शिव अद्वैत वर्णन,Shiv Advait Varnan

शिव अद्वैत वर्णन,Shiv Advait Varnan

ऋषि बोले- हे सूतजी ! वह शिव निष्कल, निर्मल, शुद्ध, सकल व्याप्त है जैसा कि सुना है सो वह भी हमारे लिये वर्णन कीजिये। सूतजी बोले- परमार्थ को जानने वाले कोई महात्मा शिव को प्रणव रूप कहते हैं। कोई विज्ञान रूप कहते हैं। शब्दादि विषयज्ञान ज्ञान कहलाता है परन्तु भ्रान्ति रहित ज्ञान ही शिव कहलाता है। कोई कोई ऐसा कहते हैं जो ज्ञान, निर्मल, निर्विकल्प, निराश्रय है। गुरु प्रकाशक हैं वही शिव तत्व है कोई ऐसा कहते हैं। ज्ञान के द्वारा ही मुक्ति होती है। ज्ञान की सिद्धि में भगवान का प्रसाद ही कारण है ज्ञान तथा भगवत प्रसाद दोनों से मुक्ति मिलती है। कोई मुनि उसके रूप की कल्पना इस तरह करते हैं कि स्वर्ग शिव का मस्तक है, आकाश नाभि है। सूर्य, चन्द्र और अग्नि उसके नेत्र हैं। दिशा श्रोत हैं, पाताल उसके चरण हैं। समुद्र वस्त्र हैं। देवता भुजा हैं, तारागण भूषण हैं, प्रकृति उसकी पत्नी और लिंग पुरुष हैं। पुष्करादिक उसके केश हैं। वायु घ्राणज है। श्रुति स्मृति उसकी गति है।


सहस्त्र कर्म यज्ञों से जप यज्ञ उत्तम है। सहस्त्र जप यज्ञों से ध्यान यज्ञ उत्तम है। ध्यान यज्ञ से परे कोई साधन नहीं है क्योंकि ध्यान ही ज्ञान का साधन है। जब समरस में स्थित योगी ध्यान यज्ञ में रत होता है तब शिव उसके समीप में ही होते हैं। विज्ञानियों को शौच तथा प्रायश्चित का विधान नहीं है। ब्रह्म विद्या के जानने वाले विद्या से ही शुद्ध होते हैं।
परमानन्द स्वरूप विशुद्ध अक्षर शिव, निष्कल सर्वगत, योगी जनों के हृदय में स्थित रहता है। वाह्य और आभ्यन्तर भेद से लिंग दो प्रकार के कहे हैं- स्थूल वाह्य और सूक्ष्म आभ्यन्तर हैं। कर्म यज्ञ में रत स्थूल लिंग को पूजने में रत रहते हैं। पर आध्यात्मिक सूक्ष्म लिंग जिसको प्रत्यक्ष नहीं वह मूढ़ ही है। 

तत्वार्थ के विचार वाले कोई कहते हैं कि सकल ब्रह्माण्ड शिव मय हैं। जैसे एक ही आकाश घट मठ भेद से नाना प्रकार का भासता है, एक ही सूर्य जल के घटों में पृथक पृथक भासता है वैसे ही एक शिव सर्वत्र पृथक पृथक भासता है। कोई सर्वज्ञ शिव को हृदय में ही पूजते हैं, कोई शिवलिंग में, कोई अग्नि में ही पूजते हैं। जिस प्रकार के शिव हैं उसी प्रकार की देवी हैं और जिस प्रकार की देवी हैं वैसे ही शिव हैं। इससे दोनों का अभेद बुद्धि से ही पूजन करना चाहिए। जो धर्मरत भक्ति तथा योग के द्वारा योगेश्वर शिव को सब मूर्तियों में जानकर सर्वत्र पूजते हैं वे ही देवी सहित पुराण पुरुष शिव को प्राप्त करते हैं। अन्य भेद बुद्धि वाले उन्हें नहीं पा सकते।

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