पद्म पुराण का लक्षण तथा उनमें वर्णित विषयों की अनुक्रमणिका, Padm Puraan Ka Lakshan Tatha Unamen Varnit Vishayon Kee Anukramanika
पद्म पुराण का लक्षण तथा उनमें वर्णित विषयों की अनुक्रमणिका,
ब्रह्माजी कहते हैं-बेटा! सुनो, अब मैं पद्म पुराण का वर्णन करता हूँ। जो मनुष्य प्रसन्नतापूर्वक इसका पाठ और श्रवण करते हैं, उन्हें यह महान् पुण्य देनेवाला है। जैसे सम्पूर्ण देहधारी मनुष्य पाँच ज्ञानेन्द्रियोंसे युक्त बताया जाता है, उसी प्रकार यह पापनाशक पद्म पुराण पाँच खण्डोंसे युक्त कहा गया है। ब्रह्मन् ! जिसमें महर्षि पुलस्त्यने भीष्मको सृष्टि आदिके क्रमसे नाना प्रकारके उपाख्यान और इतिहास आदिके साथ विस्तारपूर्वक धर्मका उपदेश किया है। जहाँ पुष्करतीर्थका माहात्म्य विस्तारपूर्वक कहा गया है, जिसमें ब्रह्म-यज्ञकी विधि, वेदपाठ आदिका लक्षण, नाना प्रकारके दानों और व्रतोंका पृथक् पृथक् निरूपण, पार्वतीका विवाह, तारकासुरका विस्तृत उपाख्यान तथा गौ आदिका माहात्म्य है, जो सबको पुण्य देनेवाला है, जिसमें कालकेय आदि दैत्योंके वधकी पृथक् पृथक् कथा दी गयी है तथा द्विजश्रेष्ठ ! जहाँ ग्रहोंके पूजन और दानकी विधि भी बतायी गयी है, वह महात्मा श्रीव्यासजीके द्वारा कहा हुआ 'सृष्टिखण्ड' है।
पिता-माता आदिकी पूजनीयताके विषयमें शिवशर्माकी प्राचीन कथा, सुव्रतकी कथा, वृत्रासुरके वधकी कथा, पृथु, वेन और सुनीथाकी कथा, सुकलाका उपाख्यान, धर्मका आख्यान, पिताकी सेवाके विषयमें उपाख्यान, नहुषकी कथा, ययातिचरित्र, गुरुतीर्थका निरूपण, राजा और जैमिनिके संवादमें अत्यन्त आश्चर्यमयी कथा, अशोक सुन्दरीकी कथा, हुण्ड दैत्यका वध, कामोदाकी कथा, विहुण्ड दैत्यका वध, महात्मा च्यवनके साथ कुञ्जलका संवाद, तदनन्तर सिद्धोपाख्यान और इस खण्डके फलका विचार- ये सब विषय जिसमें कहे गये हों, वह सूत-शौनक-संवादरूप ग्रन्थ 'भूमिखण्ड' कहा गया है। जहाँ सौति तथा महर्षियोंके संवादरूपसे ब्रह्माण्डकी उत्पत्ति बतायी गयी है, पृथ्वीसहित सम्पूर्ण लोकोंकी स्थिति और तीर्थोंका वर्णन किया गया है। तदनन्तर जहाँ नर्मदाजीकी उत्पत्ति- कथा और उनके तीर्थोंका पृथक् पृथक् वर्णन है, जिसमें कुरुक्षेत्र आदि तीर्थोकी पुण्यमयी कथा कही गयी है, कालिन्दीकी पुण्यकथा, काशी- माहात्म्य वर्णन तथा गया और प्रयागके पुण्यमय माहात्म्यका निरूपण है, वर्ण और आश्रमके अनुकूल कर्मयोगका निरूपण, पुण्यकर्मकी कथाको लेकर व्यास-जैमिनि-संवाद, समुद्र-मन्थनकी कथा, व्रतसम्बन्धी उपाख्यान, तदनन्तर कार्तिकके अन्तिम पाँच दिन (भीष्मपञ्चक) का माहात्म्य तथा सर्वापराधनिवारक स्तोत्र- ये सब विषय जहाँ आये हैं, वह 'स्वर्गखण्ड' कहा गया है। ब्रह्मन् ! यह सब पातकोंका नाश करनेवाला है।
रामाश्वमेधके प्रसङ्गमें प्रथम राम का राज्याभिषेक, अगस्त्य आदि महर्षियोंका आगमन, पुलस्त्यवंशका वर्णन, अश्वमेधका उपदेश, अश्वमेधीय अश्वका पृथ्वीपर विचरण, अनेक राजाओंकी पुण्यमयी कथा, जगन्नाथजीकी महिमाका निरूपण, वृन्दावनका सर्वपापनाशक माहात्म्य, कृष्णावतारधारी श्रीहरिकी नित्य लीलाओंका कथन, वैशाखस्त्रानकी महिमा, स्नान दान और पूजनका फल, भूमि- वाराह-संवाद, यम और ब्राह्मणकी कथा, राजदूतोंका संवाद, श्रीकृष्णस्तोत्रका निरूपण, शिवशम्भु-समागम, दधीचिकी कथा, भस्मका अनुपम माहात्म्य, उत्तम शिव-माहात्म्य, देवरातसुतोपाख्यान, पुराणवेत्ताकी प्रशंसा, गौतमका उपाख्यान और शिवगीता तथा कल्पान्तरमें भरद्वाज-आश्रममें श्रीरामकथा आदि विषय 'पातालखण्ड 'के अन्तर्गत हैं। जो सदा इसका श्रवण और पाठ करते हैं, उनके सब पापोंका नाश करके यह उन्हें सम्पूर्ण अभीष्ट फलोंकी प्राप्ति कराता है।पाँचवें खण्डमें पहले भगवान् शिवके द्वारा गौरीदेवीके प्रति कहा हुआ पर्वतोपाख्यान है। तत्पश्चात् जालन्धरकी कथा, श्रीशैल आदिका माहात्म्यकीर्तन और राजा सगरकी पुण्यमयी कथा है। उसके बाद गङ्गा, प्रयाग, काशी और गयाका अधिक पुण्यदायक माहात्म्य कहा गया है। फिर अन्नादि दानका माहात्म्य और महाद्वादशीव्रतका उल्लेख है। तत्पश्चात् चौबीस एकादशियोंका पृथक् पृथक् माहात्म्य कहा गया है।
फिर विष्णुधर्मका निरूपण और विष्णुसहस्रनामका वर्णन है। उसके बाद कार्तिकव्रतका माहात्म्य, माघ-स्त्रानका फल तथा जम्बूद्वीपके तीर्थोंकी पापनाशक महिमाका वर्णन है। फिर साभ्रमती (साबरमती) का माहात्म्य, नृसिंहोत्पत्तिकथा, देवशर्मा आदिका उपाख्यान और गीतामाहात्म्यका वर्णन है। तदनन्तर भक्तिका आख्यान, श्रीमद्भागवतका माहात्म्य और अनेक तीर्थोकी कथासे युक्त इन्द्रप्रस्थकी महिमा है। इसके बाद मन्त्ररत्नका कथन, त्रिपादविभूतिका वर्णन तथा मत्स्य आदि अवतारोंकी पुण्यमयी अवतार कथा है। तत्पश्चात् अष्टोत्तरशत दिव्य राम-नाम और उसके माहात्म्यका वर्णन है। वाडव। फिर महर्षि भृगुद्वारा भगवान् विष्णुके वैभवकी परीक्षाका उल्लेख है। इस प्रकार यह पाँचवाँ 'उत्तरखण्ड' कहा गया है, जो सब प्रकारके पुण्य देनेवाला है। जो श्रेष्ठ मानव पाँच खण्डोंसे युक्त पद्म पुराण का श्रवण करता है वह इस लोकमें मनोवाञ्छित भोगोंको भोगकर वैष्णव धामको प्राप्त कर लेता है। यह पद्म पुराण पचपन हजार श्लोकोंसे युक्त है। मानद! जो इस पुराणको लिखवाकर पुराणज्ञ ब्राह्मणका भलीभाँति सत्कार करके ज्येष्ठकी पूर्णिमाको स्वर्णमय कमलके साथ इस लिखित पुराणका उक्त पुराणवेत्ता ब्राह्मणको दान करता है, वह सम्पूर्ण देवताओं से वन्दित होकर वैष्णव धामको चला जाता है। जो पद्म पुराणकी इस अनुक्रमणिकाका पाठ तथा श्रवण करता है, वह भी सम्पूर्ण पद्म पुराणके श्रवणजनित फलको प्राप्त कर लेता है।
- पद्म पुराण में क्या लिखा है?
इस पुराण में भगवान् विष्णु की विस्तृत महिमा के साथ भगवान् श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के चरित्र, विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य शालग्राम का स्वरूप, तुलसी-महिमा तथा विभिन्न व्रतों का सुन्दर वर्णन है।
- पद्म पुराण के कितने भाग हैं?
पद्म पुराण , अन्य पुराणों की तरह, कई संस्करणों में मौजूद है। बंगाल क्षेत्र से पता लगाया गया एक प्रमुख संस्करण में पाँच खंड (भाग, पुस्तकें) और एक परिशिष्ट है, लेकिन न तो प्रकाशित किया गया है और न ही अनुवादित किया गया है
- पद्म पुराण में प्रभंजन कौन थे?
पद्म पुराण के अनुसार, राजा प्रभंजन को हिरण के अभिशाप के कारण सौ वर्षों तक बाघ के रूप में रहना पड़ा था। क्या आप जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा। अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं हिरण द्वारा राजा को दिए गए इस श्राप का कारण।
- पद्मपुराण में कितने श्लोक हैं?
(२) पद्मपुराण : इसमें कुल ६४१ अध्याय और ४८,००० श्लोक हैं।
- पद्म पुराण में वर्णित रावण की बहन का नाम क्या था?
रावण अपने पिता के आश्रम में बडा हुआ और बाद में उसके दो भाई कुम्भकर्ण तथा विभीषण और एक अत्यन्त रुपवती बहन सूर्पनखा हु
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