जानिए महामाया पाटेश्वरी शक्तिपीठ- देवीपाटन के बारे में,Jaanie Mahaamaaya Paateshvaree Shaktipeeth - Deveepaatan Ke Baare Mein

महामाया पाटेश्वरी शक्तिपीठ- देवीपाटन

पराम्बा महेश्वरी जगज्जननी जगदीश्वरी भवानीकी महिमा अचिन्त्य, अपार और नितान्त अभेद्य है। उनकी आत्यन्तिक कृपाशक्तिसे ही उनके स्वरूपका परिक्षान सम्भव है। वे परम करुणामयी एवं कल्याणस्वरूपिणी शिवा हैं। देवताओं ने भगवती महामायाके स्वरूपके सम्बन्धमें कहा है कि आप ही सबकी आश्रयभूता है। यह समस्त जगत् आपका अंशभूत है; क्योंकि आप सबकी आदिभूता अव्याकृता परा प्रकृति हैं-

सर्वांश्रयाखिलमिदं जगदंशभूत- मध्याकृता हि परमा प्रकृतिस्वमाद्या ।।

परम प्रसिद्ध शक्तिपीठ देवीपाटनकी परमाराध्या महामाया पाटेश्वरी महाविद्या, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा महादेवी हैं। वे पर और अपर सबसे परे रहनेवाली परमेश्वरी हैं। ऐतिहासिक तथा अनेक पौराणिक तथ्योंसे यह मान्यता निर्विवाद है कि देवीपाटन महामाया महेश्वरीका पत्तन अथवा नगर है। देवीका पट (वस्त्र) उनके वामस्कन्धके सहित इसी पुण्यक्षेत्रमें गिरा था। इसलिये यहाँको अधिष्ठात्री महामायाको 'पटेश्वरी' या 'पाटेश्वरी' कहा जाता है। इस विषयमें अत्यन्त प्रसिद्ध श्लोक है-

पटेन सहितः स्कन्धः पपात यत्र भूतले।
तत्र पाटेश्वरीनाम्रा ख्यातिमाप्ता महेश्वरी ॥

देवीपाटनको पातालेश्वरी शक्तिपीठ भी कहा जाता है। ऐसी भी मान्यता प्रचलित है कि भगवती सीताने इसी स्थलपर पातालमें प्रवेश किया था, पर यह स्थान भगवती सतीके अङ्ग वामस्कन्धके पटसहित पतनसे ही ख्याति प्राप्त कर पाटेश्वरीपीठके नामसे व्यवहृत है। देवीपाटन सिद्ध योगपीठ और शक्तिपीठ दोनों है; क्योंकि यह ऐतिहासिक तथा परम्परागत सर्वमान्य तथ्य है कि साक्षात् अभिनव शिव महायोगी गोरखनाथने शिवकी प्रेरणासे इस पुण्यस्थलपर शक्तिकी उपासना और आराधनाके द्वारा अपने योग अनुभवसे समस्त जगत्‌को जीवनामृत अथवा योगामृत प्रदान किया था। देवीपाटनमें भगवती महेश्वरीका इतिहासप्रसिद्ध मन्दिर है। 

महाराज विक्रमादित्यने प्राचीन मन्दिरका जीर्णोद्धार कराया था। पुनः मध्यकालमें मुगल बादशाह औरंगजेबकी आज्ञासे उसकी सेनाने इसे ध्वस्त कर दिया था। उसके बाद नये मन्दिरका निर्माण सम्पन्न हुआ। यह भी प्रसिद्धि है कि महाभारतयुद्धके महासेनानी दानवीर कर्णने इस पुण्यक्षेत्रमें भगवान् परशुरामसे ब्रह्मास्त्र प्राप्त किया तथा युद्धविद्या और शस्त्रास्त्र प्रयोगकी शिक्षा प्राप्त की थी। भगवती पाटेश्वरीसे सम्बद्ध देवीपाटन शक्तिपीठ उत्तर प्रदेशके बलरामपुर जनपदमें पूर्वोत्तर रेलवेके बलरामपुर स्टेशनसे इक्कीस किलोमीटरकी दूरीपर स्थित है। तुलसीपुर रेलवे स्टेशनसे केवल सात सौ मीटरकी दूरीपर सीरिया (सूर्या) नदीपर स्थित यह शक्तिपीठ भगवती जगदम्बाकी उपासनाका भव्य भौम-प्रतीक है। नेपाल राज्यकी सीमाको देवीपाटन पुण्यपीठ स्पर्श करता है। भारत और नेपालकी पारम्परिक मैत्री और सह-अस्तित्वकी सद्भावनाका यह आध्यात्मिक स्मारक चिरकालतक दोनों देशोंक इतिहासमें स्वर्णाक्षरोंमें अङ्कित रहेगा।

दक्षयज्ञमें योगाग्रिद्वारा प्रज्वलित सतीके शरीरके शवके ५१ खण्डित अङ्गॉसे ५१ शक्तिपीठोंकी स्थापना हुई। शिवपुराण, देवीभागवत तथा तन्त्रचूड़ामणि आदि अनेक ग्रन्थोंमें शक्तिपीठकी परम्परा और उससे सम्बद्ध सतीके शरीरके खण्ड-खण्ड होनेका आख्यान उपलब्ध होता है। शक्तिपीठ-परम्पराके अनुसार ५१ वर्ण समाम्नायके आश्रय आदिशक्ति भगवती जगदम्बाकी उपासनाके ५१ शक्तिपीठ सम्पूर्ण भारतमें अवस्थित हैं। उन्हीं शक्तिपीठोंमें महामाया पाटेश्वरीके उपासनास्थलसे देवीपाटन शक्तिपीठकी परिगणना की जाती है। सिद्ध शक्तिपीठ देवीपाटनमें शिवकी आज्ञासे महायोगी गोरखनाथने पाटेश्वरीपीठकी स्थापना कर भगवतीको आराधना  और योगसाधना की थी। इस बातका उल्लेख देवीपाटनमें उपलब्ध १८७४ ई०के शिलालेखमें है।

महादेवसमाज्ञप्तः सतीस्कन्धविभूषितम्।
गोरक्षनाथो योगीन्द्रस्तेन पाटेश्वरी मठम् ।।


देवीपाटन शक्ति-उपासना और योगसाधनाका तीर्थक्षेत्र है। पाटेश्वरी मन्दिरके अन्तः कक्षमें प्रतिमा नहीं है केवल चाँदीजटित गोल चबूतरा है। कहा जाता है कि इसीके नीचे पातालतक सुरंग है। इसी चबूतरेपर महामायाकी समुपस्थितिकी भावना कर उन्हें पूजा समर्पित की जाती है। चबूतरेपर कपड़ा बिछा रहता है, उसके ऊपर ताम्रछत्र है, जिसपर सम्पूर्ण श्रीदुर्गासप्तशतीके स्लोक अङ्कित हैं। उसके नीचे चाँदीके ही अनेक छत्र हैं। मन्दिरमें अखण्ड ज्योतिके रूपमें भीके दो दीपक जलते रहते हैं। मन्दिरकी परिक्रमानें मातृगणोंके यन्त्र विद्यमान हैं। मन्दिरके उत्तरमें सूर्यकुण्ड है, यहाँपर रविवारको ज्ञानकर षोडशोपचारसे देवीका पूजन करनेवालेका कुष्ठरोगनिवारण होता है। यहाँ महिषमर्दिनी कालीका मन्दिर है। बटुकनाथ भैरवको आराधना होती है तथा अखण्ड धूनी है। इस पुण्यक्षेत्रमें चन्द्रशेखर महादेव और हनुमान्जीके मन्दिर भी हैं। देवीपाटन नेपालके सिद्धयोगी चाबा रतननाथका शक्ति उपासनास्थल है। वे प्रतिदिन योगशक्तिद्वारा दाँग (नेपालकी पहाड़ि‌यों) से आकर महामाया पाटेश्वरीकी आराधना किया करते थे। देवीके बरसे उनकी भी यहाँ पूजा होती है। देवीने योगीको आश्वासन दिया था कि जब तुम पधारोगे तब तुम्हारी पूजा होगी। रतननाथ दाँग चौधरास्थानसे प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पञ्चमीको पाटन आते हैं। एकादशीको वापस जाते हैं। देवीपाटनमें प्रतिवर्ष नवरात्रमें बहुत बड़ा मेला लगता है। देशके प्रत्येक भागसे श्रद्धालु भक्तजन आ-आकर महामाया पाटेश्वरीके चरणदेशमें अपनी श्रद्धा समर्पित करते हैं। भगवती पाटेश्वरीकी प्रसन्नता परम सिद्धिदायिनी है। भगवती जगदीश्वरीके चरणोंमें आत्मनिवेदन कर जीवात्मा अभय हो उठता है। पाटेश्वरी महामायासे यही निवेदन है-

प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडो लोकानां वरदा भव ॥

विश्वकी पीड़ा दूर करनेवाली देवि। हम आपके चरणोंपर पड़े हुए हैं, हमपर प्रसन्न होइये। तीनों लोकके निवासियोंकी पूजनीया परमेश्वरि। आप सब लोगोंको वरदान दीजिये। महामाया पाटेश्वरीके प्रसन्न होनेपर समस्त सिद्धियाँ, समस्त पदार्थ, भोग, मोक्ष करतलगत हो जाते हैं।

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