ग्रहों की स्थिति का वर्णन,Grahon Kee Sthiti Ka Varnan

ग्रहों की स्थिति का वर्णन,Grahon Kee Sthiti Ka Varnan

सूतजी बोले- ये सब क्षेत्र सूर्य की किरणों के द्वारा भी भासित होते हैं। सूर्य और चन्द्रमा के मण्डल आकाश में चमकते हैं। ये गोल घड़ा के समान जलमय और तेजमय हैं। चन्द्रमा का मण्डल घन जलात्मक और सूर्य का मण्डल घन तेजोमय है। सब देवताओं के ये स्थान हैं। सौर स्थान में सूर्य और सौम्य स्थान में सोम प्रवेश करता है। शौक्र में शुक्र, वृहत् से वृहस्पति, लोहित स्थान में मङ्गल और शनैश्चर स्थान में शनी, बौध में बुध, स्वरभानु स्थान में राहु, विवस्वान में सूर्य का स्थान अग्निमय है। हिमांशु चन्द्रमा का स्थान सफेद और जलमय है।


नौ हजार योजन सूर्य का विसकम्भ है, सूर्य से दुगना विस्तार चन्द्रमा का है। उन दोनों के बराबर राहु है जो नीचे नीचे चलता है। वह इनको पीड़ा देता है, इससे स्वरभानु कहा जाता है। विवस्वान सूर्य अदिति का पुत्र विशाखा नक्षत्र में उत्पन्न हुआ। इसी प्रकार शीतल किरणों वाला चन्द्रमा उत्पन्न हुआ। इसी तरह अन्य ग्रहों की भी उत्पत्ति जाननी चाहिए। चार प्रकार के भूतों के प्रवर्तक और निवर्तक भगवान रुद्र हैं। इस प्रकार ज्योतिष चक्र का सन्निवेश लोकों की स्थिति के लिए महादेव ने ही निर्माण किया है। ज्योतिष चक्र का गतागत ज्ञान चर्म नेत्रों वाले पुरुष शास्त्र से, अनुमान से तथा प्रत्यक्ष देखकर करते हैं। ज्योतिष चक्र का मान निर्णय करने में चक्षु, शास्त्र, जन्म, लेख्य और गणित पाँच हेतु जानने चाहिए।

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