शिव मूर्ति प्रतिष्ठा फल का वर्णन,Shiv Moorti Pratishtha Phal Ka Varnan

शिव मूर्ति प्रतिष्ठा फल का वर्णन

सूतजी बोले- हे मुनियो ! अब मैं इसके बाद स्वेच्छा विग्रह की उत्पत्ति और उसके प्रतिष्ठा के फल को आप लोगों को कहूँगा। उमा और स्कन्ध सहित शिव की भक्ति पूर्वक स्थापना करके सर्वकामनाओं को मनुष्य प्राप्त करता है। इससे जो फल प्राप्त होता है उसे मैं आप लोगों से कहता हूँ। करोड़ों सूर्य के समान करोड़ों विमानों से युक्त योगी जब तक महा प्रलय होती है तब तक शिव के समान क्रीड़ा करता है। ओम, कौमार, ईशान, वैष्णव, ब्रह्म, प्रजापत्य ऐन्द्र आदि लोकों के भोगों को हजारों वर्षों तक भोग कर सुमेरु पर स्थान बनाकर देवताओं के भुवनों में क्रीड़ा करता है। 


एकपाद, चार भुजा, त्रिनेत्र और शूल से युक्त जिसके वाम भाग में विष्णु और दक्षिण भाग में ब्रह्मा, २८ रुद्रों की कोटी, वाम भाग से प्रकृति, बुद्धि से बुद्धि और अहंकार से अहंकार, इन्द्रियों से इन्द्री, पाद मूल से पृथ्वी, गुह्य से जल, नाभि से वह्नि हृदय से भास्कर, कण्ठ से सोम, भूमध्य से आत्मा, मस्तिष्क से स्वर्ग इस प्रकार चढ़कर सब जगत जिनसे उत्पन्न होता है ऐसे सर्वज्ञ और सर्वगत देव की ध्यान पूर्वक प्रतिष्ठा करके मनुष्य शिव सायुज्य को प्राप्त करता है। बैल पर स्थित, चन्द्रमा का भूषण धारण किए हुए शिव की जो प्रतिष्ठा करता है वे किंकिणी जालों से युक्त स्वर्ण के विमान में बैठकर दिव्य शिव लोक में जाकर वास करता है और मुक्त हो जाता है। गण अम्बिका और नन्दी से युक्त शिव की प्रतिष्ठा करने वाला, सूर्य मण्डल के सदृश विमानों में बैठकर अप्सरा आदि के नृत्य के साथ शिव लोक में गणपति होकर निवास करता है। पार्वती सहित वृषभध्वज शिव को ब्रह्मा, इन्द्र, विष्णु आदि से सदा प्रतिष्ठा करने वाला सर्व यज्ञ, तप, दान तीर्थों के फल को प्राप्त करके शिव लोक में जाकर महा प्रलय तक भोगों को भोगता है।

नग्न, चतुर्भुज, श्वेत, सर्प मेखला वाले, त्रिनेत्र वाले, कपाल हाथ में धारण किए हुए, काले केश वाले शिव की स्थापना करके शिव सायुज्य को प्राप्त करता है। धूम्र वर्ण वाले, लाल नेत्र वाले, चन्द्रभूषण, काकपक्ष धारी, बाघम्बर ओढ़े हुए, मृगचर्म धारण किये हुए, तीक्ष्ण दाँत वाले, कपाल जिसके हाथ में है, हूँ तथा फट् शब्द से दिशाओं को नादित करते हुए गण और भूत समूहों से नृत्य करते हुये शिव की प्रतिष्ठा करने वाला सब विघ्नों को लांघकर महा प्रलय तक शिव लोक में वास करता है। चतुर्भुज, अर्धनारीश्वर, वरद और अभय हस्त वाले, शूल पद्म धारण किए हुए स्वर्णाभरण भूषित स्त्री पुरुष भाव से जो स्थापना करता है वह अणिमा आदि सिद्धियों को भोगकर शिव लोक में जाता है। चिताभस्म धारण किए हुए, बाघम्बर धारण किये हुए, शिरोमाला धारण किए हुए, उपवीत धारण किए हुए, शिव की प्रतिष्ठा करके मनुष्य संसार के भय से मुक्त होता है।

"ॐ नमो नील कंठाय" इस आठ अक्षर वाले पुण्य मन्त्र को एक बार भी जो जपता है वह सब पापों से मुक्त होता है। इस मन्त्र से गन्धादि द्वारा महादेव का पूजन करता है वह शिव लोक में पूज्य होता है। जालंधर का अन्त करने वाले, सुदर्शन धारण करने वाले देवाधि देव की जो प्रतिष्ठा करता है वह शिव सायुज्य को प्राप्त करता है इसमें सन्देह नहीं। जो देव देव त्रिपुरान्तक ईश्वर, धनुष बाण धारण से युक्त, अर्धचन्द्र भूषण वाले, जिसमें सारथी हैं ऐसे रथ में बैठे हुए शिवजी की पूजा करता है, वह शिव लोक में ऐश्वर्यों को प्राप्त करता है। गंगा से सुशोभित, वामांग में पार्वती से युक्त, विनायक और स्कन्ध, सूर्य और चन्द्रमा के सहित, ब्राह्मणी, कौमारी, माहेश्वरी, इन्द्राणी, चामुण्डा, वीरभद्र आदि गणों से युक्त मूर्ति की स्थापना करने वाले पुरुष शिव सायुज्य को प्राप्त करता है, इसमें सन्देह नहीं। लिंग के मध्य में चन्द्रशेखर भगवान की मूर्ति, ऊपर हंस रूप ब्रह्मा की मूर्ति बनाकर अथवा दक्षिण में ब्रह्मा की मूर्ति जो हाथ जोड़े स्थित है और महालिंग शिव की मूर्ति बनाकर स्थापित करके जो पूजा करते हैं वे शिव सायुज्य को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार महालिंग में शिव की प्रतिष्ठा करने वाला व्यक्ति शिव लोक में पूजा जाता है।

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