अघोर की उत्पत्ति का विवरण,अघोरी की महिमा का वर्णन | Aghor Kee Utpatti Ka Vivaran,Aghoree Kee Mahima Ka Varnan

अघोर की उत्पत्ति का विवरण,Aghor Kee Utpatti Ka Vivaran

सूतजी बोले- उस पीतवर्ण कल्प के बीत जाने पर प्रवृत्त नाम का काले वर्ण वाला कल्प हुआ। उसमें देवताओं के हजार वर्ष के समय में जब समस्त ब्रह्माण्ड एक समुद्र से ही व्याप्त था और चारों ओर जल ही जल था, तब ब्रह्मा ने प्रजा रचने की इच्छा व्यक्त की। तब दुखी होकर ब्रह्मा ने पुत्र की कामना से चिन्ता करते हुए कृष्ण वर्ण वाले भगवान का ध्यान किया। इसके बाद एक महान तेजस्वी कुमार प्रकट हुआ जो काले रंग का, महावीर और अपने तेज से प्रकाशित था। वह काले वस्त्र पहने हुए काला सिर पर उष्णीश और काला जनेऊ धारण किये था। काली मालायें तथा मुकुट और काले रंग का लेप अपने अंगों पर लगाये हुए था।


तब उस घोर पराक्रम वाले महात्मा अघोर रूप कुमार को देव देवेश जानकर ब्रह्मा जी ने उनकी वन्दना की। प्राणायाम में तत्पर होकर महेश्वर का हृदय में ध्यान करने पर भगवान महेश्वर प्रसन्न हुए और उन ब्रह्म स्वरूप अघोर जो घोर पराक्रम वाले हैं, ब्रह्मा के ध्यान करने पर दर्शन दिये और उनके पास से काले वर्ण वाले काले, चन्दन से लेप किये हुए चार महान तेजस्वी कुमारों का प्रादुर्भाव हुआ। वे सभी कृष्ण वर्ण के काली शिखा से युक्त और काले वस्त्र धारण किये हुए थे। इसके बाद हजारों वर्ष तक योग में तत्पर हुये उपासना की। योग में तत्पर हुये वे सभी मन के द्वारा योगेश्वर शिव में प्रवेश करके ईश्वर के निर्मल निर्गुण स्थान को प्राप्त हुए। इस प्रकार योग के द्वारा वे तथा दूसरे मनीषी लोग महादेव का ध्यान करके अविनाशी रुद्र भगवान को प्राप्त करते हैं।

अघोरी की महिमा का वर्णन 

सूतजी बोले- इसके बाद कृष्ण वर्ण कल्प के बीत जाने पर देवाधिदेव ब्रह्म स्वरूप अघोरेश को ब्रह्मा जी ने प्रसन्न किया, तब वे सन्तुष्ट हुए। भगवान ब्रह्मा जी से अनुग्रह पूर्वक बोले- हे महाभाग ! मैं इसी रूप से ब्रह्महत्या आदि घोर पापों को नष्ट कर देता हूँ। हे पितामह ब्रह्मा जी! मन, वाणी और कर्म के द्वारा बुद्धि पूर्वक किये तथा स्वाभाविक रूप से होने वाले, माता के शरीर से उत्पन्न तथा पिता की देह से उत्पन्न सभी पापों को संहार कर देता हूँ, इसमें तनिक भी संशय नहीं है।

अघोर नाम के मन्त्र को एक लाख जप कर मनुष्य ब्रह्महत्या से छूट जाते हैं। उससे आधा फल वाणी के द्वारा तथा उससे आधा फल मन के द्वारा जपने से मिलता है। चार गुना बुद्धि पूर्वक पापी के जपने से तथा क्रोधी के द्वारा आठ गुना जपने से, लाख गुना जपने से वीर हत्यारा, करोड़ गुना जपने से भ्रूण हत्यारा, दस करोड़ गुना जपने से माता का वध करने वाला शुद्ध हो जाता है, इसमें संशय नहीं है। गौ हत्यारा, दूसरे का अहसान न मानने वाला, स्त्री का वध करने वाला, दस करोड़ मन्त्र का नाम जप करने वाला पाप से मुक्त हो जाता है, इसमें सन्देह नहीं है। सुरापान करने वाले को एक लाख जप द्वारा तथा बुद्धि पूर्वक पाप करने वाले भी इसके जप से छूट जाते हैं। निश्चय ही और आधा लाख जप करने से वारुणी का पान करने वाला पापी भी पाप मुक्त हो जाता है। स्नान, जप, हवन आदि न करने वाला ब्राह्मण एक हजार जप करने से शुद्ध हो जाता है। ब्राह्मण की चोरी करने वाला तथा सोना चुराने वाला अधम मनुष्य भी दस लाख मानसी जप द्वारा पापों से छूट जाता है। गुरु पत्नी में रत तथा माता का वध करने वाला नीच जन भी तथा ब्रह्म हत्यारा भी इस अघोर मन से जपने से पाप से मुक्त होता है। पापियों के साथ रहने वाले भी पापी के ही समान हैं। अतः वे भी दस करोड़ जप करने से पाप से मुक्त होते हैं। पापियों के साथ सम्पर्क करने वाले पापी भी एक लाख मानसी जप द्वारा शुद्ध हो जाते हैं। उपांशु जप चौगुना और वाणी के द्वारा बोलकर जप आठ गुना करना चाहिए। छोटे पापों के लिए इनसे आधा जप करना चाहिए।

ब्रह्महत्या, मदिरा पान, सोने की चोरी करने का और गुरु की शय्या पर शयन करने का जो पाप ब्राह्मण करे तो उसे रुद्र गायत्री और कपिला गौ के मूत्र द्वारा ही ग्रहण करना चाहिये। वह पापी ब्राह्मण "गन्ध द्वारा" आदि मन्त्र द्वारा गोबर को खावे तथा "तेजोऽसि शुक्रामित्य" मन्त्र से कपिला गाय का मूत्र पान। " अप्याय स्वा" आदि मन्त्र से साक्षात कपिला गौ के गव्य, दही, दूध का पंचामृत बनाकर पान करे। "देवस्य इति " मन्त्र से कुशा द्वारा जल को अपने शरीर पर छिड़के। पंच गव्य आदि को सोने के अथवा ताँबे के अथवा कमल के या पलाश (ढाक) के पत्ते के दोने में रख ले और सभी रत्नों की अथवा सोने की शलाका द्वारा उसे चलावे। अघोरेश मन्त्र का एक लाख जप करे तथा घी, चरु, तिल, जौ, चावल आदि से हर एक का अलग सात बार हवन करे। यदि अन्य सामग्री न हो तो घी से ही हवन करना चाहिए। हे ब्राह्मणो! अघोर के द्वारा भगवान को निमित्त करके हवन करने के बाद अघोर मन्त्र से ही स्नान करना चाहिये। आठ द्रोण घी से स्नान करने पर शुद्ध होता है। 

रात दिन में स्नान आदि करने के बाद उस पंचामृत को कुची से चला कर शिवजी के सामने ही पीवे। ब्राह्मण जप आदि करके तथा आचमन करके पवित्र होवे। इस प्रकार करने से कृतघ्न, ब्रह्म हत्यारा तथा भ्रूण हत्यारा (गर्भपात करने वाला), वीर घाती, गुरु घाती, मित्र के साथ विश्वासघात करने वाला, चोर, सोने की चोरी करने वाला, गुरु की शय्या पर सोने वाला, शराब पीने वाला, दूसरे की स्त्री में रत रहने वाला, ब्राह्मण का हत्यारा, गौ का हत्यारा, माता पिता का हत्यारा, देवताओं की निन्दा करने वाला, शिवलिंग को तोड़ने वाला तथा अन्य प्रकार से मानसिक पाप आदि करने वाला भी चाहे वह ब्राह्मण ही हो, पापों से मुक्त हो जाता है। अन्य भी वाणी या शरीर द्वारा हजारों पापों से इस विधान को करके मुक्त हो जाता है। इससे जन्म जन्मान्तरों के भी सभी पाप शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। यह अघोरेश का रहस्य मैंने आप लोगों के प्रसंग से सुना दिया। इसको नित्य द्विजाती मात्र जपने से सभी पापों से छूट जाते हैं।

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