र से इस प्रकार बोले- ब्रह्माजी बोले- तार नामक दैत्य का पुत्र महा बलवान तारकाक्ष और विद्युन्माली आदि राक्षस राज भी अपने बाँधवों सहित शिवजी की माया से मोहित हो सभी नष्ट हो गये। इसलिए सदा शिवलिंग में सदा शिव की पूजा करनी चाहिए। जब तक देवताओं की पूजा है तथा यह संसार स्थित है तब तक नित्य ही श्रद्धा के साथ शिव की पूजा करनी चाहिए। यह सम्पूर्ण लोक शिव में प्रतिष्ठित है और शिवलिंगमय है। इसलिए अपनी आत्मा की श्रद्धा के लिए इच्छा पूर्वक लिंग की पूजा करनी चाहिए। देव, दैत्य, दानव, यक्ष, विद्याधर, सिद्ध, राक्षस, पिशितारान, पितर, मनुष्य, पिशाच, किन्नर आदि सभी अपनी सिद्धि के लिए लिंग की अर्चना करते हैं इसमें सन्देह नहीं, इसलिए हे देवताओ! जैसे भी हो लिंग की पूजा करनी चाहिए। हम सब देव देव महादेव जो बुद्धिमान हैं उनके पशु हैं इसलिए पशुता को छोड़कर पाशुपात व्रत धारण करना चाहिए।
महादेव को हमेशा लिंग मूर्ति में पूजना चाहिए। हे श्रेष्ठ देवताओ ! प्राणायाम पूर्वक ॐकार के द्वारा सब अंगों में भस्म लगानी चाहिए, कर्मेन्द्रियों को रोककर आत्मा को शरीर में निरोधकर अग्नि और भस्म का स्पर्श करना चाहिए। हे देवताओ! पाशुपत व्रत को धारण करने वाला योगी पुरुष सब तत्वों का ज्ञाता होता है तथा संसार रूपी जाल से छूटकर मोक्ष को प्राप्त करता है। इस प्रकार का पाशुपत योग करके लिंग में परमेश्वर की पूजा करते हुये मैंने विष्णु भगवान को देखा है। मैं भी महादेव की अर्चना करके यत्न पूर्वक सब काम करता हूँ जो शिवजी की सेवा में रहता है और उनको याद करता है वह संसार के दुःख का भागी नहीं होता और तीनों लोकों का राज्य इच्छानुसार भोगता है। जो हमेशा लिंग में महेश्वर को पूजता है और जो हवन करता है, वह सब पापों को जलाता है। जो विरुपाक्ष शिव का भजन करता है वह पापों से छूट जाता है। शैल, लिंग, मुझे तथा सब देवताओं को नमस्कार करके तीनों लोकों के स्वामी रुद्र की पूजा करनी चाहिए और उन त्र्यम्बक को वाणी के द्वारा सन्तुष्ट करना चाहिए। इस प्रकार ब्रह्माजी की बात सुनकर इन्द्रादि सभी देवता सुरेश्वर की पूजा करके पाशुपत योग करके तथा अपने शरीर में भस्म धारण करके रहने लगे।
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