मां काली त्रैलोक्य विजय कवच

 श्री त्रैलोक्य विजय कवच - शत्रु नाशक काली कवच

ऐसा माना जाता है कि मां काली की पूजा करने और काली कवच का पाठ करने से गुप्त शत्रुओं से छुटकारा मिलता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं नवरात्र के दौरान मां काली के नौ अवतारों की पूजा होती है. इस दौरान मां काली के कवच का पाठ करने से मां अपने भक्तों के शत्रुओं का अंत करती हैं. काली कवच का पाठ करने के लिए, आप ये तरीके अपना सकते हैं

मां काली त्रैलोक्य विजय कवच - Maa Kali Trilokya Vijay Kavach,

॥ श्री सदाशिव उवाच ॥

त्रैलोक्य विजयस्यास्य कवचस्य ऋषिः शिवः। 
छन्दोऽनुष्टुं देवता च आद्याकाली प्रकीर्तिता ॥ 

माया बीजं बीजमिति रमा शक्तिरुदाहृता। 
क्रीं कीलकं काम्य सिद्धौ विनियोगः प्रकीर्तितः ॥

ह्रीमाद्या मे शिरः पातु श्री काली वदनं मम। 
हृदयं क्रीं परा शक्तिः पयात्कण्ठं परात्परा ॥

 नेत्रे पातु जगद्धात्री कर्णी रक्षतु शङ्करी । 
घ्राणं पातु महामाया रसनां सर्वमङ्गला ॥

दन्तान्रक्षतु कौमारी कपोलौ कमलालया। 
ओष्ठाधरी क्षमा रक्षेच्चिबुकं चारुहासिनी ॥

ग्रीवां पायात्कुलेशानी ककुत्पातु कृपाभयी।
द्वौ बाहू बाहुदा रक्षेत्करी कैवल्यदायिनी ।।

स्कन्धौ कपर्दिनी पातु पृष्ठं त्रैलोक्यतारिणी। 
पार्श्वे पायादपर्णा मे कटिं में कमठासना ॥

नाभी पातु विशालाक्षी प्रजास्थानं प्रभावतीं । 
उरू रक्षतु कल्याणी पादी में पार्वती सदा ॥

जय दुर्गाऽवतु प्राणान्सर्वाङ्ग सर्वसिद्धिदा । 
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन च ॥

तत्सर्व मे सदा रक्षेदाद्याकाली सनातनी ॥
इति ते कथितं दिव्यं त्रैलोक्य विजयाभिधम्।

कवचं कालिकादेव्या आद्यायाः परमाद्भुतम् ॥ 
पूजाकाले पठेद्यस्तु आद्याधिकृत मानसः ।

सर्वान्कामानवाप्नोति तस्याद्याशु प्रसीदति ॥ 
मंत्रसिद्धि भंवेदाशु किङ्कराः क्षेत्र सिद्धयः ।

अपुत्रो लभते पुत्रं धनार्थी प्राप्नुयाद्धनम् ॥ 
विद्यार्थी लभते विद्यां कामी कामानवाप्नुयात्।

सहस्वावृत्त पाठेन वर्मणेऽस्य पुरस्क्रिया ॥ 
पुरश्चरणसम्पन्नं यथोक्तफलदं भवेत् ।

बन्दनागुरुकस्तूरी कुङ्कुमै रक्त चन्दनैः ॥ 
भूर्जेविलिख्य गुटिकां स्वर्णस्थां धारयेद्यदि।

शिखायां दक्षिणे बाहौ कण्ठे वा साधकः कटौ ॥ 
तस्याद्या कालिका वश्या वाञ्छितार्थ प्रयच्छति।

न कुत्रापि भयं तस्य सर्वत्र विजयी कविः ॥ 
अरोगी चिरंजीवी स्याद् बलवान्धारणक्षमः ।

सर्वविद्यासु निपुणः सर्वशास्वार्थ तत्ववित् ॥
 वशे तस्य महीपाला भोग मोक्षौ करस्थितौ ।

कलिकल्मष युक्तान्तं निःश्रयेसकरं परम् ॥

॥ इति मां काली त्रैलोक्य विजय कवच सम्पूर्णम् !!

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