शिव की महिमा का वर्णन,Shiv Kee Mahima Ka Varnan

शिव की महिमा का वर्णन,Shiv Kee Mahima Ka Varnan

सनत्कुमार बोले- हे देव शैलदि! उत्तम शिव महात्म्य को आपके वाक्य रूपी अमृत से पान करते हुए तृप्ति नहीं होती। कृपावान प्रतापी भगवान रुद्र शरीरी कैसे हैं तथा सर्वात्मा शम्भु कैसे हैं और पाशुपत व्रत कैसा है ? शंकर को देवताओं ने कैसा देखा एवं सुना है? शैलादि बोले- परम कारण रूप शिव अव्यक्त से स्थाणु रूप में उत्पन्न हुए। वह सम्पूर्ण कारणों से युक्त शिव ही विश्वात्मा है वह देवताओं में प्रथम उत्पन्न होने वाले ब्रह्माजी को देखने लगे। तब से देखे ब्रह्मा ने सकल जगत की रचना की। वर्णाश्रम की अव्यवस्था को उन्होंने स्थापित किया। यज्ञ के लिए सोम की रचना की। यह जगत सभी सोम का ही सवरूप है। चरु, अग्नि, यज्ञ, इन्द्र, नारायण, विष्णु आदि सब सोममय हैं। वे सब देवता रुद्राध्याय से रुद्र की स्तुति करते हैं। प्रसन्न मुख शम्भु देवताओं के मध्य में विराजमान हैं। उस समय महेश्वर ने सबका ज्ञान हरण कर लिया। इसलिए ये सभी शिव से पूछने लगे कि आप कौन हैं?


तब शंकर जी बोले- मैं पुरातन पुरुष हूँ और भविष्य में भी मैं ही रहूँगा। मेरे से अन्य कुछ है ही नहीं। नित्य और अनित्य मैं ही हूँ। ब्रह्मा का भी पति मैं ही हूँ। दिशा और विदिशा मैं ही हूँ। प्रकृति और पुरुष मैं ही हूँ। जगति अनुष्टुप आदि छन्द मैं ही हूँ। सत्य मैं हूँ और शान्त स्वरूप हूँ। जन्मों पति वरुण मैं हूँ। तेज रूप मैं ही हूँ। ऋगवेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद मैं ही हूँ। इतिहास पुराण तथा कल्प मैं ही हूँ। अक्षर और क्षर, क्षान्ति और शान्ति एवं क्षमा रूप मैं ही हूँ। सब वेदों में मैं ही छिपा हूँ। ज्योति स्वरूप मैं हूँ, अन्धकार रूप मैं हूँ। मैं ब्रह्मा हूँ, मैं विष्णु हूँ, मैं ही महेश्वर हूँ, मैं बुद्धि रूप हूँ, अहंकार रूप हूँ, तन्मात्रा रूप हूँ, इन्द्री रूप हूँ। सो हे देवताओ ! जो सबको मेरा ही स्वरूप जानता है वही सर्वज्ञ है। मैं अपनी वाणी से सब ब्राह्मणों को, सत्य से सत्य को, आयु से आयु को, धर्म से धर्म को सर्व प्रकार तृप्त करता हूँ। ऐसा कहकर शंकर भगवान वहीं अन्तर्ध्यान हो गए। फिर वे देवता परमात्मा रुद्र को नहीं देख पाए और शिव का ध्यान करने लगे। नारायण सहित सभी इन्द्रादिक देवता और मुनि ऊर्ध्वबाहु करके रुद्र की स्तुति करने लगे।

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