लिंग मूर्ति की प्रतिष्ठा का वर्णन,Ling Moorti Kee Pratishtha Ka Varnan

लिंग मूर्ति की प्रतिष्ठा का वर्णन

सूतजी कहने लगे- इस प्रकार सुनकर हाथ जोड़े हुए मुनीश्वर कल्याण रूप शिव को लिंग रूप समझकर मन में प्रणाम करने लगे। सब देवताओं के पति ब्रह्माजी, विष्णु भगवान, सभी श्रेष्ठ मुनि, श्रेष्ठ नर सब शिवलिंगमय हो गये और सब सावधान होकर सब त्यागकर लिंग प्रतिष्ठा करने को तैयार हुए और सूतजी से पूछने लगे। सूतजी कहने लगे- धर्मार्थ काम आदि की सिद्धि के लिए लिंग प्रतिष्ठा को मैं संक्षेप से कहता हूँ, सो सुनो। ब्रह्मा, विष्णु, शिवात्मक लिंग जो शिला से निर्मित है। स्वर्ण तथा चाँदी का ताम्र के लिंग की स्थापना वेदी सहित, सूत्र सहित करनी चाहिए। लिंग की वेदी साक्षात् उमा देवी हैं और लिंग साक्षात् महेश्वर हैं। इसलिए देवी के साथ ही देवेश की प्रतिष्ठा होनी चाहिए। लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु वास करते हैं। 


इससे सर्वेशान पशुपति रुद्र की मूर्ति सबसे श्रेष्ठ है। अतः लिंग की स्थापना करके गन्ध, धूप, दीप, स्नान, हवन, बलि, स्तोत्र, मन्त्र, उपहार से पूजा करनी चाहिए। जो इस प्रकार लिंग मूर्ति महेश की नित्य पूजा करते हैं वह जन्म मरणादिक से रहित देव गन्धर्व सिद्धों से वन्दनीय तथा गणों से पूज्य और प्रमाण रहित होते हैं। इसलिए सब उपचार के सहित परमेश्वर के लिंग की पूजा कर सर्वार्थ सिद्धि के लिए आराधना करनी चाहिए। तीर्थ के मध्य में शिवासन पर लिंग की स्थापना करके दर्भ तथा वस्त्र आदि से लिंग को आच्छादन करके तथा कलशों द्वारा स्नान कराकर वज्र आदि आयुधों से युक्त लिंग की प्रतिष्ठा करनी चाहिए तथा गज आदि की मूर्तियों के सहित स्थापना करे। धूप, दीप आदि से युक्त कर जल में अधिकांश कराना चाहिए। पाँच दिन या तीन दिन अथवा एक ही रात्रि तक वेदाध्ययन से युक्त नृत्य, वादन, ताल, वीणा आदि शब्दों से समाहित हुआ यजमान महेश्वर को जल में से उत्थापन करे।

नव कुण्डों से युक्त संस्कार की हुई वेदी पर या पाँच या एक कुण्ड वाली वेदी पर अथवा स्थण्डल में महेश्वर की अर्चना करे। पूर्व की ओर सिर करके लिंग का न्यास करे। वस्त्र से या कुशा से उसे आच्छादन करे। सर्व धान्य से युक्त शिला पर शिव गायत्री द्वारा लिंग की स्थापना करे शिव गायत्री से अथवा केवल प्रणव से ही स्थापना करे।'ब्रह्म जिज्ञान' मन्त्र से ब्रह्मा की स्थापना, विष्णु, गायत्री से विष्णु की स्थापना उसमें करे। नमः शिवाय अथवा 'नमो हंस शिवाय च' अथवा रुद्राध्याय से शिव का न्यास करे। चारों तरफ कलश की स्थापना करे। मध्य कुम्भ में शिव की स्थापना, दक्षिण में देवी की, दोनों के मध्य में स्कन्द की, स्कन्द के कुम्भ में ब्रह्मा की, ईश कुम्भ में हरि की स्थापना करे और शिव कुम्भ में ब्रह्मांगों का न्यास करे। 

शिव, महेश्वर, रुद्र, विष्णु, पितामह ये सब ब्रह्मांग ही हैं। सोना, चाँदी, रत्न आदि शिव कुम्भ में डाले। नवीन वस्त्र प्रत्येक घड़ा के ऊपर रखे। गायत्री मन्त्र से, जया से सृष्टि पर्यन्त सबका हवन करे। शिव कुम्भ से शिव का अभिषेक करे। एक हजार पण की दक्षिणा प्रदान करे। अन्यों को इससे आधी या आधी से भी आधी दक्षिणा प्रदान करे। वस्त्र, खेत, भूषण, गौ, धन आदि का दान करे। उत्सव करे, हवन करे, बलिदान करे। नौ दिन, सात दिन, तीन दिन या एक दिन ही शंकर भगवान का पूजन करके होम करना चाहिए। सूर्यादिक देवताओं का भी पूर्व में होम करना चाहिए। इस प्रकार लिंग की स्थापना करने वाला साक्षात् परमेश्वर ही है। उसने सम्पूर्ण देवगण, रुद्रगण, ऋषिगण तथा अप्सरा तथा सचराचर त्रैलोक्य की पूजा कर ली।

टिप्पणियाँ