मुनि कृत शिव स्तोत्र,Muni Krt Shiv Stotr

मुनि कृत शिव स्तोत्र,Muni Krt Shiv Stotr

सनत्कुमार बोले - शिव की कृपा से देव दारूवन में रहने वाले मुनीश्वर शिव की शरण में प्राप्त हुए, वह हमसे कहो।शैलादि बोले- ब्रह्मा जी उन ऋषियों से कहने लगे- ब्रह्मा बोले- कि महेश्वर ही जानने योग्य हैं। उनसे परे और कोई नहीं है। देवता, ऋषि, पित्रीश्वरों के स्वामी वही हैं। सहस्त्र युग पर्यन्त प्राणियों की प्रलय में कालरूप हो सबका संहार करते हैं। वही प्रजा की रचना करते हैं। वही श्रीवत्स आदि लक्षणों से युक्त विष्णु हो सबका पालन करते हैं। वही सतयुग में योगी रूप में, त्रेता में यज्ञ रूप में, द्वापर में कालाग्नि रूप में, धर्मकेतु रूप में अवतरित होते हैं। पण्डित लोग उसका ही ध्यान करते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश उसी ब्रह्म की मूर्ति कही गई हैं।


ब्राह्मण क्रोध रहित हो इन्द्रियों को वश में करके उसकी आराधना करते हैं। यथायोग्य सर्व लक्षणों से युक्त लिंग का पूजन करते हैं। ब्राह्मण वेदी पर स्थापित स्वर्णमयी, रजतमयी, स्फटिकमयी, ताम्रमयी, शैलमयी, चतुर्कोणमयी, वर्तुलाकार त्रिकोणमयी, आदि की स्थापना करके कलश युक्त उसकी पूजा करते हैं। सुवर्ण सहित बीज मन्त्र से या वेद मन्त्रों सहित पाँछा पवित्रियों से शिव लिंग का अभिषेक करते हैं। हे ऋषियो ! समाहित चित्त होकर भाई बन्धु पुत्रों के सहित शूल पाणि शिव का पूजन करो तथा हाथ जोड़कर प्रणाम करो तब देव देव का दर्शन प्राप्त होगा। उसके दर्शन से सब अज्ञान और अधर्म का नाश हो जायेगा। ऐसा सुनकर ऋषियों ने ब्रह्मा की परिक्रमा की और शिव की आराधना के लिए देव दारूवन में चले गए।

वहाँ विचित्र गुफाओं में नदियों के तट पर, कोई जल पर, कोई आकाश में, कोई अंगूठे पर ही खड़े होकर, कोई वीरासन से, कोई मृगचर्या से घूमकर सबने एक वर्ष तक तपस्या की। तब वर्ष के अन्त में उनकी प्रसन्नता के लिए कृतयुग में हिमालय पर प्रसन्न होकर भस्म शरीर में लगाये हुए नग्न, विकृति आकार वाले, उल्का हाथ से लेकर लाल पीले नेत्र युक्त हँसते, गाते, नाचते, आश्रमों में भीख माँगते हुए माया रूपी शिव प्रगट हुए। तब मुनि स्तुति करने लगे और गन्ध पुष्प मालाओं से जल से पूजकर स्त्री पुत्रों सहित ये ब्राह्मण शिव से बोले - हे देवेश ! कर्म मन वाणी से जो कुछ भी आपका अज्ञान से अपमान हुआ उसे क्षमा कीजिये। आपके चरित्र ब्रह्मादि से भी दुर्जेय हैं जो हो सो हो आपको नमस्कार है। ऐसा कहकर भगवान की स्तुति करने लगे - हे भवरूप ! भव्यरूप, भूतों के पति आपको नमस्कार है। संहार करने वाले, अव्यय, व्यय, गंगाजल धारण करने वाले, त्रिशूल वाले, कामदेव को जलाने वाले, अग्नि स्वरूप, गणपति, शतजीभ वाले आपको नमस्कार है। स्थावर जङ्गम रूप सब जगत आप से ही उत्पन्न होता है, आप ही इसका पालन और संहार करते हो। हे भगवन्! प्रसन्न होइये। ज्ञान या अज्ञान पूर्वक जो भी मनुष्य कुछ करता है वह सब आपकी माया है। इस प्रकार प्रसन्न आत्माओं से मुनियों ने शिव की स्तुति की और तप से युक्त हम आपको पहले रूप में ही देखें, ऐसी याचना की। तब प्रसन्न होकर भगवान ने उनका सुन्दर त्र्यम्बक रूप देखने के लिए दिव्य दृष्टि प्रदान की। उस दिव्य दृष्टि को प्राप्त करके दारूवन वाले मुनियों ने शिव के दर्शन प्राप्त किये और अपरा स्तुति की।

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