शिव के विश्वरूप का वर्णन,Shiv Ke Vishvaroop Ka Varnan
सनत्कुमार बोले- हे गणेश्वर ! हे महामते ! आपने शंकर भगवान को अष्ट मूर्तियों वाला बताया। अतः अब उसके विश्वरूप का वर्णन कीजिए। नन्दिकेश्वर बोले- हे कमल से उत्पन्न होने वाले ! ब्रह्माजी के पुत्र सनत्कुमार! मैं अब तुमसे उमापति महादेव के विश्वरूप का वर्णन करूंगा। सो आप सुनिये । पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, यजमान ये शिव की आठ मूर्ति कही हैं। अग्निहोत्र में अर्पण करने से तथा सूर्य रूपी आत्मा में अर्पण करने से सभी देवता तृप्त हो जाते हैं। ये दोनों (अग्नि और सूर्य) शिव की विभूति हैं। सूर्य की बारह कला हैं। मुनि लोग उसी का भजन करते हैं।
आदित्य को अमृत नाम वाली कला जो भूत संजीवनी कही है उसका देवता पान करते हैं। सूर्य रूपी शिव की दूसरी चन्द्र नाम वाली कला है वह औषधियों की वृद्धि के हिम (ओस) की वर्षा करती है। सूर्य की शुक्ल नाम वाली किरण लोक में धर्म का विस्तार करती है और धान्य के पकाने का काम करती है। दिवाकर रूपी शिव की, हरिकेश नाम की किरण नक्षत्रों का पोषण करती है। उनकी विश्वकर्मा नाम वाली किरण बुध ग्रह का पोषण करती है। सर्वेश्वर के सप्तसप्ती स्वरूप की किरण का नाम विश्वव्यच नाम की किरण शुक्र का पोषण करने वाली है। त्रिशूली की संयद्वसु नाम वाली किरण मंगल का पोषण करती है। अर्वावसु नाम की किरण वृहस्पति का पोषण करती है। शिव रूपी सूर्य की सुराट नाम की किरण शनिश्चर का पोषण करती है। सूर्यात्मक उमापति की सुष्मना नाम की किरण चन्द्रमा का पोषण करती है।
शम्भु का जो चन्द्रमा रूपी शरीर है वह अमृतमयी षोडश (सोलह) कलाओं से स्थित है। उसकी सब प्राणियों के शरीर में सोम नाम की मूर्ति उत्तम हे। जो देवताओं और पितृगणों को सुधा के द्वारा पोषण करती है। सोम नाम की वह मूर्ति भवानी का स्वरूप है। वह संसार में जल और औषधियों के पति भाव से स्थित है। यजमान नाम वाली शिव की मूर्ति दिन-रात हव्य के द्वारा दोनों का तथा कव्यों के द्वारा पित्रीश्वरों का पोषण करती है। यही यजमान नाम की मूर्ति वृद्धि के द्वारा जगत का पालन करती है। वही मूर्ति नदी, नाले तथा समुद्रों आदि में व्याप्त है। समस्त जीवों को जिवाने वाली, भूतों को पवित्र करने वाली, अम्बिका के प्राणों में स्थित जलमयी वह मूर्ति सर्वत्र स्थित है। ब्राह्मण में भीतर और बाहर स्थित पावक रूपी मूर्ति शिव की ही है जिससे विद्वानों ने ४९ भेद कहे हैं। प्राणियों के शरीर में स्थित जो शिव की मूर्ति है वह वायु रूप मूर्ति है वह वायु रूप मूर्ति है। जो प्राण अपान आदि अनेक प्रकार के भेद कहे हैं।
शम्भु की विश्वम्भरा नाम की मूर्ति चराचर सब भूतों को धारण करने वाली है। चराचर सब भूतों के शरीर पंचभूत जो भगवान के रूप हैं उन्हीं के द्वारा निर्मित है। पाँचों भूत, चन्द्रमा, सूर्य और आठवीं यजमान नाम वाली ये आठों मूर्ति शिव की हैं। चराचर सब शरीरों में आठों मूर्ति स्थित हैं। यज्ञ में दीक्षित ब्राह्मण को विद्वान आत्मा रूप से कहते हैं। कल्याण देने वाले शंकर भगवान की यह यजमान नाम वाली मूर्ति कल्याण चाहने वाले मनुष्यों को सदा वन्दनीय है। क्योंकि ये कल्याण की एकमात्र हेतु है।
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