महाविद्या बाला त्रिपुर सुन्दरी स्तोत्र,Mahavidya Bala Tripura Sundari Stotra

श्री ( महाविद्या ) बाला त्रिपुर सुन्दरी स्तोत्र

श्रीबाला त्रिपुर सुंदरी स्तोत्र के बारे में कुछ जानकारी

  • इस स्तोत्र में कहा गया है कि जो व्यक्ति निशाकाल में इसका पाठ करता है, वह पृथ्वी पर महापुरुषों का नेता बनता है और स्वर्ग में इंद्र के समान शौर्य-लक्ष्मी से युक्त होता है !
  • इस स्तोत्र में कहा गया है कि जो व्यक्ति विन्दु-पीठ पर बाला का अर्चन करता है, वह शिव-स्वरूप हो जाता है !
  • इस स्तोत्र में कहा गया है कि भगवती श्रीबाला का यह मंत्र-मय स्तोत्र अति श्रेष्ठ है !
  • इस स्तोत्र में कहा गया है कि इसे भक्ति-हीन व्यक्तियों को नहीं बताना चाहिए और इसे अत्यन्त गुप्त बनाए रखना चाहिए !

॥ श्री भैरव उवाच ॥

अधुना देव! बालाया स्तोत्रं वक्ष्यामि पार्वति । 
पञ्चमाङ्गं रहस्यं मे श्रुत्वा गोप्यं प्रयव्रतः ॥ 

विनियोगः 

अस्य श्री बालात्रिपुरसुन्दरी स्तोत्र मन्त्रस्य श्री दक्षिणामूर्ति ऋषिः
पंक्तिश्छंदः श्री बालात्रिपुरसुन्दरी देवता, ऐं बीजं, सीः शक्ति, 
क्लीं कीलकं, श्री बालाप्रीतये पाठे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यासः 

श्रीदक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि। पंक्तिश्छंदसे नमः मुखे। 
श्री बालात्रिपुरसुन्दरी देवतायै नमः हृदि।, 
में बीजाय नमः मुझे, सीः शक्तये नमः नाभी, 
क्लीं कीलकाय नमः पादयोः, 
श्री बालाप्रीतये पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

षडङ्गन्यासः- 

ऐं क्लीं सौः ऐं क्लीं सौः

करन्यास:-  

अंगुष्ठाभ्यां नमः,तर्जनीयां नमः,मध्यमाभ्यां नमः,
अनामिकाभ्यां नमः,कनिष्ठिकाभ्यां नमः,करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः

अङ्गन्यासः-  

हृदयाय नमः,शिरसे स्वाहा,शिखायै वषट्,
कवचाय हूँ,नेत्रत्रयाय वौषट्,अस्त्राय फट

॥ ध्यानम् ॥

अरुण किरणजालै रञ्जिताशावकाशा। 
विधृतजप वटीका पुस्तकाभीतिहस्ता ।

इतरकरवराढ्या फुाङ्गकङ्कारसंस्था। 
निवसतु हृदि बाला नित्यकल्याणरूपा ॥

मानसोपचारैः संपूज्य स्तोत्रं पठेत्- 

वाणीं जपेद् यस्त्रिपुरे भवान्या बीजं निशीथे जड़भावलीनः । 
भवेत् स गीर्वाण गुरोर्गरीयान् गिरीशपनि ! प्रभुतादि तस्य ॥१ ॥

कामेश्वरि ! त्र्यक्षरी कामराजं जपेद् दिनान्ते तव मन्त्रराजम् ।
रम्भाऽपि जृम्भारिसभां विहाय भूमौ भजेत् तं कुलदीक्षितं च ॥२॥

तार्तीयकं बीजमिदं जपेद् यस्त्रैलोक्य मातस्त्रिपुरे! पुरस्तात् ।
विधाय लीलां भुवने तथान्ते निरामयं ब्रह्मपदं प्रयाति ॥३ ॥

धरासय त्रिवृत्ताष्ट - पत्र षट्‌कोण नागरे !
विन्दुपीठेऽर्चयेद् बालां बोऽसौ प्रान्ते शिवो भवेत् ॥४॥

इति मन्त्रमयं स्तवं पठेद् यस्त्रिपुराया निशि वा निशावसाने ।
स भवेद् भुवि सार्वभौम मौलिस्त्रिदिवे शक्र समान शौर्यलक्ष्मी ॥५ ॥

इतीदं देवि ! बालाया स्तोत्रं मन्त्रमयं परम् ।
अदातव्यमभक्तेभ्यो गोपनीयं स्वयोनिवत् ॥६ ॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे भैरव भैरवी संवादे श्रीबाला त्रिपुरसुन्दरी स्तोत्रम् ॥

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