भगवान श्री राम से संबंधित विभिन्न मंत्रो के अनुष्ठान की विधि | Bhagavaan Shree Raam Se Sambandhit Vibhinn Mantro Ke Anushthaan Kee Vidhi

भगवान श्री राम, सीता, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न सम्बन्धी विविध मन्त्रोंके अनुष्ठानकी संक्षिप्त विधि

भगवान श्री राम से संबंधित विभिन्न मंत्रो के अनुष्ठान की विधि

सनत्कुमार जी कहते हैं- नारद! अब भगवान् श्रीराम के मन्त्र बताये जाते हैं, जो सिद्धि प्रदान करनेवाले हैं और जिनकी उपासना से मनुष्य भवसागरके पार हो जाते हैं। सब उत्तम मन्त्रोंमें वैष्णव-मन्त्र श्रेष्ठ बताया जाता है। गणेश, सूर्य, दुर्गा और शिव-सम्बन्धी मन्त्रोंकी अपेक्षा वैष्णव- मन्त्र शीघ्र अभीष्ट सिद्ध करनेवाला है। वैष्णव- मन्त्रोंमें भी राम-मन्त्रोंके फल अधिक हैं। गणपति आदि मन्त्रोंकी अपेक्षा राममन्त्र कोटि-कोटि गुने अधिक महत्त्व रखते हैं। विष्णुशय्या (आ) के ऊपर विराजमान अग्नि (र) का मस्तक यदि चन्द्रमा (अनुस्वार) से विभूषित हो और उसके आगे 'रामाय नमः'- ये दो पद हों तो यह (रां रामाय नमः) मन्त्र महान् पापोंकी राशिका नाश करनेवाला है। श्रीरामसम्बन्धी सम्पूर्ण मन्त्रोंमें यह षडक्षर मन्त्र अत्यन्त श्रेष्ठ है। जानकर और बिना जाने किये हुए महापातक एवं उपपातक सब इस मन्त्रके उच्चारणमात्रसे तत्काल नष्ट हो जाते हैं, इसमें संशय नहीं है। इस मन्त्रके ब्रह्मा ऋषि, गायत्री छन्द, श्रीराम देवता, रां बीज और नमः शक्ति है। सम्पूर्ण मनोरथोंकी प्राप्तिके लिये इसका विनियोग किया जाता है। छः दीर्घस्वरोंसे युक्त बीजमन्त्रद्वारा षडङ्गन्यास करे। फिर पीठन्यास आदि करके हृदयमें रघुनाथजीका इस प्रकार ध्यान करे-

कालाम्भोधरकान्तं च वीरासनसमास्थितम्।
ज्ञानमुद्रां दक्षहस्ते दधतं जानुनीतरम् ॥

सरोरुहकरां सीतां विद्युदाभां च पार्श्वगाम्। 
पश्यन्तीं रामवक्त्राब्जं विविधाकल्पभूषिताम् ।।

'भगवान् श्रीरामकी अङ्गकान्ति मेघकी काली घटाके समान श्याम है। वे वीरासन लगाकर बैठे हैं। दाहिने हाथमें ज्ञानमुद्रा धारण करके उन्होंने अपने बायें हाथको बायें घुटनेपर रख छोड़ा है। उनके वामपार्श्वमें विद्युत्के समान कान्तिमती और नाना प्रकारके वस्त्रभूषणोंसे विभूषित सीतादेवी विराजमान हैं। उनके हाथमें कमल है और वे अपने प्राणवल्लभ श्रीरामचन्द्रजीका मुखारविन्द निहार रही हैं।'इस प्रकार ध्यान करके मन्त्रोपासक छः लाख जप करे और कमलोंद्वारा प्रज्वलित अग्रिमें दशांश होम करे। तत्पश्चात् ब्राह्मण-भोजन करावे। मूलमन्त्रसे इष्टदेवकी मूर्ति बनाकर उसमें भगवान्‌का आवाहन और प्रतिष्ठा करके साधक विमलादि शक्तियोंसे संयुक्त वैष्णवपीठपर उनकी पूजा करे। भगवान् श्रीरामके वामभागमें बैठी हुई सीतादेवीकी उन्हींके मन्त्रसे पूजा करनी चाहिये। 'श्रीसीतायै स्वाहा' यह जानकी-मन्त्र है। भगवान् श्रीरामके अग्रभागमें शार्ङ्गधनुषकी पूजा करके दोनों पार्श्वभागोंमें बाणोंकी अर्चना करे। केसरोंमें छः अङ्गोंकी पूजा करके दलोंमें हनुमान् आदिकी अर्चना करे। हनुमान्, सुग्रीव, भरत, विभीषण, लक्ष्मण, अङ्गद, शत्रुघ्न तथा जाम्बवान्- इनका क्रमशः पूजन करना चाहिये। हनुमान्‌जी भगवान्‌के आगे पुस्तक लेकर बाँच रहे हैं। श्रीरामके दोनों पार्श्वमें भरत और शत्रुघ्न चंवर लेकर खड़े हैं। लक्ष्मणजी पीछे खड़े होकर दोनों हाथोंसे भगवान्‌के ऊपर छत्र लगाये हुए हैं। इस प्रकार ध्यानपूर्वक उन सबकी पूजा करनी चाहिये। तदनन्तर अष्टदलोंके अग्रभागमें सृष्टि, जयन्त, विजय, सुराष्ट्र, राष्ट्रपाल (अथवा राष्ट्रवर्धन), अकोप, धर्मपाल तथा सुमन्त्रकी पूजा करके उनके बाह्यभागमें इन्द्र आदि देवताओंका आयुधोंसहित पूजन करे। इस प्रकार भगवान् श्रीरामकी आराधना करके मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है। घृताप्त शतपर्वीसे आहुति करनेवाला पुरुष दीर्घायु तथा नीरोग होता है।

लाल कमलोंके होमसे मनोवाञ्छित धन प्राप्त होता है। पलाशके फूलोंसे हवन करके मनुष्य मेधावी होता है। जो प्रतिदिन प्रातःकाल पूर्वोक्त षडक्षरमन्त्रसे अभिमन्त्रित जल पीता है, वह एक वर्षमें कविसम्राट् हो जाता है। श्रीराममन्त्रसे अभिमन्त्रित अन्न भोजन करे। इससे बड़े-बड़े रोग शान्त हो जाते हैं। रोगके लिये बतायी हुई ओषधिका उक्त मन्त्रद्वारा हवन करनेसे मनुष्य क्षणभरमें रोगमुक्त हो जाता है। प्रतिदिन दूध पीकर नदीके तटपर या गोशालामें एक लाख जप करे और घृतयुक्त खीरसे आहुति करे तो वह मनुष्य विद्यानिधि होता है। जिसका आधिपत्य (प्रभुत्व) नष्ट हो गया है, ऐसा मनुष्य यदि शाकाहारी होकर जलके भीतर एक लाख जप करे और बेलके फूलोंकी दशांश आहुति दे तो उसी समय वह अपनी खोयी हुई प्रभुता पुनः प्राप्त कर लेता है। इसमें संशय नहीं है। गङ्गातटके समीप उपवासपूर्वक रहकर मनुष्य यदि एक लाख जप करे और त्रिमधुयुक्त कमलों अथवा बेलके फूलोंसे दशांश आहुति करे तो राज्यलक्ष्मी प्राप्त कर लेता है। मार्गशीर्षमासमें कन्द-मूल फलके आहारपर रहकर जलमें खड़ा हो एक लाख जप करे और प्रज्वलित अग्निमें खीरसे दशांश होम करे तो उस मनुष्यको भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके समान पुत्र एवं पौत्र प्राप्त होता है।

इस मन्त्रराजके और भी बहुत-से प्रयोग हैं। पहले षट्‌कोण बनावे। उसके बाह्यभागमें अष्टदल कमल अङ्कित करे। उसके भी बाह्यभागमें द्वादशदल कमल लिखे। छः कोणोंमें विद्वान् पुरुष मन्त्रके छः अक्षरोंका उल्लेख करे। अष्टदल कमलमें भी प्रणवसम्पुटित उक्त मन्त्रके आठ अक्षरोंका उल्लेख करे। द्वादशदल कमलमें कामबीज (क्लीं) लिखे। मध्यभागमें मन्त्रसे आवृत नामका उल्लेख करे। बाह्यभागमें सुदर्शन मन्त्रसे और दिशाओंमें युग्मबीज (रां श्रीं) से यन्त्रको आवृत करे। उसका भूपुर वज्रसे सुशोभित हो। कोण कन्दर्प, अंकुश, पाश और भूमिसे सुशोभित हो। यह यन्त्रराज माना गया है। भोजपत्रपर अष्टगन्धसे ऊपर बताये अनुसार यन्त्र लिखकर छः कोणोंके ऊपर दलोंका आवेष्टन रहे। अष्टदल कमलके केसरोंमें विद्वान् पुरुष युग्म बीजसे आवृत दो-दो स्वरोंका उल्लेख करे। यन्त्रके बाह्यभागमें मातृकावर्णांका उल्लेख करे। साथ ही प्राण-प्रतिष्ठाका मन्त्र भी लिखे। मन्त्रोपासक किसी शुभ दिनको कण्ठमें, दाहिनी भुजामें अथवा मस्तकपर इस यन्त्रको धारण करे। इससे वह सम्पूर्ण पातकोंसे मुक्त हो जाता है। स्व बीज (रां), काम (क्लीं), सत्य (हीं), वाक् (ऐं), लक्ष्मी (श्रीं), तार (ॐ) इन छः प्रकारके बीजोंसे पृथक् पृथक् जुड़नेपर पाँच वर्षोंका 'रामाय नमः' मन्त्र छः भेदोंसे युक्त षडक्षर होता है। (यथा- 'रां रामाय नमः, क्लीं रामाय नमः, ह्रीं रामाय नमः' इत्यादि) यह छः प्रकारका षडक्षर मन्त्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों फलोंको देनेवाला है। 

इन छहों के क्रमशः ब्रह्मा, सम्मोहन, सत्य, दक्षिणामूर्ति, अगस्त्य तथा श्रीशिव- ये ऋषि बताये गये हैं। इनका छन्द गायत्री है, देवता श्रीरामचन्द्रजी हैं, आदिमें लगे हुए रां, वर्ली आदि बीज हैं और अन्तिम नमः पद शक्ति है। मन्त्रके छः अक्षरोंसे षडङ्ग न्यास करना चाहिये। अथवा छः दीर्घ स्वरोंसे युक्त बीजाक्षरोंद्वारा न्यास करे। मन्त्रके अक्षरोंका पूर्ववत् न्यास करना चाहिये।

ध्यान ध्यायेत्कल्पतरोर्मूले सुवर्णमयमण्डपे। 
पुष्पकाख्यविमानान्तः सिंहासनपरिच्छदे ॥

पद्ये वसुदले देवमिन्द्रनीलसमप्रभम्।
वीरासनसमासीनं ज्ञानमुद्रोपशोभितम् ॥

वामोरुन्यस्ततद्धस्तं सीतालक्ष्मणसेवितम् । 
रत्नाकल्पं विभुं ध्यात्वा वर्णलक्षं जपेन्मनुम् ॥

यद्वा स्मारादिमन्त्राणां जयाभं च हरिं स्मरेत्।

भगवान्‌का इस प्रकार ध्यान करे। कल्पवृक्षके नीचे एक सुवर्णका विशाल मण्डप बना हुआ है। उसके भीतर पुष्पक विमान है, उस विमानमें एक दिव्य सिंहासन बिछा हुआ है। उसपर अष्टदल कमलका आसन है, जिसके ऊपर इन्द्रनील मणिके समान श्याम कान्तिवाले भगवान् श्रीरामचन्द्र वीरासनसे बैठे हुए हैं। उनका दाहिना हाथ ज्ञानमुद्रासे सुशोभित है और बायें हाथको उन्होंने बायीं जाँघपर रख छोड़ा है। भगवती सीता तथा सेवाव्रती लक्ष्मण उनकी सेवामें जुटे हुए हैं। वे सर्वव्यापी भगवान् रत्नमय आभूषणोंसे विभूषित हैं। इस प्रकार ध्यान करके छः अक्षरोंकी संख्याके अनुसार छः लाख मन्त्र जप करे अथवा क्लीं आदिसे युक्त मन्त्रोंके साधनमें जयाभ श्रीहरिका चिन्तन करे।
पूजन तथा लौकिक प्रयोग सब पूर्वोक्त षडक्षर-मन्त्रके ही समान करने चाहिये। 'ॐ रामचन्द्राय नमः', 'ॐ रामभद्राय नमः ।' ये दो अष्टाक्षर मन्त्र हैं। इनके अन्तमें भी 'ॐ' जोड़ दिया जाय तो ये नवाक्षर हो जाते हैं। इनका सब पूजनादि कर्म मन्त्रोपासक षडक्षर-मन्त्रकी ही भाँति करे। 'हुं जानकीवल्लभाय स्वाहा' यह दस अक्षरोंवाला महामन्त्र है। इसके वसिष्ठ ऋषि, स्वराट् छन्द, सीतापति देवता, हुं बीज तथा स्वाहा शक्ति है (इन सबका यथास्थान न्यास करना चाहिये)। क्लीं बीजसे क्रमशः षडङ्गन्यास करे। मन्त्रके दस अक्षरोंका क्रमशः मस्तक, ललाट, भ्रूमध्य, तालु, कण्ठ, हृदय, नाभि, ऊरु, जानु और चरण-इन दस अङ्गोंमें न्यास करे।

ध्यान

अयोध्यानगरे रत्नचित्रसौवर्णमण्डपे। 
मन्दारपुष्पैराबद्धविताने तोरणान्विते ॥

सिंहासनसमासीनं पुष्यकोपरि राघवम्। 
रक्षोभिर्हरिभिर्देवैः सुविमानगतैः शुभैः ॥

संस्तूयमानं मुनिभिः प्रद्वैश्च परिसेवितम् । 
सीतालंकृतवामाङ्गं लक्ष्मणेनोपशोभितम् ॥

श्यामं प्रसन्नवदनं सर्वाभरणभूषितम् ।

दिव्य अयोध्या नगरमें रत्नोंसे चित्रित एक सुवर्णमय मण्डप है, जिसमें मन्दारके फूलोंसे चंदोवा बनाया गया है। उसमें तोरण लगे हुए हैं, उसके भीतर पुष्पक विमानपर एक दिव्य सिंहासनके ऊपर राघवेन्द्र श्रीराम बैठे हुए हैं। उस सुन्दर विमानमें एकत्र हो शुभस्वरूप देवता, वानर, राक्षस और विनीत महर्षिगण भगवान्‌की स्तुति और परिचर्या करते हैं। श्रीराघवेन्द्रके वाम भागमें भगवती सीता विराजमान हो उस वामाङ्गकी शोभा बढ़ाती हैं। भगवान्‌ का दाहिना भाग लक्ष्मणजीसे सुशोभित है, श्रीरघुनाथजीकी कान्ति श्याम है, उनका मुख प्रसन्न है तथा वे समस्त आभूषणों से विभूषित हैं।इस प्रकार ध्यान करके मन्त्रोपासक एकाग्रचित्त हो दस लाख जप करे। कमल पुष्पोंद्वारा दशांश होम और पूजन षडक्षर मन्त्रके समान है। 'रामाय धनुष्याणये स्वाहा।' यह दशाक्षर मन्त्र है। इसके ब्रह्मा ऋषि हैं, विराट् छन्द है तथा राक्षसमर्दन श्रीरामचन्द्रजी देवता कहे गये हैं।

मन्त्रका आदि अक्षर अर्थात् 'रां' यह बीज है और स्वाहा शक्ति है। बीजके द्वारा षडङ्ग न्यास करे। वर्णन्यास, ध्यान, पुरश्चरण तथा पूजन आदि कार्य दशाक्षर- मन्त्रके लिये पहले बताये अनुसार करे। इसके जपमें धनुष-बाण धारण करनेवाले भगवान् श्रीरामका ध्यान करना चाहिये। तार (ॐ) के पश्चात् 'नमो भगवते रामचन्द्राय' अथवा 'रामभद्राय' ये दो प्रकारके द्वादशाक्षर-मन्त्र हैं। इनके ऋषि और ध्यान आदि पूर्ववत् हैं। श्रीपूर्वक, जयपूर्वक तथा जय-जयपूर्वक 'राम' नाम हो। यह (श्रीराम जय राम जय जय राम) तेरह अक्षरोंका मन्त्र है। इसके ब्रह्मा ऋषि, विराट् छन्द तथा पाप-राशिका नाश करनेवाले भगवान् श्रीराम देवता कहे गये हैं। इसके तीन पदोंकी दो-दो आवृत्ति करके षडङ्ग-न्यास करे। ध्यान-पूजन आदि सब कार्य दशाक्षर मन्त्रके समान करे। साथ पुष्पक विमानमें सिंहासनपर बैठे हैं। उनका मस्तक जटाओंके मुकुटसे सुशोभित है। उनका वर्ण श्याम है और उन्होंने धनुष-बाण धारण कर रखा है। उनकी विजयके उपलक्षमें निशान, भेरी, पटह, शङ्ख और तुरही आदिकी ध्वनियोंके साथ- साथ नृत्य आरम्भ हो गया है। चारों ओर जय-

ध्यान

निःशाणभेरीपटहशङ्खतुर्यादिनिःस्वनैः॥
प्रवृत्तनृत्ये परितो जयमङ्गलभाषिते ।

चन्दनागुरुकस्तूरीकर्पूरादिसुवासिते॥
 सिंहासने समासीनं पुष्पकोपरि राघवम् ।

सौमित्रिसीतासहितं जटामुकुटशोभितम् ॥
चापबाणधरं श्यामं ससुग्रीवविभीषणम्।

हत्वा रावणमायान्तं कृतत्रैलोक्यरक्षणम् ।।

भगवान् राघवेन्द्र रावण को मारकर त्रिलोकी की रक्षा करके लौट रहे हैं। वे सीता और लक्ष्मण  साथ पुष्पक विमानमें सिंहासनपर बैठे हैं। उनका मस्तक जटाओंके मुकुटसे सुशोभित है। उनका वर्ण श्याम है और उन्होंने धनुष-बाण धारण कर रखा है। उनकी विजयके उपलक्षमें निशान, भेरी, पटह, शङ्ख और तुरही आदिकी ध्वनियोंके साथ- साथ नृत्य आरम्भ हो गया है। चारों ओर जय- जयकार तथा मङ्गल-पाठ हो रहा है। चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और कपूर आदिकी मधुर गन्ध छा रही है। इस प्रकार ध्यान करके मन्त्रोपासक मन्त्रकी अक्षर-संख्याके अनुसार अठारह लाख जप करे और घृतमिश्रित खीरकी दशांश आहुति करके पूर्ववत् पूजन करे।

ॐ रां श्रीं रामभद्र महेष्वास रघुवीर नृपोत्तम । 
दशास्यान्तक मां रक्ष देहि मे परमां श्रियम् ॥

यह पैंतीस अक्षरोंका मन्त्र है। बीजाक्षरों से विलग होनेपर बत्तीस अक्षरोंका मन्त्र होता है। यह अभीष्ट फल देनेवाला है। इसके विश्वामित्र ऋषि, अनुष्टुप् छन्द, रामभद्र देवता, रां बीज और श्रीं शक्ति है। मन्त्रके चार पादोंके आदिमें तीनों बीज लगाकर उन पादों तथा सम्पूर्ण मन्त्रके द्वारा मन्त्रज्ञ पुरुष पञ्चाङ्ग-न्यास करके मन्त्रके एक- एक अक्षरका क्रमशः समस्त अङ्गोंमें न्यास करे। इसके ध्यान और पूजन आदि सब कार्य। पूर्ववत् करे। इस मन्त्रका पुरश्चरण तीन लाखका है। इसमें खीरसे हवन करनेका विधान है। पीतवर्णवाले श्रीरामका ध्यान करके एकाग्रचित्त हो एक लाख जप करे, फिर कमलके फूलोंसे दशांश हवन करके मनुष्य धन पाकर अत्यन्त धनवान् हो जाता है। 'ॐ ह्रीं श्रीं श्री दाशरथाय नमः' यह ग्यारह अक्षरोंका मन्त्र है। इसके ऋषि आदि तथा पूजन आदि पूर्ववत् हैं। 'त्रैलोक्यनाथाय नमः' यह आठ अक्षरोंका मन्त्र है। इसके भी न्यास, ध्यान और पूजन आदि सब कार्य पूर्ववत् हैं। 'रामाय नमः' यह पञ्चाक्षर मन्त्र है। इसके ऋषि, ध्यान और पूजन आदि सब कार्य षडक्षर मन्त्रकी ही भाँति होते हैं। 'रामचन्द्राय स्वाहा', 'रामभद्राय स्वाहा'- ये दो मन्त्र कहे गये हैं। इसके ऋषि और पूजन आदि पूर्ववत् हैं। अग्नि (र्) शेष (आ) से युक्त हो और उसका मस्तक चन्द्रमा -से विभूषित हो तो वह रघुनाथजीका एकाक्षर- मन्त्र (रां) है। जो द्वितीय कल्पवृक्षके समान है। इसके ब्रह्मा ऋषि, गायत्री छन्द और श्रीराम देवता हैं। छः दीर्घ स्वरोंसे युक्त मन्त्रद्वारा षडङ्ग न्यास करे।

सरयूतीरमन्दारवेदिकापङ्कजासने श्यामं वीरासनासीनं ज्ञानमुद्रोपशोभितम् ।

वामोरुन्यस्ततद्धस्तं सीतालक्ष्मणसंयुतम् ।। अवेक्षमाणमात्मानं मन्मथामिततेजसम् ।

शुद्धस्फटिकसंकाशं केवलं मोक्षकाङ्क्षया ।। चिन्तयेत् परमात्मानमृतुलक्षं जपेन्मनुम् ।

'सरयूके तटपर मन्दार (कल्पवृक्ष) के नीचे एक वेदिका बनी हुई है और उसके ऊपर एक कमल का आसन बिछा हुआ है। जिसपर श्यामवर्णवाले भगवान् श्रीराम वीरासनसे बैठे हैं। उनका दाहिना हाथ ज्ञानमुद्रासे सुशोभित है। उन्होंने अपने बायें ऊरुपर बायाँ हाथ रख छोड़ा है। उनके वामभागमें सीता और दाहिने भागमें लक्ष्मणजी हैं। भगवान् श्रीरामका अमित तेज कामदेवसे भी अत्यधिक सुन्दर है। वे शुद्ध स्फटिकके समान निर्मल तथा अद्वितीय आत्माका ध्यानद्वारा साक्षात्कार कर रहे हैं। ऐसे परमात्मा श्रीरामका केवल मोक्षकी इच्छासे चिन्तन करे और छः लाख मन्त्रका जप करे।' इसके होम और नित्य-पूजन आदि सब कार्य षडक्षर-मन्त्रकी ही भाँति हैं। वह्नि (र्), शेष (आ) के आसनपर विराजमान हो और उसके बाद भान्त (म) हो तो केवल दो अक्षरका मन्त्र (राम) होता है। इसके ऋषि, ध्यान और पूजन आदि सब कार्य एकाक्षर मन्त्रकी ही भाँति जानने चाहिये। तार (ॐ), माया (हीं), रमा (श्रीं), अनङ्ग (क्लीं), अस्त्र (फट्) तथा स्व बीज (रां) इनके साथ पृथक् पृथक् जुड़ा हुआ द्वयक्षर मन्त्र (राम) छः भेदोंसे युक्त त्र्यक्षर मन्त्रराज होता है। यह सम्पूर्ण अभीष्ट पदार्थोंको देनेवाला है। द्वयक्षर मन्त्रके अन्तमें 'चन्द्र' और 'भद्र' शब्द जोड़ा जाय तो दो प्रकारका चतुरक्षर मन्त्र होता है। इन सबके ऋषि, ध्यान और पूजन आदि एकाक्षरमन्त्रमें बताये अनुसार हैं। तार (ॐ), चतुर्थ्यन्त राम शब्द (रामाय), वर्म (हुं), अस्त्र (फट्), वह्निवल्लभा (स्वाहा) - यह (ॐ रामाय हुं फट् स्वाहा) आठ अक्षरोंका महामन्त्र है।

इसके ऋषि और पूजन आदि षडक्षर-मन्त्रके समान हैं। 'तार (ॐ) हृत् (नमः) ब्रह्मण्यसेव्याय रामायाकुण्ठतेजसे। उत्तमश्लोकधुर्याय स्व (न्य) भृगु (स्) कामिका (त) दण्डार्पिताङ्ङ्घये।' यह ('ॐ नमः ब्रह्मण्यसेव्याय रामायाकुण्ठतेजसे । उत्तमश्लोक- धुर्याय न्यस्तदण्डार्पिताद्धये') तैंतीस अक्षरोंका मन्त्र कहा गया है। इसके शुक्र ऋषि, अनुष्टुप्छन्द और श्रीराम देवता हैं। इस मन्त्रके चारों पादों तथा सम्पूर्ण मन्त्रसे पञ्चाङ्ग न्यास करना चाहिये। शेष सब कार्य षडक्षर-मन्त्रकी भाँति करे। जो साधक मन्त्र सिद्ध कर लेता है, उसे भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं। उसके सब पापोंका नाश हो जाता है। 'दाशरथाय विद्महे। सीतावल्लभाय धीमहि। तन्नो रामः प्रचोदयात्।' यह राम-गायत्री कही गयी है, जो सम्पूर्ण मनोवाञ्छित फलोंको देनेवाली है।पद्मा (श्रीं) डे विभक्त्यन्त सीता शब्द (सीतायै) और अन्तमें ठद्वय (स्वाहा)- यह (श्री सीतायै स्वाहा) षडक्षर सीता-मन्त्र है। इसके वाल्मीकि ऋषि, गायत्री छन्द, भगवती सीता देवता, श्रीं बीज तथा 'स्वाहा' शक्ति है। छः दीर्घस्वरोंसे युक्त बीजाक्षरद्वारा षडङ्ग-न्यास करे।

ततो ध्यायेन्महादेवीं सीतां त्रैलोक्यपूजिताम् । 
तप्तहाटकवर्णाभां पद्मयुग्मं करद्वये ॥

सद्रत्नभूषणस्फूर्जदिव्यदेहां शुभात्मिकाम् । 
नानावस्त्रां शशिमुखीं पद्माक्षीं मुदितान्तराम् ॥

पश्यन्तीं राघवं पुण्यं शय्यायां षड्‌गुणेश्वरीम् ।

'तदनन्तर त्रिभुवनपूजित महादेवी सीताका ध्यान करे। तपाये हुए सुवर्णके समान उनकी कान्ति है। उनके दोनों हाथोंमें दो कमलपुष्प शोभा पा रहे हैं। उनका दिव्य-शरीर उत्तम रत्नमय आभूषणोंसे प्रकाशित हो रहा है। वे मङ्गलमयी सीता भाँति- भौतिके वस्त्रोंसे सुशोभित हैं। उनका मुख चन्द्रमाको लज्जित कर रहा है। नेत्र कमलोंकी शोभा धारण करते हैं। अन्तःकरण आनन्दसे उल्लसित है। वे ऐश्वर्य आदि छः गुणोंकी अधीश्वरी हैं और शय्यापर अपने प्राणवल्लभ पुष्पमय श्रीराघवेन्द्रको अनुरागपूर्ण दृष्टिसे निहार रही हैं।' इस प्रकार ध्यान करके मन्त्रोपासक छः लाख मन्त्रका जप करे और खिले हुए कमलोंद्वारा दशांश आहुति दे। पूर्वोक्त पीठपर उनकी पूजा करनी चाहिये। मूलमन्त्रसे मूर्ति निर्माण करके उसमें जनकनन्दिनी किशोरीजीका आवाहन और स्थापन हैं,

करे। फिर विधिवत् पूजन करके उनके दक्षिणभागमें भगवान् श्रीरामचन्द्रजीकी अर्चना करे। तत्पश्चात् अग्रभागमें हनुमान्जीकी और पृष्ठभागमें लक्ष्मीजीकी पूजा करके छः कोणोंमें हृदयादि अङ्गोंका पूजन करे। फिर आठ दलोंमें मुख्य मन्त्रियोंका, उनके बाह्यभागमें इन्द्र आदि लोकेश्वरोंका और उनके भी बाह्यभागमें वज्र आदि आयुधोंका पूजन करके मनुष्य सम्पूर्ण सिद्धियोंका स्वामी हो जाता है। अधिक कहनेसे क्या लाभ ? श्रीकिशोरीजीकी आराधनासे मनुष्य सौभाग्य, पुत्र-पौत्र, परम सुख, धन-धान्य तथा मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इन्दु (अनुस्वार), युक्त शक्र (ल) तथा 'लक्ष्मणाय नमः' यह (लं लक्ष्मणाय नमः) सात अक्षरोंका मन्त्र है। इसके अगस्त्य ऋषि, गायत्री छन्द, महावीर लक्ष्मण देवता, 'लं' बीज और 'नमः' शक्ति है। छः दीर्घ स्वरोंसे युक्त बीजद्वारा षडङ्ग-न्यास करे। 

ध्यान

द्विभुजं स्वर्णरुचिरतनुं पद्मनिभेक्षणम् ।
धनुर्बाणकरं रामं सेवासंसक्तमानसम् ॥

'जिनके दो भुजाएँ हैं, जिनकी अङ्गकान्ति सुवर्णके समान सुन्दर है। नेत्र कमलदलके सदृश हैं। हाथोंमें धनुष-बाण हैं तथा श्रीरामचन्द्रजीकी सेवामें जिनका मन सदा संलग्न रहता है (उन श्रीलक्ष्मणजीकी मैं आराधना करता हूँ)।'
इस प्रकार ध्यान करके मन्त्रोपासक सात लाख जप करे और मधुसे सींची हुई खीरसे आहुति देकर श्रीरामपीठपर श्रीलक्ष्मणजीका पूजन करे। श्रीरामजीकी ही भाँति श्रीलक्ष्मणजीका भी पूजन किया जाता है। यदि श्रीरामचन्द्रजीके पूजनका सम्पूर्ण फल प्राप्त करनेकी निश्चित इच्छा हो तो यत्नपूर्वक श्रीलक्ष्मणजीका आदरसहित पूजन करना चाहिये। श्रीरामचन्द्रजीके बहुत-से भिन्न-भिन्न मन्त्र हैं जो सिद्धि देनेवाले हैं। अतः उनके साधकोंको सदा श्रीलक्ष्मणजीकी शुभ आराधना करनी चाहिये। मुक्तिकी इच्छावाले मनुष्यको एकाग्रचित्त होकर आलस्यरहित हो लक्ष्मणजीके मन्त्रका एक हजार आठ या एक सौ आठ बार जप करना चाहिये। जो नित्य एकान्तमें बैठकर लक्ष्मणजीके मन्त्रका जप करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है और सम्पूर्ण कामनाओंको प्राप्त कर लेता है। यह लक्ष्मण मन्त्र जयप्रधान है। राज्यकी प्राप्तिका एकमात्र साधन है।

जो नित्यकर्म करके शुद्ध भावसे तीनों समय लक्ष्मणजीके मन्त्रका जप करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णुके परम पदको प्राप्त होता है। जो विधिपूर्वक मन्त्रकी दीक्षा लेकर सगुणोंसे युक्त और पापरहित हो अपने आचारका नियमपूर्वक पालन करता, मनको वशमें रखता और घरमें रहते हुए भी जितेन्द्रिय होता है, इहलोकके भोगोंकी इच्छा न रखकर निष्कामभावसे भगवान् लक्ष्मणका पूजन करता है, वह समस्त पुण्य- पापके समुदायको दग्ध करके शुद्धचित्त हो पुनरागमनके चक्करमें न पड़कर सनातनपदको प्राप्त होता है। सकाम भाववाला पुरुष मनोवाञ्छित वस्तुओंको पाकर और मनके अनुरूप भोगोंका उपभोग करके दीर्घ कालतक पूर्वजन्मोंकी स्मृतिसे युक्त रहकर भगवान् विष्णुके परम धाममें जाता है। निद्रा (भ), चन्द्र (अनुस्वार) से युक्त हो और उसके बाद 'भरताय नमः' ये दो पद हों तो सात अक्षरका मन्त्र होता है। इस 'भं भरताय नमः' मन्त्रके ऋषि और पूजन आदि पूर्ववत् हैं। वक (श), इन्दु (अनुसार) से युक्त हो उसके बाद डे विभक्त्यन्त शत्रुघ्न शब्द हो और अन्तमें हृदय (नमः) हो तो 'शं शत्रुघ्नाय नमः' यह सात अक्षरोंका शत्रुघ्न मन्त्र होता है, जो सम्पूर्ण मनोरथोंकी सिद्धि प्रदान करनेवाला है।

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