जानिए उमानन्द भैरव मन्दिर कामाख्या देवीपीठ,Jaanie Umaanand Bhairav Mandir Kaamaakhya Deveepeeth

उमानन्द भैरव मन्दिर कामाख्या देवीपीठ

उमानन्द कामाख्या देवीपीठ के भैरव हैं। उमानन्द- भैरव का मन्दिर नीलाचल पर्वत के पूर्व ब्रह्मपुत्रनदके मध्यभागमें एक शैलद्वीपपर अवस्थित है। शास्त्रोंकी निर्देशित विधिके अनुसार पहले उमानन्दभैरवका तदनन्तर पाण्डुघाटस्थ पञ्चपाण्डवका दर्शन करना चाहिये। अन्तमें तीर्थयात्री कामाख्यादेवीके दर्शनार्थ नौलाचलपर्वतपर आरोहण करे। कामाख्यादेवीकी प्रीतिके संवर्द्धनार्थ यात्री यहाँ तीन रात्रि वास करे, ऐसा विधान है।


उमानन्द महाभैरव का दर्शन कर उन्हें निम्न मन्त्रसे प्रणाम करना चाहिये-

धर्मकामार्थमोक्षाय सर्वपापहराय च।
नमः त्रिशूलहस्ताय उमानन्दाय वै नमः ॥

प्रसीद पार्वतीनाथ उमानन्द नमोऽस्तु ते।
देव देव महादेव शशाङ्कितशेखर।
तव दर्शनमात्रेण पुनर्जन्म न विद्यते ।।

धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्रदान करनेवाले, सभी प्रकारके पापोंका नाश करनेवाले तथा हाथमें त्रिशूल धारण करनेवाले भगवान् उमानन्दको बार-बार नमस्कार है। पार्वतीनाथ प्रसन्न होइये। उमानन्द। आपको नमस्कार है। मस्तकपर चन्द्रमाको धारण करनेवाले देवदेव महादेव! आपके दर्शनमात्रसे पुनर्जन्म नहीं होता।

तीर्थके वार्षिक उत्सव एवं मेले

अम्बुवाची उत्सव-ज्योतिषशास्त्रके अनुसार आषाढ़‌के महीनेमें मृगशिरानक्षत्रके चतुर्थ चरण और आर्दानक्षत्रके प्रथम चरणके मध्यमें पृथ्वी ऋतुमती होती है। इसी समयको अम्बुवाची कहते हैं। साधारणतः प्रतिवर्ष सौर आषाढ़ महीनेके दिनाङ्क ७ या ८ से ११ या १२ तक अम्बुवाचीयोग रहता है। इस अवसरपर कामाख्यामन्दिर तीन दिन बंद रहता है एवं दर्शनादि नहीं होते। चौथे दिन देवीका मन्दिर खुलता है और अभिषेक पूजादि समाठ अम्बुवाची उत्सव-ज्योतिषशास्त्रके होनेपर यात्रियोंको दर्शन करने दिया जाता है। अम्बुवाचीका व्रत तन्त्रोक्त है। असम एवं बंगालमें इस व्रतकी मान्यता अधिक है। अम्बुवाचीयोगमें जगन्माता कामाख्यादेवीके रक्तवस्त्रको प्रसादरूपमें दिया जाता है। कामाख्याका रक्तवस्त्र धारण कर पूजा-पाठ करनेसे भक्तोंकी कामनाएँ पूर्ण होती हैं, यह सर्वथा सत्य है इसमें संदेह नहीं हैं-

कामाख्यावस्त्रमादाय जपपूर्जा समाचरेत्।
पूर्णकार्म लभेद्देवि सत्यं सत्यं न संशयः ।।

(कुम्बिकातन्त्र, सतम पटल) पुष्याभिषेक पौष महीनेकी कृष्ण द्वितीया या तृतीया तिथिको पुष्यनक्षत्रयोगमें यह उत्सव मनाया जाता है। उत्सवके पहले दिन चलन्ता (उत्सवमूर्ति) कामेश्वरमूर्तिको कामेश्वरमन्दिरमें लाकर उनका अधिवासन किया जाता है। कामाख्यामन्दिरमें चलन्ता कामेश्वरीमूर्तिका अधिवास होता है। दूसरे दिन कामेश्वरमन्दिर से कामेश्वरकी मूर्ति ढाक-ढोल आदि वाद्ययन्त्र बजाकर लायी जाती है एवं भगवतीके पञ्चरत्नमन्दिरमें दोनों मूर्तियोंका शुभ-परिणय महासमारोहके साथ पूजा, यज्ञ-यज्ञादि अनुष्ठित होता है। पूजा-कर्मादिके बीच कामेश्वर-कामेश्वरीकी मूर्ति-प्रदक्षिणाका दृश्य विशेषरूपसे आकर्षणका केन्द्र है। इस तरह हर-गौरी विवाह-महोत्सवका पालन होता है।
इसके अतिरिक्त यहाँ देवध्वनि, दुर्गापूजा, लक्ष्मीपूजा, कालीपूजा, वासन्तीपूजा, शिवरात्रि, श्रीकृष्णजन्माष्टमी, सरस्वतीपूजा तथा कृष्णदोलयात्रा आदि पूरे वर्षके पर्व धूम-धामके साथ मनाये जाते हैं।

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