ब्रह्मा विष्णु के द्वारा शिव की स्तुति
सूतजी बोले- इसके बाद गरुड़ध्वज विष्णु भगवान ब्रह्मा जी को आगे करके भूत भविष्यत वर्तमान शंकर जी के नामों से छन्द से (वेद) के द्वारा इस स्तोत्र से स्तुति करने लगे। विष्णु भगवान बोले- हे अनन्त तेज वाले ! हे सुव्रत ! हे भगवान ! आपको नमस्कार है। हे क्षेत्र के स्वामी! हे बीजी ! हे शूली ! हे ज्येष्ठ ! हे श्रेष्ठ ! हे मान्य! हे पूज्य ! हे सद्योजात ! हे गहर! हे घटेश ! सभी प्राणियों के स्वामी आपको नमस्कार है। वेद स्मृतियों के प्रभु कर्म द्रव्य आदि के भी प्रभु आपको नमस्कार है। हे योग सांख्य के प्रभु! हे अच्छी प्रकार बंधे ऋषि महर्षियों के भी प्रभु, ग्रहों के प्रभु आपको नमस्कार है। हे नदियों के वृक्षों के, महान औषधियों के, धर्म रूपी वृक्ष के, धर्म की स्थिति के, परार्थ के, पर के, रस के, रत्नों के प्रभु हो आपको नमस्कार है। अहो रात्रि, अर्थ मास, मास आदि के स्वामी तथा ऋतुओं के स्वामी आपको नमस्कार है। हे पुराण प्रभु सर्ग करने वाले प्रभु आपको नमस्कार है। मन्वन्तर के प्रभु, योग के प्रभु, विश्व के प्रभु, ब्रह्मा के अधिपति, हे भगवान ! आपको नमस्कार है। विद्या के स्वामी, विद्या के अधिपति के स्वामी, व्रतादिक के स्वामी, मन्त्रों के प्रभु, पित्रीश्वरों के पति, पशुपति, गो वृषेन्द्रध्वज ! आपको नमस्कार है।
आप प्रजापतियों के भी पति हैं। सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, दैत्य दानवों के समूहों के भी स्वामी हैं। गरुड़, सर्प, पक्षी आदि के भी स्वामी हैं। वाराह, पिशाच, गुह्य, गोकर्ण, गोत्र, शंकुककर्ण, ऋक्ष, विरज, सुर, गण आदि के पति हे भगवान! आपको नमस्कार है। हे प्रभो! आप जल के स्वामी हो, ओज के स्वामी हो, आप ही लक्ष्मी पति हो तथा भूपति हो ऐसे आपको बारम्बार नमस्कार है। आप बल अबल के समूह हो, प्रदीप्त शिखर के भी शिखर हो, आप अतीत हो, वर्तमान हो तथा भविष्य भी आप ही हो। आप शूरवीर हो, वर देने वाले हो, श्रेष्ठ पुरुष हो, भूत भी आप ही हो। आप महत भी आप ही हो, आपको नमस्कार है। अणु हो, महान हो, बन्धन मोक्ष, स्वर्ग नर्क आदि आप ही हो, हे भव ! आपको नमस्कार है। हुताग्नि भी आप ही हो, उपहूत भी आप हो, आपको नमस्कार है। हे विश्व ! हे विश्वरूप ! हे विश्वतः ! शिर से आपको नमस्कार है। हे रुद्र ! हव्य, कव्य, हुतवाह आपको नमस्कार है। हे सिद्ध ! हे मध्य ! हे इष्ट ! हे सुवीर ! हे सुघोर ! हे क्रोध न करने वाले तथा क्रोधी, बुद्धि, शुद्ध, स्थूल, सूक्ष्म, दृश्य, अदृश्य, हे सर्वेश आपको नमस्कार है।
विरूपाक्ष हो, लिंग हो, पिंगल हो, वृष्टि हो, हे धूम्र ! हे श्वेत ! हे पूज्य ! हे उपजीव्य ! हे सविशेह! हे निर्विशेष ! हे क्षेम्य ! हे वृद्ध ! हे वत्सल ! आपको बारम्बार नमस्कार है। पद्म वर्ण आपको नमस्कार है, कमल हाथ में धारण करने वाले हे कपर्दी! आपको नमस्कार है। हे महेश ! हे कपिल ! आप तय अतर्क्स हो, हे चित्र ! हे चित्र वेश वाले! हे चित्र वर्ण वाले ! हे नीलकण्ठ ! आपको नमस्कार है। हे बिना नाम वाले ! आर्द्र चर्म को धारण करने वाले, श्मशान में रहने वाले, प्राणों का पालन करने वाले, मुण्डमाला को धारण करने वाले, नर और नारी के दिव्य शरीर को धारण करने वाले, सर्पों के यज्ञोपवीत धारण करने वाले आपको नमस्कार है। हे विकृत वेश वाले! हे दीप्त ! हे निर्गुण! आपको नमस्कार है। आप वाम हो, वाम प्रिय हो, चूड़ामणि को धारण करने वाले हो आपको नमस्कार है। आपके कण्ठ में स्वर्ण का, ब्रह्मसूत्र शोभा देता है, आप कमल का शिर पर परिधान धारण करने वाले हैं।
प्रदीप्त सूर्य, चन्द्रमा के समान शरीर की कान्ति वाले हैं। आप हयशीर्ष हो, पयोधाता हो, विधाता हो, भूत भावन हो, घन्टा प्रिय हो, ध्वजी हो, छत्री हो, पिनाकी हो, कवची हो, पहिशी हो, खड़गी हो, अधस्मर आपको नमस्कार है। आप ब्रह्मचारी हो, गाध हो, ब्राह्मण हो, शिष्ट हो, पूज्य हो, क्रोधी हो, प्रसन्न हो, अपने स्वकर्म में रत हो, दिव्य भोगों के भागी हो, आप असंख्य तत्व वाले हो, हे शिव ! हे भव! जो भी आप हो, या जो भी आपको बारम्बार नमस्कार है। सूतजी बोले- हे ऋषियो ! ब्रह्मा और नारायण के द्वारा इस प्रकार की गई स्तुति का जो भी कीर्तन करता है या ब्राह्मणों द्वारा सुनता है वह दस हजार अश्वमेध यज्ञ के फल का भागीदार होता है। मृत्यु लोक में चाहे वह पापाचारी ही क्यों न हो वह इसे सुनने से शिव की सन्निधि को पाता है और इसका जप करने पर तो ब्रह्म लोक को प्राप्त करता है। श्राद्ध में, दैनिक कार्य में, यज्ञ में, अवभृथ स्नान (यज्ञ के बाद के स्नान) में सज्जन मनुष्यों के मध्य से इसका कीर्तन करने पर ब्रह्म के पास में मनुष्य चला जाता है।
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