नन्दीश्वर की उत्पत्ति का वर्णन,Nandeeshvar Kee Utpatti Ka Varnan
सूतजी कहते हैं- वरदान देने वाले इन्द्र के चले जाने पर शिलाद ने शिव की प्रसन्नता के लिए तपस्या की। देवताओं के हजारों वर्ष क्षण की तरह बीत गए, शरीर में बमई बन गई, कीड़े दीमक लग गए। अस्थिमात्र शरीर रह गया तब शंकर जी प्रसन्न हुए और उसके शरीर पर हाथ फेरा जिससे वह हृष्ट-पुष्ट शरीर से युक्त हो गया। उसने उमा और गणों सहित शिव के दर्शन किये। शिवजी ने उससे कहा- कि हे शिलाद ! तुझे मैं सर्वज्ञ और सर्व-शास्त्र पारंगत पुत्र दूंगा। शिलाद बोला- हे शंकर ! मुझे अयोनिज तथा मृत्यु हीन पुत्र दो। महादेव जी बोले- हे ब्राह्मण! पूर्व में ब्रह्मा ने प्रार्थना करके मुझसे अवतार धारण के लिए प्रार्थना की है। सो मैं नन्दी नाम वाला अयोनिज तेरा पुत्र हूँगा। तुम मेरे पिता होगे और मैं जगत में तुम्हारा पुत्र होऊँगा। ऐसा कहकर शिव अन्तर्ध्यान हो गए।
रुद्र की कृपा से यज्ञ की भूमि में से शिव उत्पन्न हुए। आकाश से देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की। तीन नेत्र वाले, चार भुजाओं वाले, जटा मुकुट धारण किए हुए, वज्रादि आयुध धारण किए हुए शिव को देखकर देवता आदि लोग स्तुति करने लगे। अप्सरायें नृत्य करने लगीं। वसु, रुद्र, इन्द्रादि सभी प्रार्थना करने लगे। साक्षात् लक्ष्मी, जेष्ठा, शचीदेवी, दिति, अदिति, नन्दा, भद्रा, सुशीला भी मेरी स्तुति करने लगीं। शिलाद मुनि मुझ शिव की इस प्रकार स्तुति करने लगे। शिलाद बोले- हे त्रयम्बक ! हे देवेश ! जगत की रक्षा करने वाले तुम मेरे पुत्र रूप में आए हो। हे आयोनिज ! हे ईशान ! हे जगत गुरु ! आप मेरी रक्षा कीजिए। तुमने मुझको नन्दित अर्थात् आनन्दित किया है, इससे आपका नाम नन्दी है। मेरे पिता माता सभी रुद्र लोक को चले गए हैं। अब मेरा जन्म सफल हुआ। हे सुरेश ! हे नन्दीश्वर ! आपको नमस्कार है।
आपको पुत्र समझ कर जो कुछ मैंने कहा उसे क्षमा करो। इस स्तोत्र को जो भी कोई पढ़ता है या भक्ति सहित सुनाता है वह मेरे साथ रुद्रलोक में आनन्द के साथ निवास करता है। तब बाल रूप शिव को प्रणाम करके शिलाद कहने लगे- हे मुनीश्वरों मेरे उत्तम भाग्य को देखो जो कि नन्दीश्वर मेरे पुत्र रूप में यज्ञ भूमि से उत्पन्न हुआ है। मेरे समान लोक में देव दानव कोई भी भाग्यशाली नहीं है, जिसके लिये नन्दीश्वर साक्षात् शिव यज्ञ भूमि से उत्पन्न हुये हैं।
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