लिंगार्चन विधि तथा स्नान और आचमन के प्रकार,Lingaarchan Vidhi Tatha Snaan Aur Aachaman Ke Prakaar

लिंगार्चन की विधि तथा स्नान और आचमन के प्रकार

ऋषि बोले- हे रोमहर्ष जी! महादेव जी की लिंग में किस प्रकार पूजा करनी चाहिए। इस समय यह भी बताने की कृपा करें। सूतजी बोले- कैलाश पर्वत पर देवी ने महादेव जी से एक बार इसी प्रकार पूछा था। वहाँ पास में नन्दी बैठा था। उसने सब सुनकर पूर्व में ब्रह्मा के पुत्र सनत्कुमार को लिंगार्चन विधि कही थी। उससे महातेज वाले व्यास ने सुनी थी। मैंने शैलादि से स्नान विधि पूर्वक अर्चन विधि सुनी सो उसे मैं तुम्हें कहूँगा, शैलादि बोले- अब ब्राह्मणों के हित के लिए स्नान आदि की विधि कहूँगा जो पूर्व में गोद में बैठी हुई पार्वती को कही थी, जो सब पापों को नाश करने वाली हैं। इस विधि से स्नान करके एक बार शंकर का पूजन करके ब्रह्मसूर्य से आचमन करे वह मनुष्य सब पापों से छूट जाता है। शिवजी ने तीन प्रकार का आचमन कहा है, जो ब्राह्मणों को बड़ा हितकारी है। वरुण स्नान (जल के द्वारा) दूसरा उससे उत्तम है वह है भस्म से, तीसरा स्नान मन्त्र के द्वारा हो जाता है। जो पुरुष दुष्ट भाव वाले हैं उनकी शुद्धि जल या भस्म से नहीं होती है। अतः शुद्ध भाव वाला ही मनुष्य पवित्र होता है।


सब नदी तालाब आदि में लय पर्यन्त जो नित्य स्नान है वह दुष्ट भाव वाला नहीं होता है। मनुष्यों का कमल रूपी चित्त तभी खिलेगा जब ज्ञान रूपी सूर्य की आभा से पवित्र हो जायेगा। मिट्टी, गोबर, तिल, पुष्प, भस्म, कुशा, तीर्थ के लिए ले जानी चाहिये। हाथ पैर धोकर आचमन करके देह के मल को दूर कर किनारे पर रखे उन द्रव्यों से स्नान करे।
'उद्धतासिवराहेन' आदि मन्त्र को बोलकर मिट्टी से स्नान करे। 'गन्ध द्वारा' मन्त्र से गोबर लगाकर स्नान करे। मलिन वस्त्र त्याग कर शुभ वस्त्र धारण करे, तब तीन बार आचमन करें। सब पापों से शुद्ध होने के लिए वरुण देव का आह्वान करे, मानसिक पूजन करके ध्यान करे। आचमन तीन बार करके तीर्थ में गोता लगावे तथा शिव का स्मरण कर जल को अभिमन्त्रित करे, फिर गोता लगाकर अघमर्षण मन्त्र का जप करे। उसी जल में सूर्य, सोम, अग्नि, मण्डल का ध्यान करे। पुनः आचमन करके जल से बाहर निकल कर शंख से या दौना से अथवा ढाक के पत्ता से या कुशा के जल से या पुष्प के जल से अभिषेक करे। रुद्रेण पावमानेन इत्यादि मन्त्रों से अभिषेक करता हुआ तत् तत् देवताओं के स्वरूप का, ऋषियों के स्वरूप का ध्यान स्मरण करता जाये। इस प्रकार अभिषेक करके अपने मस्तक पर जल छिड़के और हृदय में पंच मुख वाले और तीन नेत्र वाले शिवजी का ध्यान करे।

अपने शिखा सूत्र का विचार करके आचमन करे। पवित्र हाथों में धारण करके पवित्र स्थान पर बैठे। कुशा सहित दाहिने हाथ से जल उठाकर पान करे तथा तीन बार हिंसा पापादि की निवृत्ति के लिए परिक्रमा करे। इस प्रकार संक्षेप से ब्राह्मणों के हित के लिए स्नान आचमन विधि का हे ब्राह्मणो! मैंने वर्णन किया है।

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