श्री राम नाम की महिमा तथा श्री राम के १०८ नाम का माहात्म्य,Shri Ram Naam Kee Mahima Tatha Shree Raam Ke 108 Naam Ka Maahaatmy
श्री राम नाम की महिमा तथा श्री राम के १०८ नाम का माहात्म्य
पार्वती जी ने कहा नाथ ! आपने उत्तम वैष्णव धर्म का भलीभाँति वर्णन किया। वास्तव में परमात्मा श्री विष्णु का स्वरूप गोपनीय से भी अत्यन्त गोपनीय है। सर्व देवव न्दित महेश्वर! मैं आपके प्रसाद से धन्य और कृतकृत्य हो गयी। अब मैं भी सनातन देव श्री हरिका पूजन करूँगी। महादेवजी बोले देवि ! बहुत अच्छा, बहुत अच्छा ! तुम सम्पूर्ण इन्द्रियों के स्वामी भगवान् लक्ष्मीपति का पूजन अवश्य करो। भद्रे! मैं तुम जैसी वैष्णवी पत्नीको पाकर अपनेको कृतकृत्य मानता हूँ। वसिष्ठजी कहते हैं तदनन्तर वामदेवजीके उपदेशानुसार पार्वतीजी प्रतिदिन श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करनेके पश्चात् भोजन करने लगीं। एक दिन परम मनोहर कैलासशिखरपर भगवान् श्रीविष्णुकी आराधना करके भगवान् शङ्करने पार्वतीदेवीको अपने साथ भोजन करनेके लिये बुलाया। तब पार्वतीदेवीने कहा- 'प्रभो ! मैं श्रीविष्णुसहस्त्रनामका पाठ करनेके पश्चात् भोजन करूँगी, तबतक आप भोजन कर लें।' यह सुनकर महादेवजीने हँसते हुए कहा - 'पार्वती ! तुम धन्य हो, पुण्यात्मा हो; क्योंकि भगवान् विष्णुमें तुम्हारी भक्ति है। देवि ! भाग्यके बिना श्रीविष्णु-भक्तिका प्राप्त होना बहुत कठिन है। सुमुखि ! मैं तो 'राम ! राम ! राम !' इस प्रकार जप करते हुए परम मनोहर श्रीराम-नाममें ही निरन्तर रमण किया करता हूँ। राम-नाम सम्पूर्ण . सहस्त्रनामके समान है। पार्वती! रकारादि जितने नाम हैं, उन्हें सुनकर रामनामकी आशङ्कासे मेरा मन प्रसन्न हो जाता है। अतः महादेवि ! तुम राम-नामका उच्चारण करके इस समय मेरे साथ भोजन करो।' यह सुनकर पार्वतीजीने राम-नामका उच्चारण करके भगवान् शङ्करके साथ बैठकर भोजन किया। इसके बाद उन्होंने प्रसन्नचित्त होकर पूछा- 'देवेश्वर ! आपने राम-नामको सम्पूर्ण सहस्रनामके तुल्य बतलाया है। यह सुनकर राम-नाममें मेरी बड़ी भक्ति हो गयी है; अतः भगवान् श्रीरामके यदि और भी नाम हों तो बताइये।'
महादेवजी बोले- पार्वती! सुनो, मैं श्री राम चन्द्र जी के नामों का वर्णन करता हूँ। लौकिक और वैदिक जितने भी शब्द है, वे सब श्रीरामचन्द्रजीके ही नाम हैं। किन्तु सहस्त्रनाम उन सबमें अधिक है और उन सहस्त्रना मों में भी श्री राम एक सौ आठ नामों की प्रधानता अधिक है। श्री विष्णु का एक-एक नाम ही सब वेदों से अधिक माना गया है। वैसे ही एक हजार नामों के समान अकेला श्री राम नाम माना गया है। पार्वती ! जो सम्पूर्ण मन्त्रों और समस्त वेदों का जप करना है, उसकी अपेक्षा कोटिगुना पुण्य केवल राम नाम से उपलब्ध होता है। शुभे अव श्री राम के उन मुख्य नार्मो का वर्णन सुनो, जिनका महर्षियोंने गान किया है।
श्री राम के १०८ नाम का माहात्म्य( Shri Ram Ke 108 Naam Ka Maahaatmy)
- ॐ श्रीरामः - जिनमें योगीजन रमण करते हैं, ऐसे सच्चिदानन्दघनस्वरूप श्रीराम अथवा सीता-सहित राम ।
- रामचन्द्रः- चन्द्रमाके समान आनन्ददायी एवं मनोहर राम।
- रामभद्रः - कल्याणमय राम ।
- शाश्वतः - सनातन भगवान्।
- राजीवलोचनः - कमलके समान नेत्रोंवाले ।
- श्रीमान् राजेन्द्रः- श्रीसम्पन्न राजाओंके भी राजा, चक्रवर्ती सम्राट्।
- रघुपुङ्गवः - रघुकुलमें सर्वश्रेष्ठ ।
- जानकीवल्लभः - जनककिशोरी सीताके प्रियतम ।
- जैत्रः - विजयशील।
- जितामित्रः - शत्रुओंको जीतनेवाले।
- जनार्दनः सम्पूर्ण मनुष्योंद्वारा याचना करने योग्य ।
- विश्वामित्रप्रियः - विश्वामित्रजीके प्रियतम।
- दान्तः - जितेन्द्रिय ।
- शरण्यत्राणतत्परः- शरणागतोंकी रक्षामें संलग्न ।
- बालिप्रमथनः - बालि नामक वानरको मारनेवाले।
- वाग्मी - अच्छे वक्ता।
- सत्यवाक् सत्यवादी।
- सत्यविक्रमः - सत्य-पराक्रमी ।
- सत्यव्रतः सत्यका दृढ़तापूर्वक पालन करनेवाले।
- व्रतफलः सम्पूर्ण व्रतोंके प्राप्त होने योग्य फलस्वरूप ।
- सदा हनुमदाश्रयः निरन्तर हनुमान्जीके आश्रय अथवा हनुमान् जी के हृदयकमल में सदा निवास करने वाले।
- कौसलेयः - कौसल्या जी के पुत्र ।
- खरध्वंसी-खर नामक राक्षसका नाश करनेवाले।
- विराधवध-पण्डितः - विराध नामक दैत्यका वध करनेमें कुशल।
- विभीषणपरित्राता- विभीषणके रक्षक ।
- दशग्रीवशिरोहरः- दशशीश रावणके मस्तक काटनेवाले ।
- सप्ततालप्रभेत्ता सात तालवृक्षोंको एक ही बाणसे बींध डालनेवाले।
- हरकोदण्ड - खण्डनः - जनकपुरमें शिवजीके धनुषको तोड़नेवाले ।
- जामदग्न्यमहादर्पदलनः-महान् अभिमानको चूर्ण करनेवाले।
- ताडकान्तकृत् - ताड़का नामवाली राक्षसीका वध करनेवाले।
- वेदान्तपारः- वेदान्तके पारङ्गत विद्वान् अथवा वेदान्तसे भी अतीत।
- वेदात्मा वेदस्वरूप ।
- भवबन्धैकभेषजः - संसारबन्धनसे मुक्त करनेके लिये एकमात्र औषधरूप।
- दूषणत्रिशिरोऽरिः - दूषण और त्रिशिरा नामक राक्षसोंके शत्रु ।
- त्रिमूर्तिः ब्रह्मा, विष्णु और शिव-तीन रूप धारण करनेवाले।
- त्रिगुणः त्रिगुणस्वरूप अथवा तीनों गुणोंके आश्रय।
- त्रयी- तीन वेदस्वरूप ।
- त्रिविक्रमः - वामन अवतारमें तीन पगोंसे समस्त त्रिलोकी को नाप लेनेवाले।
- त्रिलोकात्मा - तीनों लोकोंके आत्मा।
- पुण्यचारित्रकीर्तनः - जिनकी लीलाओंका कीर्तन परम पवित्र है, ऐसे।
- त्रिलोकरक्षकः - तीनों लोकोंकी रक्षा करनेवाले।
- धन्वी - धनुष धारण करनेवाले ।
- दण्डकारण्यवासकृत् - दण्डकारण्य में निवास करने वाले ।
- अहल्यापावनः अहल्याको पवित्र करनेवाले।
- पितृभक्तः - पिताके भक्त।
- वरप्रदः - वर देनेवाले।
- जितेन्द्रियः - इन्द्रियोंको काबूमें रखनेवाले।
- जितक्रोधः - क्रोधको जीतनेवाले।
- जितलोभः- लोभ की वृत्तिको परास्त करनेवाले।
- जगद्गुरुः - अपने आदर्श चरित्रोंसे सम्पूर्ण जगत्को शिक्षा देनेके कारण सबके गुरु।
- ऋक्षवानरसंघाती- वानर और भालुओंकी सेनाका संगठन करनेवाले।
- चित्रकूट- समाश्रयः- वनवासके समय चित्रकूटपर्वतपर निवास करनेवाले।
- जयन्तत्राणवरदः- जयन्तके प्राणोंकी रक्षा करके उसे वर देनेवाले।
- सुमित्रापुत्र- सेवितः सुमित्रानन्दन लक्ष्मणके द्वारा सेवित ।
- सर्वदेवाधिदेवः - सम्पूर्ण देवताओंके भी अधिदेवता।
- मृतवानरजीवनः मरे हुए वानरोंको जीवित करनेवाले।
- मायामारीचहन्ता - मायामय मृगका रूप धारण करके आये हुए मारीच नामक राक्षसका वध करनेवाले।
- महाभागः महान् सौभाग्यशाली ।
- महाभुजः- बड़ी-बड़ी बाँहोंवाले।
- सर्वदेवस्तुतः सम्पूर्ण देवता जिनकी स्तुति करते हैं,ऐसे ।
- सौम्यः - शान्तस्वभाव ।
- ब्रह्मण्यः- ब्राह्मणोंके हितैषी ।
- मुनिसत्तमः - मुनियोंमें श्रेष्ठ ।
- महायोगी- सम्पूर्ण योगोंके अधिष्ठान होने के कारण महान् योगी।
- महोदारः- परम उदार।
- सुग्रीवस्थिर- राज्यदः - सुग्रीव को स्थिर राज्य प्रदान करनेवाले।
- सर्वपुण्याधिकफलः - समस्त पुण्योंके उत्कृष्ट फलरूप।
- स्मृतसर्वाघनाशनः - स्मरण करने- मात्रसे ही सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाले।
- आदिपुरुषः - ब्रह्माजी को भी उत्पन्न करने के कारण सबके आदिभूत अन्तर्यामी परमात्मा।
- महापुरुषः समस्त पुरुषोंमें महान्।
- परमः पुरुषः - सर्वोत्कृष्ट पुरुष ।
- पुण्योदयः - पुण्यको प्रकट करने वाले।
- महासारः - सर्वश्रेष्ठ सारभूत परमात्मा ।
- पुराणपुरुषोत्तमः - पुराण प्रसिद्ध क्षर-अक्षर पुरुषों से श्रेष्ठ लीला पुरुषोत्तम ।
- स्मितवक्त्रः- जिनके मुखपर सदा मुसकानकी छटा छायी रहती है, ऐसे।
- मितभाषी- कम बोलनेवाले ।
- पूर्वभाषी- पूर्ववक्ता ।
- राघवः - रघुकुलमें अवतीर्ण।
- अनन्तगुण गम्भीरः - अनन्त कल्याणमय गुणोंसे युक्त एवं गम्भीर।
- धीरोदात्तगुणोत्तरः - धीरोदात्त नायकके लोकोत्तर गुणोंसे युक्त।
- मायामानुषचारित्रः- अपनी मायाका आश्रय लेकर मनुष्योंकी-सी लीलाएँ करनेवाले ।
- महादेवाभिपूजितः - भगवान् शङ्करके द्वारा निरन्तर पूजित।
- सेतुकृत्- समुद्रपर पुल बाँधनेवाले।
- जितवारीशः - समुद्रको जीतनेवाले।
- सर्वतीर्थमयः - सर्वतीर्थस्वरूप।
- हरिः- पाप-तापको हरनेवाले।
- श्यामाङ्गः - श्याम विग्रहवाले।
- सुन्दरः - परम मनोहर ।
- शूरः- अनुपम शौर्यसे सम्पन्न वीर।
- पीतवासाः - पीताम्बरधारी।
- धनुर्धरः- धनुष धारण करनेवाले।
- सर्वयज्ञाधिपः- सम्पूर्ण यज्ञोंके स्वामी।
- यज्ञः - यज्ञस्वरूप।
- जरामरणवर्जितः - बुढ़ापा और मृत्युसे रहित।
- शिवलिङ्गप्रतिष्ठाता - रामेश्वर नामक ज्योतिर्लिङ्गकी स्थापना करनेवाले।
- सर्वाघगणवर्जितः समस्त पाप-राशिसे रहित।
- परमात्मा - परमश्रेष्ठ, नित्यशुद्ध-बुद्ध-मुक्तस्वभाव।
- परं ब्रह्म सर्वोत्कृष्ट, सर्वव्यापी एवं सर्वाधिष्ठान परमेश्वर।
- सच्चिदानन्दविग्रहः सत्, चित् और आनन्द ही जिनके स्वरूपका निर्देश करानेवाला है, ऐसे परमात्मा अथवा सच्चिदानन्दमयदिव्यविग्रह।
- परं ज्योतिः- परम प्रकाशमय, परम ज्ञानमय ।
- परं धाम - सर्वोत्कृष्ट तेज अथवा साकेतधामस्वरूप ।
- पराकाशः - त्रिपाद विभूतिमें स्थित परमव्योम नामक वैकुण्ठधामरूप, महाकाशस्वरूप ब्रह्म।
- परात्परः - पर इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदिसे भी परे परमेश्वर।
- परेशः - सर्वोत्कृष्ट शासक।
- पारगः- सबको पार लगानेवाले अथवा मायामय जगत्की सीमासे बाहर रहनेवाले।
- पारः- सबसे परे विद्यमान अथवा भवसागरसे पार जानेकी इच्छा रखनेवाले प्राणियोंके प्राप्तव्य परमात्मा ।
- सर्वभूतात्मकः सर्वभूतस्वरूप।
- शिवः - परम कल्याणमय- ये श्रीरामचन्द्रजीके एक सौ आठ नाम हैं। देवि ! ये नाम गोपनीयसे भी गोपनीय हैं; किन्तु स्नेहवश मैंने इन्हें तुम्हारे सामने प्रकाशित किया है।
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