शिव पूजा का विधान,Shiv Pooja Ka Vidhaan
शैलादि बोले- शिव पूजा के विधान को मैं तुम्हें संक्षेप से कहूँगा। यह शिव शास्त्रोक्त मार्ग से शिवजी ने स्वयं पूर्व में कहा है। चन्दन से चर्चित दोनों हाथों को अन्जली बाँधकर करन्यास करे इसको शिवहस्ता कहते हैं। ऐसे हाथों से शिव की पूजा करनी चाहिए। तत्वगत आत्मा की व्यवस्था करके पूर्व की तरह आत्मा की शुद्धि करनी चाहिए। पृथ्वी, जल, आग, वायु, आकाश आदि पाँचों तत्वों की शुद्धि करे। षट सहित सद्य और तृतीय मन्त्र से फट् तक धारा की शुद्धि, घट सहित सद्य और तृतीय मन्त्र से फट् तक जल की शुद्धि, वाहि के तृतीय मन्त्र से फट् तक अग्नि की शुद्धि, वायवी चौथे मन्त्र से षष्ट सहित फट् तक वायु की शुद्धि और षष्ट सहित तृतीय से आकाश की शुद्धि करनी चाहिए। इस प्रकार उक्त संहार करके अमृत धारा का सुष्मना में ध्यान करे। शान्तातीत आदि की निवृत्ति तक आर्तनाद बिन्दु अकार, उकार मकार वाले (ॐ वाले) सदा शिव को ब्रह्मन्यास करके पाँचों मुखों के पन्द्रह नेत्रों वाले प्रभु का ध्यान करे तथा मूल मन्त्र से पाद से लेकर केश पर्यन्त महामुद्राओं को बाँध कर 'मैं शिव हूँ'
ऐसा ध्यान करके शक्तियों का स्मरण करके आसन की कल्पना करके, अन्तःकरण में सर्वोदय चार सहित नाभी रूपी वह्नि कुण्ड में पूर्ववत् सदा शिव का ध्यान करे, बिन्दु से अमृत धारा गिरती है इसका ध्यान करके, ललाट में दीपशिखाकार शिव का ध्यान करके आत्म शुद्धि इस प्रकार से करे और प्राण अपान का संयम कर सुष्मना के द्वारा वायु का संयम करे और घष्ट मन्त्र से ताल मुद्रा करके, दिगबन्धन करके स्थान शुद्धि प्रणव से तीन तत्वों का विन्यास करके उसके ऊपर बिन्दु का ध्यान करके जल से पूर्ण करके संहिता से अभिमन्त्रित करे। द्वितीय मन्त्र से अमृती करके, तीसरे से विशुद्ध करके, चौथे से अवगुण्ठन करके, पंचम से अवलोकन करके, षष्ठ से रक्षा करके, कुश पुण्ज से, अर्घ जल से सर्व द्रवों का तथा आत्मा का शोधन करे तथा रुद्र गायत्री से शेष सबका प्रोक्षण करे। पंचामृत और पंच गव्य आदि को ब्रह्मांगों से और मूल मत्र से अभिमन्त्रित करे। ऐसे द्रव्य शुद्धि करके, मौन होकर पुष्पांजलि दे। प्रणावादि नमो पर्यन्त मन्त्रों का जप करके पुष्प छोड़े।
पाशुपात मन्त्र से, पाशुपतास्त्र से शिवलिंग की मूर्धा पर पुष्प वर्षा करे। ॐ नमः शिवाय मूल मन्त्र से भगवान की पूजा करे। पुनः पुष्पांजलि देकर दीप, धूप आदि से पूजा करे। शिवजी की मूर्धा पर पुष्प चढ़ावें। शून्य मस्तक न छोड़े। क्योंकि कहा है कि जिस राजा के राज में शून्य मस्तक शिवलिंग रहता है उसके राज में दुर्भिक्ष अकाल अलक्ष्मी, महा रोग वाहन क्षय होता है। इसलिये राजा को धर्म, अर्थ, काम और मुक्ति की सिद्धि के लिए शून्य लिंग मस्तक न रहने दे। शिवलिंग को स्नान कराकर वस्त्र से पौंछे। गन्ध, पुष्प, दीप, धूप, नैवेद्य, अलंकार आदि शिव को मूल मन्त्र से अर्पण करे। आरती करे, दीपदान दे और धेनु मुद्रा का प्रदर्शन करे। मूल मन्त्र से नमस्कार करे। मूल मन्त्र का यथायोग्य जप करे। दशाँश हवन इत्यादि करे। ब्रह्मांग जप समर्पण, आत्म निवेदन, स्तुति नमस्कार आदि करे। गुरु की पूजा आदि अन्त में विनायक का पूजन भी करे।
इस प्रकार जो ब्राह्मण सर्व कामनाओं के लिए लिंग में अथवा स्थण्डल में शिव की पूजा करता है वह एक माह में या एक वर्ष में करने पर ही शिव सायुज्य को प्राप्त कर लेता है। लिंगार्चक पुरुष छः मास में ही शिव सायुज्य पाता है। सात परिक्रमा करके दण्डवत प्रणाम करना चाहिए। प्रदक्षिणा करने पर पग पग पर सैंकड़ों अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। इसलिए सर्व कार्य सिद्धि के लिए शिव की पूजा करनी चाहिए। भोग की इच्छा वाला भोगों को प्राप्त करता है, राजा राज्य को प्राप्त करता है। पुत्रार्थी पुत्र पाता है। रोगी रोग से मुक्त होता है। जो-जो पुरुष जो-जो कामना करता है वह सभी को प्राप्त करता है।
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