जानिए आरासुरी अम्बाजी शक्तिपीठ- गुजरात के बारे में,Jaanie Aaraasuree Ambaajee Shaktipeeth - Gujaraat Ke Baare Mein
आरासुरी अम्बाजी शक्तिपीठ- गुजरात
गुजरातमें अनेक शान्त और पवित्र स्थान हैं, जो देवीकी उपासनाके लिये प्रसिद्ध हैं। इस प्रदेशमें भगवतीके अनेक प्राचीन मन्दिर यह प्रमाणित करते हैं कि यहाँक लोग देवी आद्याशक्तिकी पूजा और भक्तिमें अटूट विश्वास रखते हैं। नवरात्र पर्वमें समस्त गुजरातमें देवीके गौतों और गरबाकी धूम मच जाती है। सारा गुजराती समाज देवीके गीत गाते हुए झूम-झूमकर गरबा करता है। गुजरातमें तीन शक्तिपीठ प्रमुख हैं-- अम्बिका,
- कालिका तथा
- श्रीबाला बहुचरा।
इनके अतिरिक्त कच्छमें आशापुरा, भुजके पास रुद्राणी, काठियावाड़में द्वारकाके निकट अभयमाता, हलवदके पास सुन्दरी, बढ़वाणमें बुटमाता, नर्मदातटपर अनसूया, पेटलादके पास आशापुरी, घोषाके पास खौडियारमाता आदि अन्य मान्य स्थान हैं।
आरासुरी अम्बिका (अम्बाजी) शक्तिपीठ
कहा जाता है कि गुजरातके अर्बुदारण्य-क्षेत्रमें पर्वत-शिखरपर सतीके हृदय का एक भाग गिरा था, आजतक उसी अङ्गकी पूजा यहाँ अम्बा या अम्बिकादेवीके रूपमें होती है। यह शक्तिपीठ अत्यन्त रमणीय स्थानपर स्थित है। यहाँ माताजीका वृङ्गार प्रातःकाल बालारूपमें, मध्याह्न युवतीरूपमें और सायं वृद्धारूपमें होता है। वास्तवमें यहाँ माताका कोई विग्रष्ठ नहीं है। 'बीसायन्त्र' मात्र है, जो शृङ्गारभेदसे तीन रूपोंमें भासता है। दिल्ली-अहमदाबाद रेल लाइनपर स्थित आबूरोड स्टेशनसे 'आरासुर' तक सड़क जाती है। वहाँ पर्वतपर अम्बिकाजीका मन्दिर है। पर्वतीय पथ अत्यन्त रमणीय है। आरासुर-पर्वतके धवल होनेके कारण इन देवीको 'धोळागढ़वाळी' माता भी कहा जाता हैं। गुजरातके लोगोंमें इन देवीकी मान्यता सबसे अधिक है। दूर-दूरसे मुण्डन-संस्कार करानेके लिये लोग बच्चोंको लेकर यहाँ आते हैं। मन्दिर में दर्शनका कार्यक्रम प्रातः आठ बजेसे बारह बजेतक चलता है। सूर्यास्तके समय आरतीका दृश्य अत्यन्त मनोहर और श्रद्धोत्पादक होता है।
शरत्पूर्णिमाको 'गरबा' नृत्यसे गुजरातकी स्त्रियाँ एवं कुमारियों माताजीका मधुर स्तवन करती हैं, तब वातावरण मोहक बन जाता है। आरासुरी अम्बाजीके अनेक आख्यान इस क्षेत्रमें प्रचलित हैं। समय-समयपर ये देवी अधिकारी भक्तोंको अपने दिव्यरूपका दर्शन भी देती हैं। यात्रीको यहाँ ब्रह्मचर्यपूर्वक रहना पड़ता है। कहते है आरासुरमें ब्रह्मचर्यके नियमका भङ्ग करनेसे अनिष्ठ होता है।
अर्बुदाचलका माहात्म्य पद्मपुराणमें इस प्रकार वर्णित है-
ततो गच्छेत धर्मज्ञ हिमवत्सुतमर्बुदम् ।
पृथिव्यां यन्त्र वै छिद्रं पूर्वमासीद् युधिष्ठिर ।।
तज्ञानमो वसिष्वस्य त्रिषु लोकेषु विद्युतः ।
तत्रोष्य रजनीमेकां गोसहस्रफलं लभेत् ॥
अर्थात् धर्मराण युधिष्ठिर। तदनन्तर हिमालय पर्वतके पुत्र अर्बुदायल (आबू) पर्वतपर आय, जहाँ पहले पृथ्वीमें पाताल जानेके लिये एक सुरंग थी। वहाँका महर्षि वसिष्ठका आश्रम तीनों लोकोंमें विख्यात है। यहाँ मनुष्य यदि एक रात भी निवास कर लेता है तो उसे एक सहस्र गोदान करनेका पुण्य प्राप्त होता है।
आयसुरका अम्बिका मन्दिर छोटा है, किंतु सम्मुख सभामण्डप विशाल है। मन्दिर के पीछे थोड़ी दूरपर मानसरोवर नामक तालाब है। आरासुरसे कुछ दूरीपर गब्बर पर्वत है। यह पर्वत बीचमें कटा हुआ है। आरासुर अम्बाजीका मूल स्थान इसी पर्वतपर माना जाता है। पर्वतकी चढ़ाई कठिन है। पर्वतपर चढ़ते समय मार्गमें एक शिलारूपिणी देवीकी मूर्ति मिलती है। पर्वतपर भगवतीकी प्रतिमा है। पास ही पारसमणि नामक पीपल वृक्ष है जो परम पवित्र समझा जाता है। बन्य पशुओंके डरके कारण पर्वतपरसे संध्या होनेके पूर्व ही दर्शन कर लौट आना चाहिये। एक दूसरी मान्यताके अनुसार गिरनार पर्वतके शिखरपर स्थित अम्बिकाजीके मन्दिरको भी शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ देवी सतीका उदरभाग गिरा था।
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