लिंग प्रतिष्ठा के महत्व का वर्णन,
ऋषि बोले- हे महामते सूतजी ! आपसे हमने मू को भी मोक्ष प्रदान करने वाली जीवत् श्राद्ध की विधि को सुना। हे सुव्रत रोमहर्षण जी ! अब कृपा करके रुद्र, आदित्य, वसु, इन्द्र, आदि की प्रतिष्ठा किस प्रकार की होती है तथा शम्भु की लिंग की प्रतिष्ठा को हमें बतलाइये। विष्णु, इन्द्र, देवता, ब्राह्मण, महात्मा, अग्नि, यम नैऋत दिशा में वरुण, वायु में सोम की यज्ञ, कुबेर की ईशान, धरा, श्री, दुर्गा, शवा, हेमवती, स्कन्द, गणेश, नन्दी तथा अन्य देवों और उनके गणों की प्रतिष्ठा लक्षणों को विस्तार से हमारे प्रति वर्णन कीजिए। क्योंकि आप सब तत्वों को जानने वाले तथा रुद्र के भक्त हैं और तत्व जानने वालों में तो आप कृष्ण द्वैपायन व्यास जी के साक्षात् दूसरे शरीर ही हो। सुमन्तु, जैमिनी, पैल और बड़े बड़े ऋषि गुरु भक्ति में जिस प्रकार नामी हुए वैसे ही रोमहर्षण जी हुए। व्यास जी की विपुल गाथा को भागीरथी के तट पर प्रकट करने वाले अकेले अथवा सबके साथ व्यासजी के अभिन्न शिष्य हो।
भूतल पर व्यास के शिष्यों में तुम वैशम्पायन के शिष्य हो। इसलिए हमारे लिए सम्पूर्ण वृत्तान्त कहिए। ऐसा कहकर सबके चुप हो जाने पर मुनियों के सामने तथा सूतजी के सामने एक महा आश्चर्य उत्पन्न हुआ। आकाश में साक्षात् सरस्वती प्रकट हुईं और वाणी हुई कि मुनियों का प्रश्न बहुत है यानी पर्याप्त है। यह सब लोक लिंग में प्रतिष्ठित है। इसलिए सबको त्याग कर लिंग की पूजा करनी चाहिए। उपेन्द्र, ब्रह्मा, इन्द्र, यम, वरुण, कुबेर तथा और भी देवता लिंग मूर्ति महेश्वर की स्थापना करके अपने अपने स्थानों में पूजा करते हैं। ब्रह्मा, हर, विष्णु, देवी, लक्ष्मी, धृति, स्मृति, प्रज्ञा, धरा, दुर्गा, शची, रुद्र, वसु, स्कन्ध, शाख, विशाख, नैगमेष, लोकपाल, ग्रह, नन्दी से आदि लेकर सब गण, गणपति, पितर, मुनि, कुबेर आदि साख्य अश्वनी कुमार, विश्वेदेवा, साध्य, पशु, पक्षी, मृग, ब्रह्मा से लेकर स्थावर तक सब लिंग में प्रतिष्ठित हैं इसलिये सबको त्यागकर अव्यय लिंग की स्थापना करनी चाहिए। मन्त्र से स्थापित लिंग में पूजा करने पर सबकी पूजा हो जाती है।
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