जानिए नेपाल शक्तिपीठ- गुह्येश्वरीदेवी के बारे में,Jaanie Nepaal Shaktipeeth - Guhyeshvareedevee Ke Baare Mein
नेपाल शक्तिपीठ- गुह्येश्वरीदेवी
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
जो पराशक्तिरूपादेवी समस्त प्राणियोंमें शक्तिरूपसे विराजमान हैं, उन आद्याशकि भगवतीको बारम्बार नमस्कार है। ब्रह्मामें सृष्टि करनेकी, विष्णुमें पालन करनेकी और शिवमें संहार करनेकी शक्ति है। सूर्य संसारको प्रकाश देते हैं। शेषनाग और कच्छपमें पृथिवी धारण करनेकी शक्ति है। अग्रिमें प्रज्वालन शक्ति और पवनमें गतिशील करनेकी शक्ति है। तात्पर्य यह है कि सभीमें जो शक्ति विराजमान है, वस्तुतः वह आद्याशक्तिके कारण ही है। उनके प्रभावसे शिव शिवताको प्राप्त होते हैं। जिसपर तन शक्तिरूपिणीकी कृपा न हुई चाहे वह कोई भी हो शकिहीन हो जाता है। विद्वज्जन उसे असमर्थ कहते हैं। सबमें व्यापक रहनेवाली जो आद्याशक्ति है, उन्हींका 'ब्रह्म' नामसे निरूपण किया गया है।
वे ही आद्याशक्ति इस अखिल ब्रह्माण्डको उत्पन्न करती हैं और उसका पालन भी करती हैं। वे ही आद्याशक्ति इच्छा होनेपर इस चराचर जगत्का संहार भी कर लेनेमें संलग्र रहती हैं। सभी देवता अपने कार्यमें तब सफल होते हैं, जब आद्याशक्ति उन्हें सहयोग पहुँचाती हैं। इससे सिद्ध होता है कि वे शक्ति ही सर्वोपरि हैं। वे सगुणा साकारा, निर्गुणा निराकाराके भेदसे अनेक रूपमें जानी जाती हैं-
'निराकारा च साकारा सैथ नानाभिधा स्मृता ।'
स्कन्दपुराणके केदारखण्डमें भगवती शतिकी महिमाका आख्यान विस्तारसे वर्णित है। वहाँ बताया गया है कि पिता दक्षप्रजापतिके यज्ञमें परमेश्वर शिवका भाग न देखकर देवी सतीने यज्ञशालामें ही योगाग्रि प्रकट कर अपना शरीर भस्मीभूत कर दिया। वीरभद्र आदि प्रचण्ड गणोंने दक्षका यज्ञ विध्वंस किया, भगवान् शिव सतीकी निर्जीव देह कन्धेपर लेकर भ्रमण करने लगे। भगवान् शिवके शोकसंतप्त नृत्यसे कहीं प्रलय न हो जाय, भगवान् विष्णुने अपने सुदर्शन चक्रसे सतीकी देहको काटना प्रारम्भ किया, इससे शरीरके विभिन्न भाग कटकर गिरने लगे। जहाँ-जहाँ महादेवी सतीके शरीरके भाग गिरे वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ बने। प्रत्येक पीठमें महादेव तथा योगिनी (ईश्वरी) प्रकट हुईं। जबतक भगवती सतीके प्रत्येक अङ्ग गिरकर समाप्त न हुए, तबतक भगवान् शिव भ्रमण करते ही रहे। भ्रमण करते हुए जब भगवान् शंकर नेपालमें पहुँचे तो वहाँपर भगवती सतीके शरीरका गुह्यभाग गिरा। वह नेपालशक्तिपीठके नामसे प्रसिद्ध हुआ। यहाँकी शक्ति 'गुझेश्वरीदेवी' के नामसे प्रसिद्ध हैं। यहाँपर चन्द्रघण्टा मोगिनी तथा सिद्धेश्वर महादेवका प्रादुर्भाव हुआ। यहाँ शिव शक्तिस्वरूपसे विराजमान हुए। यह क्षेत्र साधकोंको सिद्धि देनेवाला है। शफिसङ्गमतन्त्रमें कहा गया है कि जटेश्वरसे प्रारम्भकर योगेशतक साधकोंको सिद्धि प्रदान करनेवाला नेपाल- देश है-
जटेश्वर समारभ्य योगेशान्तं महेश्वरि।
नेपालदेशो देवेशि साधकानां सुसिद्धिदः ॥
इस पुण्यभूमि सिद्धपीठमें इन्द्र आदि देवताओंने आकर शक्तिकी आराधना करते हुए कठोर तप किया। भगवती गुह्येश्वरीने प्रकट होकर देवताओंको वरदान दिया कि आपलोग सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि-इन चारों चुगोंमें तैंतीस कोटि देवताके नामसे प्रख्यात रहोगे। विश्वमें आपलोगोंकी पूजा होगी तथा आप सभी आराधकोंको ईप्सित फल दे सकोगे। इस प्रकार वरदान पाकर देवगण प्रसन्न होकर सदैव शक्तिकी आराधनामें रत रहते हुए स्वर्ग लौट आये। यह सिद्धपीठ किरातेश्वरी महादेव मन्दिरके समीप पशुपतिनाथ मन्दिरसे सुदूर पूर्वमें वागमती गङ्गाके उस पार टोलेपर विराजमान है। यहाँ प्राचीन कालमें श्लेषमान्तवन था, जिसमें अर्जुनने तपस्या की थी, कैलासपत्ति किरातके रूपमें इस जंगलमें विचरते रहे। वह वन आज गाँवका रूप ले चुका है।
कुछ भाग अब भी शेष है। काठमाण्डूका हवाई अड्डा उसी वनभागमें बना है। वहाँ पहुंचकर जो भी भक्त नर-नारी भगवती गुड़झेअरीका दर्शन-पूजन करते हैं, उनकी मनोकामना भगवती गुह्येश्वरी पूरा करती हैं। वहाँ पहुँचनेके लिये अनेक साधन हैं। हवाई जहाजसे जानेपर हवाई अड्डेसे निकलकर गोशाला होते हुए टैम्पो या टैक्सीद्वारा वागमतीके किनारेतक जाकर पुल पार करके शक्तिपीठतक आसानीसे पहुँचा जा सकता है। बससे जानेपर भी बस अड्रेसे रत्नपार्क शहीद फाटक होते हुए गोशाला ही पहुँचते हैं। सिटीबस, टैक्सी आदि सभी प्रकारके साधन सुलभ हैं। शरीरके किसी भी अङ्गमें (विशेषकर गुप्ताङ्गमें) कोई रोग हो तो भगवती गुडधेश्वरीके दर्शन, वहाँपर पाठ करने या करानेसे रोगसे मुक्ति एवं सभी प्रकारकी कामना पूर्ण होती है। नेपाल शक्तिपीठ 'गुह्येश्वरी' के पास सिद्धेश्वर महादेवका लिङ्ग भगवान् सृष्टिकर्ता ब्रह्माद्वारा प्रतिष्ठित है। जिसकी अर्चना वन्दनासे भक्तजन इच्छित फल प्राप्त कर सकते हैं।
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