लिंगार्चन विधि का वर्णन,Lingaarchan Vidhi Ka Varnan

लिंगार्चन विधि का वर्णन,Lingaarchan Vidhi Ka Varnan

शैलादि बोले- अब मैं तुमसे संक्षेप में लिंग की पूजा की विधि कहूँगा, क्योंकि विस्तार से तो सौ वर्ष में भी उसका वर्णन नहीं हो सकता। ऊपर बताई विधि से स्नान आदि करके पूजा के स्थान में प्रवेश करे तथा तीन प्राणायाम करके त्र्यम्बक भगवान का ध्यान करे। पाँच मुख वाले दश पैर वाले शुद्ध स्फटिक के समान श्वेत सब प्रकार के भूषणों से युक्त चित्रित वस्त्रों से विभूषित हैं, ऐसा ध्यान करे। ऐसे शिव के शरीर में आस्था रखकर परमेश्वर का पूजन करना चाहिए। देह की शुद्धि करके मूल मन्त्र से न्यास करे और सर्वत्र प्रणव से यथा क्रम न्यास करे। ॐ नमः शिवाय में सभी मन्त्र छिपे हैं जैसे बड़ के गूलर में सम्पूर्ण बड़ का पेड़ छिपा है और महत तत्व में जैसे ब्रह्म स्थित है। गन्ध और चन्दन के जल से पूजा स्थान को छिड़के और द्रव्यों को धो पौंछकर साफ करे। यह सब ॐकार मन्त्र से ही करे। प्रोक्षणी पात्र, अर्घ्य पात्र, पाद्यपात्र तथा आचमनीय पात्र भी क्रम से रखे। दाम से आच्छादित कर शुद्ध जल से साफ कर उनमें शीतल जल भरे। प्रणव (ॐ) के द्वारा ही पाद्य के पात्र में खस और चन्दन डाले। जाति कंकोल, कपूर, तमाल को चूर्ण करके आचमनीय पात्र में डाले। इस प्रकार सब पात्रों में चन्दन, कपूर तथा अनेकों प्रकार के पुष्प डाले। कुशाग्र, चावल, जौ और भस्म प्रणव के द्वारा प्रोक्षणी पात्र में डाले। पंचाक्षर अथवा रुद्रगायत्री का न्यास करे अथवा केवल प्रणव का ही करे। प्रणव के द्वारा प्रोक्षणी पात्र में स्थित डकों से न्यास करे।


देवाधिदेव के पास में नन्दी का तथा दीप्त अग्नि के समान चमकते हुए तीन नेत्र वाले, बाल चन्द्रमा धारण करने वाले, सम्पूर्ण आभरणों से भूषित सौम्य रूप शिवजी की पूजा करे तथा भक्ति से पुष्पांजली दे। विविध प्रकार की धूप गन्ध से शंकर का पूजन करके स्कन्ध, विनायक और देवी का पूजन करे तथा लिंग शुद्धि करे। प्रणव आदि से नमः तक पूरे मन्त्र का जप करे। पद्म का आसन दे। पूर्व दल में प्रथम आणिमा सिद्धि, दक्षिण में लधिमा, पश्चिम में महिमा, उत्तर में प्राप्ति, प्राकाम्य नैरुत में, ईशत्व वायव्य, वशित्व सिद्धि स्थापित करे। कली को सोम कहते हैं, सोम के नीचे सूर्य उसके नीचे पावक स्थापित करे। धर्मादिकों को विदशापों में, अव्यक्त आदि को चारों दिशाओं में, सोम के अन्त में तीनों गुणों को उसके समीप में शिव का आसन स्थापित करके वामदेव मन्त्र से सद्योजात शिव को आसन पर रुद्र गायत्री के समीप में स्थापित करे। अघोर मन्त्र से रुद्र गायत्री की प्रतिष्ठा करे। 'ईशानः सर्व विधानां' इस मन्त्र से पूजा करे। पाद्य अर्घ्य और आचमन प्रदान करे। गन्ध चन्दन युक्त जल से रुद्र को स्नान करावे। पंचगव्य, विधान से बनाकर प्रणव द्वारा यथा विधि स्नान करावे। घी, मधु, शक्कर से स्नान करावे। प्रणव से अभिषेक करे। पवित्र पात्रों से शुद्ध जल से मन्त्र बोलकर स्नान करावे।

इस प्रकार सफेद शुद्ध वस्त्र से उनका अंग पोंछे। जाति, चम्पक, कपूर, कन्नेर तथा चमेली, कदम्ब के पुष्पों की सुन्दर माला पहनावे। जल से सद्योजात आदि मंत्रों से न्यास करे। सोने के या चाँदी के कलश से अथवा ताँबा के पत्र से, कमल पत्र या पलाश पत्र से या शंख से या मिट्टी के पात्र से दाम सहित तथा पुष्प सहित मन्त्र युक्त होकर शिव को स्नान कराना चाहिए। उन मन्त्रों को मैं तुम्हें बताता हूँ- इन मन्त्रों से एक बार भी लिंग को स्नान कराकर मनुष्य मुक्त हो जाता है। पवमान, वामकेन, रुद्र, नीलरूप, श्री सूक्त, रात्रि सूक्त, चमक, होतार, अथर्व, शान्ति अथवा अरुण, वारुण, वेदव्रत तथा पुरुष सूक्त से व त्वरित रुद्र से कपि, कपर्दी, सग्म्य, व्रहद्रचन्द्र, विसपाक्ष, स्कन्द, शतऋग शिव, पंचब्रह्म सूक्त से अथवा केवल प्रणव (ॐ) से ही शिव देवाधि देव का स्नान करावे तो सभी पापों से मुक्त हो जाता है। पुनः देकर आचमन करावे। 

गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, क्रम से अर्पण करे तथा सुगन्धित जल से आचमन करावे। मुकुट, छत्र, भूषण भी प्रणव के द्वारा देव को अर्पण करे। ताम्बूल भी प्रणव से दे। फिर स्फटिक मणि से सदृश, निष्कलंक, सर्व देवों के कारण, सर्व लोक मय, ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इन्द्रादि तथा ऋषि गणों के अगोचर, वेद वेदज्ञों के भी अगोचर, आदि अन्त से रहित, संसार रोग की औषध, ऐसा शिव तत्व प्रसिद्ध है जो शिव लिंग में अवस्थित है। प्रणव के द्वारा लिंग की मूर्धा पर पूजा करे, स्तोत्र का जप करे और विधि पूर्वक नमस्कार करे, प्रदक्षिणा करे। विधि पूर्वक पुष्पों को चरणों में बिखेर कर देवेश का आत्मा में आरोप करे। इस प्रकार संक्षेप में लिंगार्चन विधि मैंने कही। इसके बाद भीतरी लिंग पूजा भी आप से कहूँगा।

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