शिव लिंग की विविध विधियों का वर्णन,Shiv Ling Kee Vividh Vidhiyon Ka Varnan

शिव लिंग की विविध विधियों का वर्णन

सूतजी बोले- ब्रह्मा की आज्ञा से अधिकार के अनुसार विश्वकर्मा ने लिंगों की कल्पना की। इन्द्र नील मय लिंग की सदा विष्णु ने पूजा की। पद्मराग मणिमय लिंग को सदा इन्द्र ने पूजा। स्वर्णमय को विश्रवा के पुत्र ने पूजा। विश्वे देवताओं ने रजत (चाँदी) मय लिंग को पूजा। वसुओं ने कान्तिक मय, वायु ने पीतलमय, अश्विनी कुमारों ने पार्थिव (मिट्टी) के लिंग की पूजा की, वरुण ने स्फटिक मणि का, आदित्यों ने ताम्रमय, सोमराज ने मौक्तिक लिंग की पूजा की। अनन्त आदि नागों ने प्रबालमय और दैत्यों ने लोहमय लिंग का पूजन किया। गुह्यकों ने त्रैलोहिक, चामुण्डा ने बालूमय, नैऋति ने लकड़ी के बने शिवलिंग की पूजा की। यम ने मरकत मणि का बना शिवलिंग का पूजन किया। रुद्रों ने शुद्ध भस्ममय का, लक्ष्मी ने विल्ब वृक्ष का बना तथा गुह (स्वामी कार्तिक) ने गोमय लिंग की पूजा की। मुनियों ने कुशाग्र मय लिंग की, सब वेदों ने दधिमय, पिशाचों ने सीस निर्मित लिंग की पूजा की। अधिक क्या यह चराचर जगत ही शिवलिंग का अर्चन करने के कारण ही स्थित है, इसमें सन्देह नहीं।


द्रव्यों के भेद से ६ प्रकार के शिवलिंग कहे हैं। उनके भी ४४ भेद हैं। पहला शैलज वह ४ प्रकार का है, दूसरा रत्नज वह सात प्रकार का है। तीसरा धातुज वह ८ प्रकार का है। चौथा दारुज वह १६ प्रकार हैं। पाँचवां मृण्यमय (मिट्टी के) वह दो प्रकार के, छटी क्षणिक जो ७ प्रकार की हैं। रत्नज लिंग लक्ष्मी प्रद हैं। शैलज सर्वसिद्धि प्रद है। धातुज धन प्रद है। दारुज भोग सिद्धि देने वाला है, मिट्टी का सर्व सिद्धि दाता है। शैलज उत्तम कहा है। थातुज मध्यम है। वैसे लिंग भेद बहुत हैं परन्तु संक्षेप से यही हैं। शैलज, रत्नज, धातुज, दारुज, मृण्यमय, क्षणिक आदि शिवलिंगों की भक्ति से स्थापना करनी चाहिए। 

इन्द्र, ब्रह्मा, अग्नि, यम, वरुण, कुबेर, सिद्ध, विद्याधर, नाग, यक्ष, दानव, किन्नरों ने शिवलिंगों की स्तुति की है भूः भुवः स्वः मह, जन, तप, सत्य, सत्य लोकों को आक्रमण कर शिव अपने तेज से भासित करते हैं। अतः विधि पूर्वक उमा स्कन्द सहित कुन्द और क्षीर के सदृश श्वेत लिंग की स्थापना करनी चाहिए। सब नरों के शरीर में दिव्य रूप से शिव विराजते हैं। इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए। उनके दर्शन से नर परम आनन्द को प्राप्त करता है। उसका पुण्य सहस्त्र युगों भी नहीं कहा जा सकता है। सब ही मनुष्यों का शरीर शिव का दिव्य शरीर है। शुभ भावना से युक्त योगियों का शरीर तो शिव का साक्षात् शरीर है।

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