चन्द्रमा के रथ का वर्णन, ज्योतिष चक्र में ग्रहचार का प्रतिपादन,Chandrama Ke Rath Ka Karnan Jyotish Chakr Mein Chaar Grahon Ka Pratipaadan

चन्द्रमा के रथ का वर्णन,Chandrama Ke Rath Ka Karnan

सूतजी बोले- नक्षत्रों पर विचरने वाले चन्द्रमा का रथ तीन चक्रवाला, सौ अरा और १० सफेद घोड़ों से युक्त है। सोम (चन्द्रमा) देवताओं और पितृजनों के साथ शुक्ल पक्ष में सूर्य से ऊपर गमन करते हैं। पूर्णमासी को वह पूरे मण्डल सहित दिखते हैं। कृष्ण पक्ष की द्वितीया से चौदस तक देवता उनके अम्बुमय सुधा का पान करते हैं। इसके बाद वह सूर्य के तेज से फिर वृद्धि को प्राप्त होता है और पूर्णिमा को पूर्ण होता है। इस तरह कृष्ण पक्ष में कलाओं के क्षय और शुक्ल पक्ष में वृद्धि होती रहती है। पितर अमावस्या को चन्द्रमा में ही रहते हैं और अमृत पान कर एक महीने को तृप्त होकर चले जाते हैं। इस प्रकार वृद्धि और भय को प्राप्त हुए चन्द्रमा को वृद्धि शुक्ल पक्ष में सूर्य द्वारा ही मिलती है।

ज्योतिष चक्र में ग्रहचार का प्रतिपादन

सूतजी बोले-आठ घोड़ों से युक्त जल तेजोमय बुध का रथ है। इसमें घोड़े लटे हुये नहीं हैं वरन् सुन्दर सुन्दर नाना वर्ण वाले घोड़े हैं। शुक्राचार्य का आठ घोड़ों का, मंगल का स्वर्णमय रथ तथा गुरु का भी हेममय रथ आठ घोड़ों वाला है। शनि का लोहे का रथ दस घोड़ों का जो काले रंग के हैं ऐसा रथ है। राहु का भी आठ घोड़ों का रथ है। ये सब वात रूपी रस्से से ध्रुव में बंधे हैं। जितने तारे हैं उतनी ही रस्सी हैं। ये सब घूमते हुए ध्रुव की परिक्रमा करते हैं। ९००० योजन सूर्य का विस्कम्भ है और तिगुना उसमें मण्डल का विस्तार है। सूर्य के मण्डल से दुगना चन्द्रमा का विस्तार है। उन दोनों के समान ही राहु का विस्तार है जो नीचे चलता है। दक्षिणायन मार्ग से जब सूर्य चलता है तब सब ग्रहों से नीचे चलता है। उससे ऊपर चन्द्रमा, उससे ऊपर बुध, बुध के ऊपर शुक्र तथा शुक्र के ऊपर वृहस्पति, उससे ऊपर शनिश्चर, उससे ऊपर सप्तर्षि मण्डल, सप्तर्षि मण्डल से भी ऊपर ध्रुव स्थित है। उसी ध्रुव को विष्णु लोक परम पद कहा है जिसको जानकर मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। हे ब्राह्मणो! मैंने यह सूर्य आदिक ग्रहों की संक्षेप से स्थिति कही है। जैसा देखा तैसा सुना ब्रह्मा ने ग्रहों के स्वामी सूर्य का अभिषेक किया तथा रुद्र ने गुह को अभिषेक किया। इसलिए सूर्य आदि ग्रहों की पीड़ा में कार्य सिद्धि के लिये विद्वानों को यथा विधि अग्नि में हवन इत्यादि से अर्चना करनी चाहिए।

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