चारों युग का परिमाण,Chaaron Yug Ka Parimaan
इन्द्र बोले- कलियुग में मनुष्य माया, असूया और तपस्वियों का वध आदि करेंगे तथा व्याकुल रहेंगे। प्रमादक रोग तथा भूख का भय तथा वर्षा न होने का भय तथा देशों में नाना प्रकार के संकट रहेंगे। अधर्म में चित्त रहने के कारण वेद को प्रमाण नहीं मानेंगे। अधार्मिक, अनाचारी, महाक्रोधी तथा अल्प बुद्धि वाले होंगे। मनुष्य झूठ अधिक बोलेंगे। उनकी सन्तान दुराचारी होगी। ब्राह्मणों के कर्म दोष के द्वारा प्रजा में भय रहेगा। ब्राह्मण वेद नहीं पढ़ेंगे। ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्री आदि क्रम से नष्ट होने लगेंगे। शूद्र ब्राह्मण से मन्त्र लेंगे। खाना पीना भी ब्राह्मणों के साथ करने लगेंगे। विशेष करके शूद्र राजा होंगे तथा ब्राह्मणों का वध करेंगे। भ्रूण हत्या तथा वीर हत्या होने लगेगी। शूद्र ब्राह्मणों का आचार करेंगे। राजा चोरों की सी वृत्ति वाले होंगे। मनुष्यों में वर्णाश्रम नहीं रहेंगे, भूमि अल्प फल वाली रहेगी। राजा रक्षक नहीं रहेंगे। शूद्र ज्ञानी होकर ब्राह्मणों से अभिवादन करायेंगे। ब्राह्मण शूद्रों के यहाँ जीविका करेंगे। तप और यज्ञ के फल को बेचने वाले ब्राह्मण अधिक होंगे।
कलियुग में यति बहुत होंगे जिनमें पुरुष थोड़े और स्त्रियाँ अधिक होंगी। स्त्रियाँ व्यभिचारिणी ज्यादा होंगी। पृथ्वी राजा से शून्य हो जायेगी। देश-देश तथा नगर-नगर में मण्डल बनाये जायेंगे। शासन प्रजा की रक्षा नहीं कर सकेगा। त्रेता में एक वर्ष में जो धर्म फल देता था और द्वापर में एक माह में वही धर्म कलियुग में एक दिन में फल देने वाला होगा। सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग की हजार चौकड़ी का ब्रह्मा का एक दिन होता है। उतनी ही रात्रि होती है। इसी प्रकार ७१ चतुर्युगी का एक मन्वन्तर होता है। यही मन्वन्तर का लक्षण बतलाया है। यही युगों का संक्षेप में लक्षण कहा तथा मन्वन्तरों का लक्षण है। कल्प-कल्प में इसी प्रकार व्यवस्था होती है। इसी प्रकार प्रत्येक कल्प में ऋषि लोक, मनुष्यों का लोक तथा वर्णाश्रमों का विभाग, युग-युग में होता रहता है। प्रभु युग युग में युगों के स्वभाव वर्णाश्रमों के विभाग युग सिद्धि के लिए करते हैं। इस प्रकार युगों का परिमाण तुमसे कहा। अब संक्षेप से देवी के पुत्रों का वर्णन करूँगा।
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