मत्स्य पुराण की विषय सूची तथा इस पुराण को पढ़ने, सुनने तथा दान करने का महत्त्व,Matsy Puraan Kee Vishay Soochee Tatha Is Puraan Ko Padhane, Sunane Tatha Daan Karane Ka Mahattv

मत्स्य पुराण की विषय सूची तथा इस पुराण को पढ़ने, सुनने तथा दान करने का महत्त्व

मत्स्य पुराण में क्या लिखा है?

इसमें जल प्रलय, मत्स्य व मनु के संवाद, राजधर्म, तीर्थयात्रा, दान महात्म्य, प्रयाग महात्म्य, काशी महात्म्य, नर्मदा महात्म्य, मूर्ति निर्माण, राजाओं की विजयार्थ यात्रा का विधान, एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है। चौदह हजार श्लोकों वाला यह पुराण भी एक प्राचीन ग्रंथ है।

मत्स्य अवतार क्यों हुआ था?

जब प्रकोप शांत हुआ, तब भगवान ने हयग्रीव का वध कर सभी वेद वापस छीन लिए और ब्रह्मा जी को वापस सौंप दिए। इस प्रकार भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर वेदों का उद्धार किया तथा प्राणियों का कल्याण किया।

मत्स्य अवतार में मनु कौन था?

सत्यव्रत मनु जिनसे मनुष्य की उत्पत्ति हुई धर्मात्मा और भगवान विष्णु के भक्त थे। एक दिन जब सत्यव्रत मनु नदी तट पर पूजन और तर्पण कर रहे थे तब उनके कमंडल में नदी की धारा में बहकर एक छोटी सी सुनहरी मछली आ गई। उस छोटी सी मछली को लेकर मनु अपने राजमहल लौट आए।

मत्स्य पुराण की विषय सूची तथा इस पुराण को पढ़ने, सुनने तथा दान करने का महत्त्व

ब्रह्माजी कहते हैं- द्विजश्रेष्ठ ! अब मैं तुम्हें मत्स्यपुराणका परिचय देता हूँ, जिसमें वेदवेत्ता व्यासजीने इस भूतलपर सात कल्पोंके वृत्तान्तको संक्षिप्त करके कहा है। नृसिंहवर्णन आरम्भ करके चौदह हजार श्लोकोंका मत्स्यपुराण कहा गया है। मनु और मत्स्यका संवाद, ब्रह्माण्डका वर्णन, ब्रह्मा, देवता और असुरोंकी उत्पत्ति, मरुद्रणका प्रादुर्भाव, मदनद्वादशी, लोकपालपूजा, मन्वन्तर वर्णन, राजा पृथुके राज्यका वर्णन, सूर्य और वैवस्वत मनुकी उत्पत्ति, बुध-संगमन, पितृवंशका वर्णन, श्राद्धकाल, पितृतीर्थ-प्रचार, सोमकी उत्पत्ति, सोमवंशका कथन, राजा ययातिका चरित्र, कार्तवीर्य अर्जुनका चरित्र, सृष्टिवंश-वर्णन, भृगुशाप, भगवान् विष्णुका पृथ्वीपर दस बार जन्म (अवतार), पूरुवंशका कीर्तन, हुताशनवंशका वर्णन, पहले क्रियायोग, फिर पुराणकीर्तन, नक्षत्रव्रत, पुरुषव्रत, मार्तण्डशयनव्रत, श्रीकृष्णाष्टमीव्रत,रोहिणीचन्द्र नामक व्रत,तड़ागविधिकी महिमा, वृक्षोत्सर्ग, सौभाग्यशयनव्रत, अगस्त्यव्रत, अनन्ततृतीयाव्रत,रसकल्याणिनीव्रत,आनन्दकरीव्रत,सारस्वतव्रत,उपरागाभिषेक(ग्रहणस्त्रान) विधि, सप्तमीशयनव्रत, भीमद्वादशी, अनङ्गशयनव्रत,अशून्यशयनव्रत, अङ्गारकव्रत, सप्तमीसप्तकव्रत, विशोकद्वादशीव्रत, दस प्रकारका मेरुप्रदान, ग्रहशान्ति, ग्रहस्वरूपकथा, शिवचतुर्दशी, सर्वफलत्याग, रविवारव्रत, संक्रान्तिस्नान, विभूतिद्वादशीव्रत, षष्ठीव्रत-माहात्म्य, स्त्रानविधिका वर्णन, प्रयागका माहात्म्य, द्वीप और लोकोंका वर्णन, अन्तरिक्षमें गमन, ध्रुवकी महिमा, देवेश्वरोंके भवन, त्रिपुरका प्रकाशन, श्रेष्ठ पितरोंकी महिमा, मन्वन्तर-निर्णय, चारों युगोंकी उत्पत्ति, युगधर्म- निरूपण, वज्राङ्गकी उत्पत्ति, तारकासुरकी उत्पत्ति, तारकासुरका माहात्म्य, ब्रह्मदेवानुकीर्तन, पार्वतीका प्राकट्य, शिवतपोवन, मदनदेहदाह, रतिशोक, गौरी-तपोवन, शिवका गौरीको प्रसन्न करना पार्वती तथा ऋषियोंका संवाद, पार्वतीविवाह- मङ्गल, कुमार कार्तिकेयका जन्म, कुमारकी विजय, तारकासुरका भयंकर वध, नृसिंहभगवान्‌की कथा, ब्रह्माजीकी सृष्टि, अन्धकासुरका वध, वाराणसी-माहात्म्य, नर्मदा-माहात्म्य, प्रवर-गणना, पितृगाथाका कीर्तन, उभयमुखी गौका दान, काले मृगचर्मका दान, सावित्रीकी कथा, राजधर्मका वर्णन, नाना प्रकारके उत्पातोंका कथन, ग्रहणान्त, यात्रानिमित्तक वर्णन, स्वप्नमङ्गलकीर्तन, ब्राह्मण और वाराहका माहात्म्य, समुद्र-मन्थन, कालकूटकी शान्ति, देवासुर संग्राम, वास्तुविद्या, प्रतिमालक्षण, देवमन्दिर-निर्माण, प्रासादलक्षण, मण्डपलक्षण, भविष्य राजाओंका वर्णन, महादानवर्णन तथा कल्पकीर्तन-इन सब विषयोंका इस पुराणमें वर्णन किया गया है। जो पवित्र, कल्याणकारी तथा आयु और कीर्ति बढ़ानेवाले इस पुराणका पाठ अथवा श्रवण करता है, वह भगवान् विष्णुके धाममें जाता है। जो इस पुराणको  लिखकर सुवर्णमय मत्स्य और गौके साथ विषुव योगमें ब्राह्मणको सत्कारपूर्वक दान देता है, वह परम पदको प्राप्त होता है।

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