शिव की अर्चना विधि का वर्णन
ऋषि बोले- अल्प आयु वाले, अल्प पराक्रम वाले मन्द बुद्धि वाले मनुष्यों को महादेव का पूजन किस प्रकार करना चाहिए ? क्योंकि हजारों वर्षों तक तपस्या करने वाले देवता भी शिव को नहीं देख पाते। तब हे सूतजी ! किस प्रकार से उनका दर्शन करना चाहिये। सूतजी बोले- मुनीश्वरो ! आपने ठीक कहा है। तो भी श्रद्धा से भगवान प्रकट होते हैं। भक्तिहीन पुरुष प्रसंग से शिव का पूजन करते हैं उनको भावानुरूप फल मिलता है। झूठे मुख से शिव का पूजन करने वाला पुरुष पिशाच योनि को प्राप्त होता है और संकुद्ध होकर जो पूजन करता है वह राक्षस होता है। अभक्ष का भक्षण करने वाला पूजक यक्ष पने को प्राप्त होता है। गायत्री मन्त्र द्वारा महादेव की पूजा करने वाला प्रजापति को प्राप्त होता है। श्रद्धा से एक बार भी शिव की पूजा करने वाला रुद्र के साथ क्रीड़ा करता है।
पीठ पर शिवलिंग की स्थापना करके पवित्र जल से स्नान कराना चाहिए। धर्म ज्ञानमय आसन की कल्पना करके उस पर स्थापन करना चाहिए। पाद्य, आचमन, उर्ध्व, जल देकर दूध, घी, दही तथा दिव्य जल से स्नान कराकर केशर कस्तूरी का लेपन कर पुष्प तथा अखण्ड बेल पत्रों से शिव का पूजन करे। नाना प्रकार के कमल, कन्नेर, वकुल, चम्पक, आक के पुष्प आदि शिव को अर्पण करे। दही, भात, भोजन बना कर भोग लगावे अथवा एक आधक (तेल विशेष) चावल बनाकर भगवान को भोग लगावे तथा बारम्बार प्रणाम करके प्रदक्षिणा करे और पुनः प्रार्थना करे। इस प्रकार की पूजन विधि से महेश्वर प्रसन्न होते हैं। जिन वृक्षों के पत्र पुष्पादिक भगवान के पूजन में वृक्ष तथा गौ जिनका दूध भगवान की पूजा में आता है वे परमगति को प्राप्त होते हैं। जो शिव का इस प्रकार एक बार भी पूजन करता है वह शिव सायुज्य को प्राप्त होता है। पूजन किये हुए शिव का दर्शन करने वाला पुरुष भी सब पापों से छूट जाता है।
जो शिवलिंग के सामने घी का दीपक जलाता है वह श्रेष्ठ गति को प्राप्त होता है। जो दीप वृक्ष (दीवट) लकड़ी या मिट्टी का बनाकर उस पर दीपक जलाता है वह सैंकड़ों कुलों के साथ शिव लोक में वास करता है। लोहे, पीतल, चाँदी, सोने तथा ताँबे का दीपक बनाकर शिव को प्रदान करता है वह हजारों चमकते हुए विमानों में बैठकर शिव लोक को जाता है। कार्तिक के महीने में जो घृत का दीपक शिवालय में जलाता है तथा विधिपूर्वक शिव की पूजा करता है वह ब्रह्म लोक को प्राप्त करता है। जो रुद्र गायत्री अथवा ॐ मन्त्र से आसनादि अर्पण करके शिव को स्नान कराकर पूजा करता है, दक्षिण भाग में ॐ के द्वारा ब्रह्मा की पूजा तथा गायत्री से विष्णु की पूजा करता है तथा पंचाक्षर मन्त्र या ॐ से अग्नि में हवन करता है वह शिव लोक को प्राप्त करता है। इस प्रकार हे मुनियो ! मैंने आप लोगों से संक्षेप में शिव की पूजन विधि कही, जो स्वयं व्यासजी ने रुद्र के मुख से सुनी था, सो मैंने कही है।
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