यंत्र-मंत्र-तंत्र द्वारा शनि अनिष्ट निवारण,
यंत्र-मंत्र एवम् तंत्र द्वारा शनि कौ अनिष्टता का निवारण किया जा सकता है । यंत्रों एवम् मंत्रों में अपूर्व शक्ति निहित होती है। वैदिक विधि से, जप एवम् अनुष्ठान से शनि शांति एवम् अनिष्टता निवारण उपाय इस प्रकार है-
संक्षिप्त वैदिक विधि
शनि देव की पूजा, आराधना आरम्भ करने से पूर्व पूजन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री इकट्ठी कर लें । पूजन सामग्री में आम की लकड़ी से निर्मित काले रंग से रंगा हुआ सिंहासन अथवा लोहे का सिंहासन, काला वस्त्र, यजमान हेतु काला वस्त्र एक जोड़ा, एवम् काला अंगोछा, काला पुष्प, काले तिल, उड़द, सरसों का तेल, रुई, दीपक, काले तिल से बना लड्डू, अरबी, पंचपात्र, काला कम्बल, शहद, शक्कर, दही, गाय का दूध, हवन सामग्री, लौंग, इलायची, सूखे मेवे आदि। संभवत: वैदिक पूजन हेतु अपने पुरोहित (पंडित जी) से परामर्श कर लें। यथा संभव पूजन कार्य विद्वान ब्राह्मण से ही करायें।
पृजन विधि
दाहने हाथ की अंजुली में जल लेकर अपने शरीर पर छिड़के तत्पश्चात् दीपक प्रज्वलित करके शनिदेव की प्रतिमा के सम्मुख रखें और शनिदेव के स्वरूप का ध्यान करते हुए प्रतिमा के समक्ष पुष्प, चन्दन, बिल्व पत्र आदि चढ़ाएँ उसके बाद विधिपूर्वक कुशा कौ पवित्री धारण करके मस्तक पर चन्दन का तिलक लगायें | तिलक करते समय यह मंत्र पढ़ें-
“ॐ चन्दनस्य महत्व पुण्यं पवित्र पाप नाशनम्।
आपदं हरते नित्यं शनि देवः रितीस्थ सर्वदा।'!
आह्वान मंत्र
अष्टम्या रेवती समंविताया सौराष्ट्र जातं कश्यप गोत्र लोहवर्ण धनुराकृतिं मण्डलात्पश्चिमाशास्थं पश्चि माभिमुखं गृश्रवाहन संकर जातिं यमाधि दैवतं प्रजापति प्रत्यधि देवतं शनिमावाहयाम। ॐ भूभुर्व : स्व: शनेः इहागच्छ इहातिष्ठ इमं यज्ञमभिरक्ष॥
विनियोग मंत्र
शनिदेव का आवाहन करने के बाद संकल्प आदि करके निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए विनियोग करें “ॐ शन्नों देवी रिति मंत्रस्य दध्यंडाथर्वण ऋषि: गायत्री छन्दः शनिर्देवता आपो बीजं वर्तमान इति शक्ति: शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः ॥
विनियोग के पश्चात ऋष्यादिन्यास निम्नलिखित विधि से करें
ऋष्यादिनयात
- ॐ दध्यंडाथर्वण ऋषये नम: -शिरसि (सिर का स्पर्ष करें
- ॐ गायत्री छन्दसे नमः -मुखे (मुख का स्पर्श करें
- ॐ शनैए्चर देवतायै नम: -हृदय (हृदय का स्पर्श करें
- ॐ आपोबीजाय नम: - गुहय (गुहय भाग का स्पर्श करें
- ॐ वर्तमान शक्तयै नमः -पादयो: (दोनों पैरों का स्पर्श करें
करन्यास
- ॐ शन्नोदेवी रित्यं गुष्ठाभ्यां नम: । एक हाथ के अंगूठे से दूसरे अंगूठे का स्पर्श करें
- ॐ अभिष्टये तर्जनीभयां नम: । दोनों तर्जनी उंगलियों का स्पर्श करें
- ॐ आपो भवतन्तु मध्यमाभ्यां नम: । दोनों मध्यमा उंगली का एक दूसरे से स्पर्श करें
- ॐ पीतये अनामिकाभ्यां नम: । अनामिका उंगलियों का एक दूसरे से स्पर्श करें
- ॐ शंय्योरिति कनिष्ठिकाभ्यां नम: । कनिष्ठिका (छोटी) उंगली का एक दूसरे से स्पर्श करें
- ॐ अभिस्रवन्तु न: करतल कर पृष्ठाभ्यां नम: । दोनों हाथ का पृष्ठ भाग आपस में जोड़ें ।
हृदयादिन्यास
करन्यास करने के उपरान्त हृदयादिन्यास करैं-- ॐ शन्नोदेवी रिति हृदयाय नमः - हृदय का स्पर्श करें।
- ॐ अभिष्ठये शिरसे स्वाहा। सिर का स्पर्श करें।
- ॐ आपोभवन्तु शिखाये वषट्।- शिखा का स्पर्श करें।
- ॐ पीतये कवचाय हुम, ॐ शंय्यो रिति नेत्र त्रयाय वौषट। दोनों नेत्रों का स्पर्श
- ॐ अभिखवन्तु नः अस्त्राय फट्। सीने का स्पर्श करें
शनिदेव ध्यान मंत्र
नीलझ्युति: शूलधर: किरीटी गृध स्थितस्त्रास करो धनुष्मान।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रशान्तः सदाउसतु महयं वरदो महात्मा॥
- अर्थ
जो शरीर पर नीले वस्त्र, सिर पर मुकुट, हाथों में धनुष और शूल धारण किये हैं, जो गृध्र (गिध्द) पर विराजमान हैं वे चार भुजाधारी (चतुर्भुज) महात्मा (शनिदेव) हमारे लिए शान्त और शुभवर प्रदायक हों । ध्यान के बाद वैदिक मंत्रो का पाठ करते हुए शनिदेव को आसन, पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान जल, शुध्दोदक स्नान, वस्त्र समर्पण, यज्ञोपवीत, चन्दन लेपन, पुष्पमाला समर्पण, शमीपत्र समर्पण, दुर्वादल, धूप, दीप, नैवेद्य, पान-सुपारी आदि समर्पण करें ।
(विस्तृत शनिदेव पूजन विधान हेतु अमित पाकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित “शनि-उपासना' मंगाकर पढ़ें ) शनि देव को नैवेद्य आदि समर्पित करने के पश्चात् शनि कवच एवम् शनि स्त्रोत पाठ करें।
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